June 9, 2023
0
(0)

दबंग खरगोश

(मजेदार पुरानी ग्रामीणआँचलिक कहानी)

एक था सियार और एक था खरगोश। एक बार दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन दोनों गांव की ओर चले। कुछ दूर जाने पर उन्हें दो रास्ते मिले। एक रास्ता चमड़े का था और दूसरा लोहे का था। सियार बोला, “मैं, चमड़े वाले रास्ते से जाऊंगा।” सियार चमड़ेवाले रास्ते चल पड़ा और खरगोश ने लोहेवाले रास्ते पर चलना शुरु किया।

लोहेवाले रास्ते में एक बाबाजी की कुटिया मिली। खरगोश को ज़ोर की भूख लगी थी, इसलिए वह तो बाबाजी की कुटिया में घुस गया। कुटिया में इधर-उधर देखा तो तो उसे वहां पेड़े मिले। खरगोश ने डटकर पेड़े खा लिये और फिर कुटिया का दरवाजा बन्द करे वह वहां आराम से सो गया। कुछ देर बाद बाबाजी आए। अपनी कुटिया का दरवाजा बन्द देखा, तो उन्होंने पूछा, “मेरी कुटिया में कौन है?” अन्दर से खरगोश ने बड़े रौब के साथ कहा:
मैं खरगोश हूं खरगोश!
बाबाजी! भाग जाओ।
भाग जाओ,
नहीं तो तुम्हारी तुम्बी तोड़ दूंगा।

सुनकर बाबाजी तो डर गए और भाग खड़े हुए। गांव में जाकर एक पटेल को बुला लाए। कुटिया के पास पहुंचकर पटेल ने पूछा, “बाबाजी की कुटिया में कौन है?”

Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀


अन्दर से रौब-भरी आवाज में खरगोश बोला:
मैं खरगोश हूं, खरगोश!
पटेल, पटेल, भाग जाओ।
भाग जाओ,
नहीं तो तुम्हारी पटेली छीन लूंगा।

पटेल भी डरा और भाग गया। फिर पटेल मुखिया को बुला लाया। मुखिया ने पूछा, “बाबाजी की कुटिया में कौन है?”

खरगोश ने लेटे-लेटे ही रौब-भरी आवाज में कहा:
मैं खरगोश हूं, खरगोश!
मुखिया, मुखिया, भाग जाओ।
भाग जाओ,
नहीं तो तुम्हारा मुखियापन खतम कर दूंगा।

सुनकर मुखिया भी डर गया और भाग खड़ा हुआ। फिर तो बाबाजी भी चले गए। जब सब चले गए, तो खरगोश कुटिया के बाहर निकला। वह सियार से मिला और उसको सारी बातें सुनाई।

सियार की इच्छज्ञ हुई कि वह भी पेड़ खाए। बोला, “तो मैं भी कुटिया में जाकर खा लेता हूं।”

खरगोश ने पूछा, “अगर बाबाजी आ गए, तो तुम कुटिया के अन्दर से क्या कहोगे?”

सियार ने कहा, “मैं भी कहूंगा—
मैं सियार हूं, सियार!
बाबाजी, भाग जाओ।
भाग जाओ,
नहीं, तो तुम्हारी तुम्बी तोड़ दूंगा।

खरगोश बोला, “अच्छी बात है। तो अब तुम भी पेड़ों का स्वाद चख आओ!”

बाद में सियार कुटिया के अन्दर गया। कुछ ही देर में बाबाजी आए और बोले,
“मेरी कुटिया में कौन है?”

सियार ने धीमी आवाज में कहा:
मैं सियार हूं, सियार!
बाबाजी, भाग जाओ।
भाग जाओ,
नहीं, तो तुम्हारी तुम्बी तोड़ दूंगा।

बाबाजी ने आवाज पहचान ली और कहा, “ओह हो! यह तो सियार है!” बाद में बाबाजी ने दरवाजा खोल लिया। वे अन्दर गए। सियार को बाहर निकाला, और जमकर उसकी पिटाई की और कुटिया से निकाल बाहर किया।

 

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!