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Shri Hanuman ji and Shri Tulasidas ji

तुलसीदास के दोहे-10: विवेक

जनम मरन सब दुख सुख भोगा।हानि लाभ प्रिय मिलन वियोगा।काल करम बस होहिं गोसाईं।बरबस राति दिवस की नाईं। अर्थ: जन्म मृत्यु सभी दुख सुख के भेाग हानि लाभ प्रिय लोगों से मिलना याबिछुड़ना समय एवं कर्म …

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तुलसीदास के दोहे-9: मित्रता

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।तिन्हहि विलोकत पातक भारी।निज दुख गिरि सम रज करि जाना।मित्रक दुख रज मेरू समाना। जो मित्र के दुख से दुखी नहीं होते उन्हें देखने से भी भारी पाप लगता है।अपने पहाड़ …

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तुलसीदास के दोहे-8: कलियुग

सो कलिकाल कठिन उरगारी।पाप परायन सब नरनारी। कलियुग का समय बहुतकठिन है।इसमें सब स्त्री पुरूस पाप में लिप्त रहते हैं। कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भये सदग्रंथदंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ। कलियुग …

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तुलसीदास के दोहे-7: आत्म अनुभव

जद्यपि जग दारून दुख नाना।सब तें कठिन जाति अवमाना। इस संसार में अनेक भयानक दुख हैं किन्तु सब से कठिन दुख जाति अपमान है। रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहुअजहुॅ देत दुख रवि …

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तुलसीदास के दोहे-6: संगति का असर

संगति शब्द ही दो शब्दों से मिलकर बना है सम अर्थात बराबर , गति अर्थात परिणति या परिणाम। इसका सीधा सा अर्थ है की जिस संगति में , जिस तरह के लोगों के साथ आप रहते …

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