संत के ईष्ट प्रभु शालिग्राम
संत के ईष्ट प्रभु शालिग्राम
ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने शालिग्राम जी को बगल में रख दिया और अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए.
जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तो वे शालिग्राम जी वाही गाडी में रह गए. संत अपनी मस्ती में उन्हें साथ लेकर आना ही भूल गए.
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बहुत देर बाद जब हरीबाबा जी के आश्रम पर सब संत पहुंचे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने देखा की हमारे शालिग्राम जी नहीं है.
संत बहुत व्याकुल हो गए, बहुत रोने लगे परंतु भगवान् मिले नहीं. उन्होंने भगवान् के वियोग अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया.संत बहुत व्याकुल होकर विरह में भगवान् को पुकारकर रोने लगे.
हरीबाबा ने कहा – महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये शालिग्राम जी देता हूँ परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड लड़ाते आये है.
हरीबाबा बोले – आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाडी में ही छुट गए होंगे और अब कई घंटे बीत गए है. गाडी से किसी ने निकाल लिए होंगे और गाडी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी.
संत बोले – मै स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ वहाँ जाकर.
अन्य संतो ने हरीबाबा से कहा – कि एकबार इनके मन की तसल्ली के लिए हमारे साथ इनको स्टेशन जाने दीजिये.
सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे. स्टेशन मास्टर से मिले और भगवान् के गुम होने की शिकायत करने लगे.
उन्होंने पूछा की कौन सी गाडी में आप बैठ कर आये थे.?
संतो ने गाडी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा – महाराज ! कई घंटे हो गए,यही वाली गाडी ही तो यहां खड़ी है, गाडी आगे ही नहीं बढ़ रही है.
न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत परंतु गाडी आगे ही नहीं बढ़ती.
ट्रेन का चालाक, स्टेशन मास्टर सभी आश्चर्य में पड गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए. उन्होंने अपना जीवन संत और भगवान की सेवा में लगा दिया.
प्रेम से बोलिये जय श्री कृष्ण!!
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