मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम
आप भी हो सकते हैं भगवान राम की तरह मर्यादा पुरूषोत्तम


भगवान विष्णु के दस अवतारों में से सातवां अवतार राम का है। भगवान राम मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने अद्भुत शक्तियों का परिचय दिया, गुरू दक्षिणा के रूप में गुरू के मृत पुत्र को जीवित कर दिया। इनके हाथों में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र था। इन सारी खूबियों के बावजूद भगवान श्री कृष्ण मर्यादा पुरूषोत्तम नहीं कहलाते हैं।
भगवान राम एक सामान्य मनुष्य की भांति जीवन के हर दुःख, सुख का सामना करते हैं। राम लोगों को यह बताने का प्रयास करते हैं कि मनुष्य को किस प्रकार से जीवन बीताना चाहिए। श्री कृष्ण की तरह राम गीता का उपदेश नहीं देते हैं बल्कि जो उपदेश वह देना चाहते हैं उसे स्वयं के ऊपर प्रयोग करके सच्चे पुरूष का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि राम मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाते हैं।
वाल्मीकि रामायण के अनुक्रमणिका में प्रसंग आया है कि नारद वाल्मीकि से पूछते हैं कि संसार में कोई ऐसा मनुष्य है जिसमें सिर्फ सद्गुण भरे हों। वाल्मीकि कहते हैं ऐसा एक मात्र पुरूष हैं श्री राम। वाल्मीकि नारद से राम के जो गुण बताते हैं वह उनके जीवन की घटनाओं में स्पष्ट दिखता है।
शिक्षा ग्रहण करने के दौरान राम गुरू भक्ति का परिचय देते हैं और जैसा गुरू सीखाते हैं उसे यथावत सीखने का प्रयत्न करते हैं। राम का सौन्दर्य मनमोहक है। सीता इन्हें पहली नज़र में ही देखकर माता पार्वती से राम को पति रूप में पाने की प्रार्थना करती हैं। रावण की बहन सूपर्णखा भी राम को पति रूप में पाना चाहती थी।
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वैष्णवी शक्ति से उत्पन्न देवी त्रिकूटा भी राम को पति रूप में पाना चाहती थीं। लेकिन राम ने सीता को एक पत्नी व्रत रहने का वचन देने के कारण त्रिकूटा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। यहां राम वचन पालन और पति धर्म का परिचय देते हैं।
पिता के वचनों का पालन करने के लिए राम ने सहर्ष वन जाना स्वीकार कर लिया और छोटे भाई को राजगद्दी सौंप दी। यहां राम ने पिता की भक्ति और निःस्वार्थ जीवन का ज्ञान दिया। विमाता केकैय ने राम को वन भेजने की योजना बनायी थी, यह जानते हुए भी राम ने माता से किसी प्रकार का द्वेष नहीं रखा।
हमेशा उन्हें अपनी माता के सामान आदर और सम्मान दिया। यहां राम ने यह समझाया कि माता का पद हमेशा और हर हाल में आदरणीय होता है। सीता हरण के बाद भी राम धैर्यवान बने रहे और अपनी शक्तियों को संचित करके समय पर रावण को इस कार्य के लिए दंडित किया।
यहां राम ने धैर्य और वीरता का गुण दिखाया। राम ने यह भी बताया कि धैर्य वीर पुरूषों का गुण है। स्वामी को अपने सेवक के साथ किस प्रकार से मित्रवत व्यवहार करना चाहिए इसका परिचय रामायण में राम और हनुमान के प्रसंग में अनेक स्थान पर मिलता है।
राम के यह सभी गुण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में स्थापित करता है। जिस मनुष्य में यह सभी गुण मौजूद हों वह भी राम की तरह मर्यादा पुरूषोत्तम बन सकता है।