Join Adsterra Banner By Dibhu

कजरी- पूर्वी उत्तरप्रदेश का एक प्राचीन त्योहार

0
(0)

विलुप्त होती पूर्वी उत्तरप्रदेश में महिलाओं का एक प्राचीन त्योहार कजरी

करीब 50-60 साल पहले तक स्त्री-पुरुष अपना-अपनाअलग अलग दल बनाकर कजरी गायन करते थे, इस अवसर के लिए महिलायें  जरई पैदा करने के लिए ज़व या जौ की बुआई छोटे में करती थी और इस जौ की जरई यानी निकले घास को अपने छोटे-बड़े के कानों पर इस कामना से कि हमसब की जौ की फसल अच्छी ही, कान तक हो ।

प्राचीनकाल से धान औऱ जौ मुख्य खाद्यान्न था और आज भी हर शुभ कार्यों में इन दोनों खाद्यान्नों का उपयोग होता है ।

इस अवसर पर महिलाओं द्वारा कुछ गीत गाये जाते थे, कुछ इस प्रकार है ।


banner

  • मिर्ज़ापुर कईला गुलज़ार, कचौडिगली भूल गईला बालमु
  • पिया मेहनी लिया दा मोतीझील से, जाके सायकिल से ना

कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ और इसके गायन में बनारस घराने की ख़ास दखल है। कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है।इसमें श्रींगार रस की प्रधानता होती है। उत्तरप्रदेश एवं बनारस में कजरी गाने का प्रचार खुब पाया जाता है।

कजरी की उत्पत्ति मिर्जापुर में मानी जाती है तथा यह वर्षा रितु का लोकगीत ब्रज क्षेत्र के प्रमुख लोक गीत झूला, होरी रसिया| झूला सावन में व होरी फाल्गुन में गाया जाता है|

प्राचीन काल से ही उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जनपद माँ विंध्यवासिनी के शक्तिपीठ के रूप में आस्था का केन्द्र रहा है। अधिसंख्य प्राचीन कजरियों में शक्तिस्वरूपा देवी का ही गुणगान मिलता है। आज कजरी के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, परन्तु कजरी गायन का प्रारम्भ देवी गीत से ही होता है।

कुछ लोगो का मानना है की कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था। वो अपने पति प्यार करती थी। जो उस समय उनसे अलग कर दी गयी थी। उनकी याद में जो वो प्यार के गीत गाती थी। उसे मिर्जापुर के लोग कजरी के नाम से याद करते हैं। वे उन्ही की याद में कजरी महोत्सव मानते है। हिन्दू धर्मग्रंथों में श्रावण मास का विशेष महत्त्व है। कजरी के चार अखाड़े प.शिवदास मालिविय अखाड़ा, जहाँगीर,बैरागी,अक्खड़ अखाड़ा है यह मुख्यतः बनारस, बलिया, चंदौली और जौनपुर जिले के क्षेत्रों में गाया जाता है|

लेखक – प्रियंका राय एवं  (पाण्डेय नितेश बनारसी) रद्दी शायर

This post has been taken with gratitude from the wall of Banarasi Bhaukal . Kindly visit them.

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः