Join Adsterra Banner By Dibhu

बाबा उमदसिंह चालीसा

0
(0)

बाबा उमदसिंह चालीसा

॥दोहा॥

नगर बुहाना के धणी संत गरीब नवाज।
हाथ जोड़ विनती करूं रखना मेरी लाज।।
बु़द्धिहीन मोहे जानके सिद्ध करो सब काज।
दास जान कृपा करो श्री उमदसिंह महाराज।।

॥चौपाई॥

जय जय बाबा उमदसिंह देवा , दास करै तेरी निशदिन सेवा।
जन्म बुहाना नगर में पाया , तॅवर वंश का मान बढाया।

जन्म लग्न घड़ी देख बिचारा , जातक करै धर्म विस्तारा।
धन्य किया था पितु मात को, जिनसे जन्म मिला था आपको।

गुरू माधोदास थे अति ज्ञानी, उमदसिंह की भक्ति जानी।
गुरू की सेवा में नित जाते , कर सेवा मन में हरसाते।

अल्प काल में विधा पाई , गुरू देव ने करी सहाई।
गुरूकुल में जव हो गया ज्ञाना, सूक्ष्मबीज मंत्र को जाना।

ईश्वर प्रीत करी अनुरागी, पोह ममता माया को त्यागी।
कामक्रोध को त्यागें ज्ञानी, उमद सिंह ये बात थी जानी।

सरल स्वभाव के रहे महात्मा, निर्मल उज्ज्वल करी आत्मा।
वचन सिद्ध थे बाबा भारी, तेरी ममिा सबसे न्यारी।

ऊॅच नीच का भेद मिटाया, सबको एक समान निगाया।
भक्तों के दुख ताप मिटावें, व्याधा मन की तुरंत हटावै।

धन्य हुऐ थे बुहानावासी , जहाॅ रहे बाबा दुखनासी।
जिसने मन से सेवा कीन्ही, भक्ति की मेवा ले लीन्ही ।

भक्त दास सब लीला गावे, अन्तःकरण में प्रेम बढावें।
प्रकट जग में शक्ति आपकी, दास करें नित भक्ति आपकी।

भक्तों के मन आन्नद छाया, जिसने मन से ध्यान लगाया।
भत्ति भाव भजन मन मांई , तेरा यश फैले त्रिभुवन में।

याद करैं जो विपति मांई , व्याधि मिटाय सुखद फल दाई।
दर्शन हित नित भीड विशाला, चहुं दिशि फैलांए उजियाला।

जब तक सूरज चाॅद गगन में, तेरा यश फैले त्रिभुवन में।
छितरी मैडी़ धाम निराला , शोभित भव्य भवन विशला।

नगर बुहाना तुम्हें मनावें , खीर चुरमों भोग लगावें।
मैड़ी मैं थारा पिलंग बिछाया, ऊपर श्वेत वस्त्र ओढाया।

गुलजी पुत्र प्रेम से राजै , मैड़ी अन्दर घंटा बाजे।
मैड़ी में थारी जगती ज्योती, गरीब नवाज की जय जय होती।

भक्त जनों को दर्श दिखाओं, उनके मन में प्रेम जगाओं।
ध्वजा श्वेत शिखर फहराई, सिद्ध पुरूष की ख्याती पाई।

बदी एकम दिवस अति पावन, सत संगत का रंग सुहावनं।
जैठ बदी एकम जब आए, भक्त आपका मेला भरावें।

गुलजीनंदन पर दुख भजंन, सेवक मिल करते गुणवंदन।
नगर सेठ ने टेर लगाई, उसकी नैया पार लगाई।

भात भरा बाई का वैसे, ष्ण भरा नरसी का जैैसे।
कोतवाल का संशय मिटाया, अग्नि पर चलकर दिखलाया।

संवज उन्नीस सौ साठ आई, परम धाम में सुरति लगाई।
दिनकर उतरायण जब आए, छोड. जगत बैकुण्ठ सिधारे।

सेवक पालीराम पुजारी, रखियो उमदा लाज हमारी।
सुरेश हमेशा तेरे गुण गाए, चालीसा पद में दर्शायें।

।। जय हो बाबा उमदसिंह जी महाराज की जय हो ।।

1.चालीसा संग्रह -९०+ चालीसायें
2.आरती संग्रह -१००+ आरतियाँ

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः