माँ शाकंभरी (शाकुम्भरी) देवी चालीसा-2
माँ शाकंभरी (शाकुम्भरी) देवीचालीसा-2
॥दोहा॥
दाहिने भीमा भ्रामरी अपनी छवि दिखाए।
बाईं ओर शताक्षी नेत्रों को चैन दिलाये।
भूरे देव महारानी के सेवक पहरेदार।
मां शाकम्भरी देवी की जग माई जै जै कार।।
॥चौपाई॥
जै जै श्री शाकम्भरी माता। हर कोई तुमको शीश नवाता।।
गणपति सदा पास में रहते। विघ्न और बाधा हर लेते।।
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हनुमान पास बलशाली। आज्ञा तेरी कभी ना टाली।।
मुनि व्यास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखानी।।
छवि आपकी बड़ी निराली। बाधा अपने पर ले डाली।।
अँखियों में आ जाता पानी। ऐसी कृपा करि भवानी।।
रुरु दैत्य ने ध्यान लगाया। वर में सुन्दर पुत्र था पाया।।
दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।
बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।।
यौवन की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म व्यवस्था।।
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्राह्मण को दास बना लूं।।
देवी-देवता घबराएंगे। मेरी शरण में ही आएगे।।
विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को ध्याया उसने।।
भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पी कर आनंद पाया।।
जब ब्रह्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।।
चारो वेद भक्ति में चाहू। महिमा मैं जिनकी फैलाऊं।।
जब ब्रह्मा वर दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।।
पाई उसने अमर निशानी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसे ही वर पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।।
धर्म ध्वजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बढ़ाने।।
बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अम्बर ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।
सागर नदी का सूखा पानी। काला दल-दल कहे कहानी।।
पत्ते भी झड़कर गिरते थे। पशु और पक्षी मरते थे।।
सूरज तपन जलाती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।।
चंदा ने शीतलता छोड़ी। समय ने भी मर्यादा तोड़ी।।
सभी दिशाएं थीं मतवाली। बिखर गई पूजा की थाली।।
बिना वेद सब ब्राह्मण रोए। दुर्बल निर्धन दुख में खोए।।
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मन।।
दुखी देवता ध्यान लगाया। विनती सुन प्रगटीं महामाया।।
माँ ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। शताक्षी शुभ नाम धराया।।
एक हाथ में अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धरा था।।
तीसरे हाथ में तीर धर लिया। चौथे हाथ में धनुष कर लिया।।
दुर्गम राक्षस को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।।
नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।
हरे-भरे खेत लहराये। वेद शास्त्र सारे लौटाए ।।
मंदिरो में गूंजी शंख वाणी। हर्षित हुए मुनि जन भारी।।
अन्न-धन शाक को देने वाली। शाकम्भरी देवी बलशाली।।
नौ दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल में निशानी।।


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