सिद्ध गुरू श्री मत्स्येन्द्रनाथ चालीसा
॥दोहा॥
गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार ।
हाथ जोड़ विनती करु शारदा नाम आधार ॥
सत्य श्री आकाम ॐ नमः आदेश ।।
माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश ॥
आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश ।।
नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश ॥
सकल लोक के सर्व सन्तो को सत- सत आदेश ॥
सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश ॥
। ॐ नमः शिवाय ।
॥चौपाई॥
जय – जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी । कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी ॥
जय – जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी । इच्छा रूप योगी वरदानी ॥
अलख निरंजन तुम्हारो नामा । सदा करो भक्तन हित कामा ॥
नाम तुम्हारा जो कोइ गावे । जन्म जन्म के दु: ख मिट जावे ॥
जो कोइ गुरू मछेन्द्र नाम सुनावे । भूत पिशाच निक्ट नहीं आवे ॥
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रूप तुम्हारा वर्णत न जावे ॥
निराकार तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद ना जानी ॥
घट – घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥
भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा सीस अति सुन्दर साजे ॥
तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जन करते पूजा ॥
चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करण अमंगल हारी ॥
पूर्ण ब्रह्म सकल घटवासी । गुरू मछेन्द्र सकल प्रकाशी ॥
गुरू मछेन्द्र – गुरू मछेन्द्र जो कोइ ध्यावे । ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ॥
शंकर रूप धर डमरू बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मार भक्तन रखवारा ॥
अति विशाल है रूप तुम्हारा । सुर नर मुनि जन पावे न पारा ॥
दीन बन्धु दीन हितकारी । हरो पाप हम शरण तुम्हारी ॥
योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो सन्तन तन वासा ॥
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बड़े अरू योग प्रचारा ॥
हठ- हठ- हठ गुरू मछेन्द्र हठीले । मार-मार बैरी के कीले ॥
चल-चल-चल गुरू मछेन्द्र विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । अपने जन की हरो चौरासी ॥
अचल अगम है गुरू मछेन्द्र योगी । सिद्धि देवो हरो रसभोगी ॥
काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिन मेरा कौन साहाई ॥
अजर अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जो रही नेहा ॥
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । हे प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥
योगी लिखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ॥
ध्यान तुम्हारा जो कोइ लावे । अष्ट सिद्धि नव निधि धर पावे ॥
शिव मछेन्द्र है नाम तुम्हारा । पापी इष्ट अधम को तारा ॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥
शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोरख, गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपा सिन्धु योगी चमत्कारी ॥
पूर्ण आस दास कीजे । सेवक जान ज्ञान को दीजे ॥
पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥
अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पथ जिन योग प्रचारा ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥
जय-जय-जय गुरू मछेन्द्र अविनाशी । सेवा करे सिद्ध चौरासी ॥
जो यह पढ़हि गुरू मछेन्द्र चालीसा । होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ॥
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥
बारह पाठ पढ़े नित जोई । मनोकामना पूर्ण होई ॥
॥दोहा॥
सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना, पूरे गुरू मछेन्द्रनाथ ॥
अगम अगोचर नाथ तुम, पार ब्रह्म अवतार ।
कानन कुंडल सिर जटा, अंविभूति अपार ।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरी, दो मुझको उपदेश ॥
हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥
रोज चालीसा का ११ पाठ कीजिये अपना इच्छा बोलकर २१ दिनो तक तो सारे कार्य सिद्ध होते है,शुद्धता का नियम है
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