सौ के साठ
सौ के साठ
(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)
एक था मियां और एक था बनिया। मियां ने बनिये से कुछ रुपये ले रक्खे थे। वह रुपयों का तकाज़ा करता रहता था। मियां की नीयत खराब थी। वह सपने में भी पैसे देने की बात नहीं सोचता था। बनिया जब भी उगाही के लिए आता, मियां उल्टा-सीधा जवाब देता रहता।
बनिया तकाज़ा करते-करते थक गया। कह-कहकर हार गया। संदेशे भेज-भेजकर परेशान हो गया। आखिर एक दिन बगल में बही दबाकर मिंया के घर पहुंचा। पूछा, “क्या मियां घर में हैं?”
मियां के लड़के ने कहा, “सेठजी, पिताजी तो कहीं बाहर चले गए हैं।”
Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀
बनिये ने पूछा, “किसलिए गये हैं?”
लड़का बोला, “कमाई करने गये हैं?”
बनिये ने पूछा, “कहां गये हैं?”
लड़का बोला, “गांव की सरहद पर निबौरी लेने गए हैं। वह अपने बाड़े
में निबौरी बोयंगे। उनमें से नीम के पेड़ खड़े होंगे, उन पर निबौरियां लगेंगी। निबौरियां हम खायंगे। उनकी जो गुठलियां बचेंगी, पिताजी उनको बेचेंगे। उनसे जो पैसे मिलेंगे, उन पैसों से वे बनिये का कर्ज़ अदा करेंगे।”
बनिया समझ गया कि इस मियां से कभी पैसे वसूल नहीं होंगे।
मियां घर लौटे। बेटे ने उनको सारी बातें कह सुनाईं। मियां बोले, “तुमने ठीक बात नहीं कही। आखिरकार पैसे देने की बात तुमने कह दी। यह बात भी क्यों कहनी थी?”
इतने में लाल-पीला होता हुआ बनिया वहां पहुंचा। बोला, “अपने चचा के रुपए चुका दो, नहीं तो मैं अदालत में जाऊंगा।”
मियां ने कहा, “कौन कम्बख्त इन्कार कर रहा है? आप पंचों को इकट्ठा कर लीजिए। पंच जो कहेंगे, मैं कबूल कर लूंगा। पंच कहेंगे, तो नक़द गिन दूंगा।”
पंच बैठे। पंचों ने समझौते की कोशिश की। ‘हां-ना’, ‘हां-ना’ करते-करते आखिर पंच ने सौ के साठ देने की बात तय कर दी।
मियां बोले, “साठ रुपये तो बहुत ज्यादा होते हैं। कुछ कम कर देंगे, तो मैं इसी दम चुका दुंगा।”
फिर पंचों ने दो इधर से कम किये, दो उधर से कम किये, और इस तरह आधे रुपये कम कर दिये। इसके बाद तो कुल तीस रुपए ही देने को बचे।
मियां ने कहा, “बात बिलकुल ठीक है। वाह, पंचों ने कैसा बढ़िया इंसाफ किया है। पंच मां-बाप की बात सच है! लीजिए, मैं अभी रक़म दिये देता हूं। ये दस तो नक़द दे रहा हूं। दस दिला दूंगा, और बचे हुए दस का तो लेना क्या, और क्या देना था? इतने दिनों के बाद इतने बड़े खाते का मामला निपटा, तो उसमें आपको इतनी रियायत तो देनी ही चाहिए।”
बनिये की तरफ मुड़कर मियांजी बोले, “देखिए, सेठजी! पहले सुन
लीजिए, और फिर इसी हिसाब से अपनी बही में लिख डालिए। सुनिए:
सौ के किए साठ,
आधे गए नाट।
दस दूंगा, दस दिलाऊंगा,
और दस का क्या लेना, और क्या देना!
मियांजी की चतुराई देखकर बनिया हंस पड़ा।
मियां का बेटा बोला, “पिताजी! देखिए, बनिया हसं रहा है।”
मियां ने कहा, “हां, हंसना तो चाहिए ही। आज उसे नक़द पैसे जो मिल गये हैं।”