बदमाश बंदरिया
बदमाश बंदरिया
(मजेदार पुरानी ग्रामीणआँचलिक कहानी)
एक थी बुढ़िया। उसके एक लड़का था। आंगन में पीपल का एक पेड़ था। पेड पर एक बंदरिया रहती थी। बुढ़िया और उसका बेटा दोनों खा-पीकर चैन से रहते थे।
खाते-पीते उसके सब पैसे खर्च हो गए। लड़के ने कहा, “मां! मैं कमाई करने परदेस जाऊं?”
बुढ़िया बोली, “बेटे! तुम चले जाओगे तो मैं यहां बहुत दुखी हो जाऊंगी। यह बंदरिया मुझको आराम से रोटी नहीं खाने देगी।”
Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀
बेटे ने कहा, “मां, यह बंदरिया तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी? तुम एक लकड़ी अपने पास रखना और जब भी बंदरिया आए, तुम उसे मारना। मां! कुछ दिनों में तो मैं वापस आ ही जाऊंगा।” ऐसा कहकर लड़का परदेस चला गया।
मां बूढ़ी थीं मुंह में एक भी दांत नहीं था। कुछ भी चबा नहीं पातीथी। इसलिए वह रोज़ खीर बनाती और ज्यों ही वह उसे थाली में ठण्डा करने रखती, पेड़ से नीचे कूदकर बंदरिया घर में पहुंच जाती। मां को धमकाकर सारी खीर खा जाती।
बुढ़िया रोज़ खीर ठण्डी करती और बंदरिया रोज़ खा जाती। बेचारी बुढ़िया रोज भूखी रहती। वह दिन-पर-दिन दुबली होती गई। आंखे गड्ऐ में धंस गईं। चेहरा उतार गया। वह सूखकर कांटा हो गई।होते-होते एक साल पूरा हुआ और लड़का घर लौटा।
लड़के ने कहा, “मां, तुम इतनी दुबली क्यों हो गई, तुम्हें क्या हो गया है?”
मां ने कहा, “बेटे! हुआ तो कुछ भी नहीं, लेकिन यह बंदरिया मुझे कुछ खाने ही नहीं देती। मैं रोज़ खीर ठण्डी करती हूं और बंदरिया रोज आकर खा जाती है।”
लड़के ने कहा, “अच्छी बात है। अब कल देख लेंगे।”
सवेरे उठकर लड़के ने सारे घर में गीली मिट्टी फैला दी। सिर्फ़ रसोईघर में मां के बैठने लायक सूखी जगह रखी। मां ने रसोई बनाई। घी चुपड़कर नरम-नरम चपाती थाली में रखीं और दूसरी थाली में खीर ठण्डी की।
लड़के ने आवाज लगाई: बंदरिया, ओ बंदरिया! आओ, खीर खाने आओ!
बंदरिया तो तैयार ही बैठी थी। कूदकर अन्दर आ गई। बंदरिया हाथ-पैर ऊंचे उठाती जाय, नाक-भौह चढ़ाती जाय और पूछती जाय, “मैं कहां बैठू? कहां बैठू?”
लड़के ने एक दहकता हुआ पत्थर दिखाकर कहा, “आओ-आओ, बंदरिया बहन! सोने के इस पाटे पर बैठो।”
बंदरिया कूदकर आ बैठी। बैठते ही बुरी तरह जल गई। फिर “हाय, राम मैं, जली, मैं जल गई” कहती हुई भाग गई।