फाल्गुन शुक्ल एकादशी-आमलकी एकादशी
Falgun Shukla Ekadashi-Amalaki Ekadashi
एक बार राजा मांधाता बोले, ” हे वशिष्ठ जी ! यदि आपकी मुझ पर कृपा हो तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए , जिसका पालन करने से मेरा कल्याण हो|” महर्षि वशिष्ठ बोले,” हे राजन! सब व्रतों में उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आमलकी एकादशी के व्रत का वर्णन करता हूँ| राजा मांधाता ने फिर से प्रश्न किया की , हे मुनिवर! इस आमलकी एकादशी की उत्पत्ति कैसे हुई और इसका महत्व क्यों है?”
मुनि वशिष्ठ ने कहा,” हे राजन! पृथ्वी पर आमलकी( आँवले) के महत्ता उसके गुणों के अतिरिक्त इस बात से भी है की यह भगवान विष्णु के मुख से उत्पन्न हुआ है| जब पृथ्वी पर आमलकी का जन्म हुआ तभी सृष्टि को बनाने वाले ब्रह्मा जी का भी भगवान विष्णु की नाभि कमल से निकले कमल में प्राकट्य हुआ| यह एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में होती है| इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं| इस व्रत का फल अनंत अर्थात हज़ार गौदान के फल के बराबर होता है| हे राजन, अब मैं आपसे एक पौराणिक कथा कहता हूँ, ध्यान से सुनो| “
वैदिश नाम का एक नगर था जिसमे ब्राह्मण. क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र , चारो वर्ण आनंद पूर्वक रहते थे| उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी, तथा पापी दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर मैं कोई ना था| उस नगर में चैत्ररथ नाम का चंद्र वंशी राजा राज्य करता था | वह अत्यंत महान् और धर्मात्मा था| सभी नगरवासी बालक से लेकर वृद्ध तक सभी विष्णु भक्त थे और सदैव एकादशी का व्रत किया करते थे|
एक समय फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की आअमलकी एकादशी आई | उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल- वृद्ध सबने हर्ष पूर्वक व्रत किया| राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाके पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य पॅंच रत्न आदि से आँवले का पूजन करने लगे|
राजा और नगरवासियों ने मंदिर में जकर जागरण किया| वे सब इस प्रकार स्तुति करने लगे,” हे धात्री! आप ब्रहस्वरूप हैं | आप ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न हैं ,और समस्त पापों को नाश करने वाली हैं | आपको नमस्कार है| अब आप मेरा अर्ध्य स्वीकार करें |आप श्री राम चंद्रजी द्वारा सम्मानित हैं| मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ| आप मेरे समस्त पापों को नष्ट करें|” सबने उस मंदिर में रात्रि जागरण किया|
रात के समय वहाँ एक बहेलिया आया जो अत्यंत पापी और दुराचारी था| वह नगर के बाहर रहता था और अपने कुटुम्ब का पालन जीव हिंसा करके किया करता था| भूख और प्यास से व्याकुल वह बहेलिया वह जागरण देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया| वह भूखा-प्यासा भगवान विष्णु तथा एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा| राजा और दरबारियों की भाँति उसने भी सारी रात जाग कर बिता दी| प्रातः काल होते ही सब लोग अपने घर चले गये तो बहेलिया भी चला गया| घर जाकर उसने भोजन किया| कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गयी|
वस्तुतः उसे अपने कर्मों से नरक में जाना था पर आअमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव तथा रात्रि जागरण से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया| युवा होने पर वह चतुरंगिणी सेना सहित , दस हज़ार ग्रामों का पालन-पोषण करने लगा| वह तेज़ में सूर्य के समान , कांति में चंद्रमा के समान तथा वीरता में भगवान विष्णु के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान था| वह अत्यंत सत्यवादी , धार्मिक, कर्मवीर एवं विष्णु भक्त था| वह सदैव यज्ञ किया करता था| प्रजा का पालन वह समान भाव से करता था| दान देना उसका नित्य कर्म था|
एक दिन राजा शिकार खेलने गया| दैव योग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान ना रहने के कारण उसी वन आईं एक वृक्ष के नीचे बैठ गया| आज राजा ने आमलकी एकादशी का व्रत रखा था, सोते समय भगवान का ध्यान लगाकर सो गया | थोड़े समय बाद पहाड़ी म्लेच्छ वहाँ आ गये और राजा को अकेला देख ‘मारो-मारो’ शब्द कहते हुए राजा की ओर दौड़े| म्लेच्छ कहने लगे,” इस राजा ने हमारे माता पिता, पुत्र, पौत्र, आदि अनेक संबंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है अतः इसे अवश्य मारना चाहिए |” ऐसा कहकर वह म्लेच्छ राजा को मारने दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र राजा के उपर फेंके|
ऐसा कहकर वह म्लेच्च्छ राजा को मारने दौड़े और अनेकप्रकार के अस्त्र-शस्त्र राजा के उपर फेंके| परंतु आश्चर्य कि वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते और उनका वार पुष्प के समान प्रतीत होता| फिर उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उल्टा उन्ही पर प्रहार करने लगे, जिससे वो मूर्छित हो कर गिरने लगे| उसी साय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई | अत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटी अत्यंत टेढ़ी थी| उसकी आँखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी, जिससे वह काल के समान प्रतीत होती थी| वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी और थोड़ी देर में उस देवी ने सब म्लेच्छों को काल के गाल में पहुँचा दिया| राजा की जब नींद खुली तो उसने सब दुष्टों को मरा देखा| म्लेच्छों को मरा देखकर राजा ने कहा,” इन शत्रुओं को किसने मारा? इस वन में मेरा कौन हितैषी रहता है?
राजा ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई ,” हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त अन्य और कौन तेरी सहायता कर सकता है|”
इस आकाशवाणी को सुनकर राजा ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और राज्य में आकर सुखपूर्वक राज्य करने लगा|
महर्षि वशिष्ठ बोले,” हे राजन! यह आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था, जिसने उसकी रक्षा की| जो मनुष्य आअमलकी एकादशी का व्रत करते हैं वह संसार में प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णु लोक को जाते हैं|”
व्रत की विधि:
इस एकादशी को व्रती प्रात:काल दन्तधावन करके यह संकल्प करे कि ‘ हे पुण्डरीकाक्ष ! हे अच्युत ! मैं एकादशी को निराहार रहकर दुसरे दिन भोजन करुँगा । आप मुझे शरण में रखें ।’
ऐसा नियम लेने के बाद पतित, चोर, पाखण्डी, दुराचारी, गुरुपत्नीगामी तथा मर्यादा भंग करनेवाले मनुष्यों से वह वार्तालाप न करे । अपने मन को वश में रखते हुए नदी में, पोखरे में, कुएँ पर अथवा घर में ही स्नान करे । स्नान के पहले शरीर में मिट्टी लगाये ।
मृत्तिका लगाने का मंत्र:
अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे ।
मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोटयां समर्जितम् ॥
वसुन्धरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने भी तुम्हें अपने पैरों से नापा था । मृत्तिके ! मैंने करोड़ों जन्मों में जो पाप किये हैं, मेरे उन सब पापों को हर लो ।’
स्नान का मंत्र :
त्वं मात: सर्वभूतानां जीवनं तत्तु रक्षकम्।
स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसानां पतये नम:॥
स्नातोSहं सर्वतीर्थेषु ह्रदप्रस्रवणेषु च्।
नदीषु देवखातेषु इदं स्नानं तु मे भवेत्॥
‘जल की अधिष्ठात्री देवी ! मातः ! तुम सम्पूर्ण भूतों के लिए जीवन हो । वही जीवन, जो स्वेदज और उद्भिज्ज जाति के जीवों का भी रक्षक है । तुम रसों की स्वामिनी हो । तुम्हें नमस्कार है । आज मैं सम्पूर्ण तीर्थों, कुण्डों, झरनों, नदियों और देवसम्बन्धी सरोवरों में स्नान कर चुका । मेरा यह स्नान उक्त सभी स्नानों का फल देनेवाला हो ।’
विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह परशुरामजी की सोने की प्रतिमा बनवाये । प्रतिमा अपनी शक्ति और धन के अनुसार एक या आधे माशे सुवर्ण की होनी चाहिए । स्नान के पश्चात् घर आकर पूजा और हवन करे । इसके बाद सब प्रकार की सामग्री लेकर आँवले के वृक्ष के पास जाय । वहाँ वृक्ष के चारों ओर की जमीन झाड़ बुहार, लीप पोतकर शुद्ध करे । शुद्ध की हुई भूमि में मंत्रपाठपूर्वक जल से भरे हुए नवीन कलश की
स्थापना करे । कलश में पंचरत्न और दिव्य गन्ध आदि छोड़ दे । श्वेत चन्दन से उसका लेपन करे । उसके कण्ठ में फूल की माला पहनाये । सब प्रकार के धूप की सुगन्ध फैलाये । जलते हुए दीपकों की श्रेणी सजाकर रखे । तात्पर्य यह है कि सब ओर से सुन्दर और मनोहर दृश्य उपस्थित करे । पूजा के लिए नवीन छाता, जूता और वस्त्र भी मँगाकर रखे । कलश के ऊपर एक पात्र रखकर उसे श्रेष्ठ लाजों(खीलों) से भर दे ।
फिर उसके ऊपर परशुरामजी की मूर्ति (सुवर्ण की) स्थापित करे।
‘विशोकाय नम:’ कहकर उनके चरणों की,
‘विश्वरुपिणे नम:’ से दोनों घुटनों की,
‘उग्राय नम:’ से जाँघो की,
‘दामोदराय नम:’ से कटिभाग की,
‘पधनाभाय नम:’ से उदर की,
‘श्रीवत्सधारिणे नम:’ से वक्ष: स्थल की,
‘चक्रिणे नम:’ से बायीं बाँह की,
‘गदिने नम:’ से दाहिनी बाँह की,
‘वैकुण्ठाय नम:’ से कण्ठ की,
‘यज्ञमुखाय नम:’ से मुख की,
‘विशोकनिधये नम:’ से नासिका की,
‘वासुदेवाय नम:’ से नेत्रों की,
‘वामनाय नम:’ से ललाट की,
‘सर्वात्मने नम:’ से संपूर्ण अंगो तथा मस्तक की पूजा करे ।
ये ही पूजा के मंत्र हैं।
तदनन्तर भक्तियुक्त चित्त से शुद्ध फल के द्वारा देवाधिदेव परशुरामजी को अर्ध्य प्रदान करे । अर्ध्य का मंत्र इस प्रकार है :
नमस्ते देवदेवेश जामदग्न्य नमोSस्तु ते ।
गृहाणार्ध्यमिमं दत्तमामलक्या युतं हरे ॥
‘देवदेवेश्वर ! जमदग्निनन्दन ! श्री विष्णुस्वरुप परशुरामजी ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । आँवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अर्ध्य ग्रहण कीजिये ।’
तदनन्तर भक्तियुक्त चित्त से जागरण करे । नृत्य, संगीत, वाघ, धार्मिक उपाख्यान तथा श्रीविष्णु संबंधी कथा वार्ता आदि के द्वारा वह रात्रि व्यतीत करे । उसके बाद भगवान विष्णु के नाम ले लेकर आमलक वृक्ष की परिक्रमा एक सौ आठ या अट्ठाईस बार करे । फिर सवेरा होने पर श्रीहरि की आरती करे । ब्राह्मण की पूजा करके वहाँ की सब सामग्री उसे निवेदित कर दे । परशुरामजी का कलश, दो वस्त्र, जूता आदि
सभी वस्तुएँ दान कर दे और यह भावना करे कि : ‘परशुरामजी के स्वरुप में भगवान विष्णु मुझ पर प्रसन्न हों ।’ तत्पश्चात् आमलक का स्पर्श करके उसकी प्रदक्षिणा करे और स्नान करने के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराये । तदनन्तर कुटुम्बियों के साथ बैठकर स्वयं भी भोजन करे ।
सम्पूर्ण तीर्थों के सेवन से जो पुण्य प्राप्त होता है तथा सब प्रकार के दान देने दे जो फल मिलता है, वह सब उपर्युक्त विधि के पालन से सुलभ होता है । समस्त यज्ञों की अपेक्षा भी अधिक फल मिलता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है ।
Note: काशी(वाराणसी) में आमलकी एकादशी को रंगभरी एकादशी भी कहते हैं ।
Falgun Shukla Ekadashi-Amalaki Ekadashi
Amalaki derives its name from fruit Indian gooseberry popularly known as Amla in India. Amalaki tree is worshipped on Amalaki Ekadashi. Appearance of Amla and Lord Brahma happened same day from Lord Vishnu. Amla sprung out from Lord Vishnu’s mouth and Lord Brahma from the Lotus arisen from Lord Vishnu’s navel. Importance of Amla cannot be overstated. There is a story about the Amla in Puranas.
Once upon a time, a Chandala went into the forest for hunting. He had hunted many animals & birds in his life and thus incurred a heavy sins for his deeds. He roamed into the forest for a long time in forest but cold not find any prey. Feeling hungry, he saw an Amla tree laden with fruits and climbed up the tree.
He tried to satiate his hunger by eating Amla fruits. Unfortunately when he was climbing down the tree, he slipped and fell down. He died immediately.When the attendants of Yamaraja arrived to take away his soul, they could not tether his soul even after repeated attempts. The attendants of Yamaraj became very surprised and went to the Rishis ot seek clarification. Rishis revealed the attendants that they could not go near the Chandala’s dead body, because he had eaten amla just before his death.
Such is the importance of Amla tree. Talking about the importance of this fruit, it is said that just its remembrance will get result as of donating cow.This is evident from the following text mentioned in Puranas. After Lord Brahma created the gods, demons, gandharvas, yakshas, rakshasas, serpents and pious-hearted Maharshis. The gods and rishis came to Amalaka, the tree dear to Lord Vishnu. The gods were surprised to see the tree, as they knew nothing about it. On seeing them surprised, Lord Vishnu spoke from the sky, “O Devas! This is the supreme Amalaka tree, which is dear to me. Just remembering this gives one religious merit equivalent to giving cows in charity. One obtains twice as much religious merit by touching the tree, and thrice as much by eating its fruit. This is a Vaishnava tree, which destroys all sins. Lord Vishnu resides in its root, Lord Brahma on its top, Lord Shiva in its trunk, Rishis in its branches, Gods in its twigs, Vasus in its leaves, Marutas in its flowers and all Prajapatis in its fruits. All Gods reside in the Amalaka tree and hence it is supremely adorable for the devotees of Vaishnavas.”
Story Of Amalaki Ekadashi:Yudhishthira requested Lord Shri Krishna, “O Lord! Please be kind enough to tell me the name and importance of the Ekadashi falling in the bright fortnight of the month of Falguna.” Lord Krishna said, “O Dharmaraja! The Ekadashi falling in the bright fortnight of the month of Falguna is called‘Amalaki Ekadashi’. The observance of this sacred vrata takes one to the abode of Lord Vishnu. King Mandhata had once put a similar question to sage Vasishtha.
King Mandhata asked, “O Maharshi Vashishtha! If you are pleased with me, then kindly tell me about a vrata which can ensure my welfare to the best.” Maharshi Vashishth said, “O Rajan, I will tell you about the vrata of Amalaki Ekadashi which the best amongst Vratas and finally grants salvation. Raja Mandhata again asked,” O Munivar! How did this vrata of Amalaki Ekadashi originate and what is it’s significance?”
Muni Vashishta said, “O Rajan, the importance of Amalaki on the earth, in addition to its medicinal properties, is also from the fact that it sprang out from the mouth of Lord Vishnu. When Amalaki was created then Creator, Lord Brahma also appeared from the lotus originated from Lord Vishnu’s navel. This Ekadashi falls in the bright fortnight (Shukla Paksha) of the Falguna month. Devotee’s all sins are destroyed by observing this fast. Merits attained by this vrata is equal to the merits attained by donation of thousand cows. O king, now I will tell you now a very old story abut Amalaki Ekadashi, listen carefully.”
There was a town named Vaidish in which Brahmans, Kshatriyas, Vaishyas and Shudra, all four working classes lived happily. Vedas were always chanted in that city and I was noone was sinner or unbeliever. King Chitrath from Lunar dynasty used to rule that city with righteousness and justice. He was very brave and pious. All the townspeople, from child to old age, were devotees of Lord Vishnu. Everyone used to fast on Ekadashi.
Once the Amalaki Ekadashi took place in the bright fortnight of Falguna month. On that day the king, the people, and the children, aged everyone kept fast with joy. The king went to the temple with his subjects ,placed the holy pitcher and started the pooja by offering with incense , lamp, fruits, precious jewels to Lord.
The king and the residents kept night vigil and prayed whole night in the temple. They all started praising this way, “O Dhatri(Mother Earth), you are born by Brahma & a from of him . You destroy all the sins Please accept our obeisance to you. Now accept my ardhya(scented water offering). You are honored by even Lord Shri Ram Chandra. I pray you, kindly destroy all my sins. ” Thus praying and singing bhajans, everyone stayed awake whole night at the temple.
At the night, one hunter happened to come across at the temple.He was sinful and cunning. The hunter used to live outside the city and was killing animals mercilessly to feed himself and his family and thus had incurred a lot sins. He was distraught by hunger and thirst that day as he could find any prey that day.He sat down in a corner of the temple to see festivities and the Jagaran. He started listening to the stories of Lord Vishnu and Ekadashi while he was suffering from hunger and thirst. Like the king and courtiers, he also spent the whole night staying awake and listening to the glories of Lord Vishnu. In the morning, everybody returned back their houses. The hunter also went back to his home. He ate food only when he returned home. After sometime the hunter died.
He was supposed to go to hell because of his bad deeds and sins accumulated due to violence. But instead due to the effect of the fasting on Amalaki Ekadashi and the staying awake at the night, he was born in the house of King Vidoorath and he was named as prince Vasurath.
He grew up to become a King and started ruling ten thousand villages, and commanded a four flanked strong army including divisions of Elephants, Horses, Chariots and Infantry.
His brilliance was like the Sun. He had an amiable aura like Moon, in the gallantry, he was like Lord Vishnu and in forgiveness was like the earth. He was a very truthful, religious, charitable and a great devotee of Lord Vishnu. He always used to perform great yajnas. He used to justice with equanimity to all his subjects. He was very generous and used to donating everyday.
One day the king went to forest on hunting. He forgot his way in the jungle. He lost his sense of direction and sat down below a tree in the forest itself. King had kept a fast of Amalaki Ekadashi on that day. He meditated upon Lord Vishnu and slept.
After a while, the mountain bandits came there and found King alone and sleeping. They were earlier evicted and punished by King Vasurath. They ran towards the King, calling to kill him.The bandits said, “This king has killed our relatives, parents, sons, grandchildren, etc. and has evicted us from the country, so we must kill him.” Saying this, they attacked king with many weapons including spears and arrows. But to their great surprise all the weapons were destroyed after falling on the body of the king They blows appeared like flower shower on sleeping king.
Then the weapons of those bandits started to strike back on them only. The bandits started falling down on ground , some even fell unconscious.
At the same way a divine woman appeared out from the body of the King. Even though she was very beautiful, she was seemed furious. Her eyebrows were frowning from anger. Her eyes were red , burning from rage, as if she was the Goddess of death only.
The woman ran towards the bandits and killed them all in short time. King woke up because of all the commotion. He found all bandits dead. Seeing his enemies dead, the king muttered to himself, “Who killed these enemies? Who is my friend in this forest?
The king was thinking like this , suddenly he heard a heavenly voice, “O King! Who else can help you in this world other than Lord Vishnu?”
After hearing this proclamation from heaven, the king bowed down to Lord Vishnu and returned to his ingdom and began to rule happily.
Maharshi Vashishth said, “O Rajan, this was the effect of the Amalaki Ekadashi fast, which protected him. The people who fast for Amalaki Ekadashi are successful in every task in the world and finally reach the abode of Lord Vishnu in afterlife.”
Years & Dates of This Ekadashi:
Date in 2018 – 26 February 2018, Day- Monday || Nakshatra- Pushya || Chandra- Cancer(Karka)
Links To All 26 Ekadashis of 13 Months (Adhikmas Included)
Month/हिंदी महीना | Ekadashi Name/एकादशी का नाम |
Margashirsha Krishna Paksha/मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष | Utpanna Ekadashi/उत्पन्ना एकादशी |
Margashirsha Shukla Paksha/मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष | Mokshada Ekadashi/मोक्षदा एकादशी |
Paush Krishna Paksha /पौष कृष्ण पक्ष | Safala Ekadashi /सफला एकादशी |
Paush Shukla Paksha/पौष शुक्ल पक्ष | Putrada Ekadashi /पुत्रदा एकादशी |
Magh Krishna Paksha/माघ कृष्ण पक्ष | Shattila Ekadashi /षटतिला एकादशी |
Magh Shukla Paksha/माघ शुक्ल पक्ष | Jaya Ekadashi /जया एकादशी |
Falgun Krishna Paksha/ फाल्गुन कृष्ण पक्ष | Vijaya Ekadashi/विजया एकादशी |
Falgun Shukla Paksha/फाल्गुन शुक्ल पक्ष | Amalaki Ekadashi /आमलकी एकादशी |
Chaitra Krishna Paksha/चैत्र कृष्ण पक्ष | Papmochani Ekadashi /पापमोचनी एकादशी |
Chaitra Shukla Paksha/चैत्र शुक्ल पक्ष | Kamada Ekadashi /कामदा एकादशी |
Vaishakh Krishna Paksha/वैशाख कृष्ण पक्ष | Varuthini Ekadashi/ वरुथिनी एकादशी |
Vaishakh Shukla Paksha/वैशाख शुक्ल पक्ष | Mohini Ekadashi/मोहिनी एकादशी |
Jyesth Krishna Paksha/ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष | Apara Ekadashi /अपरा एकादशी |
Jyesth Shukla Pakhsa/ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष | Nirjala Ekadashi /निर्जला एकादशी |
Ashadh Krishna Paksha/आषाढ़ कृष्ण पक्ष | Yogini Ekadashi/योगिनी एकादशी |
Ashadh Shukla Paksha/आषाढ़ शुक्ल पक्ष | Devshayani Ekadashi / देवशयनी एकादशी |
Shravan Krishna Paksha/श्रवण कृष्ण पक्ष | Kamika Ekadashi / कामिका-कामदा एकादशी |
Shravan Shukla Paksha/श्रवण शुक्ल पक्ष | Shravana Putrada Ekadashi /श्रावण पुत्रदा एकादशी |
Bhadrapad Krishna Paksha/भाद्रपद कृष्ण पक्ष | Aja Ekadashi /अजा एकादशी |
Bhadrapad Shukla Paksha /भाद्रपद शुक्ल पक्ष | Parivartini-Parsva Ekadashi /परिवर्तिनी-पार्श्व एकादशी |
Ashwin Krishna Paksha/आश्विन कृष्ण पक्ष | Indira Ekadashi/इंदिरा एकादशी |
Ashwin Shukla Paksha/ आश्विन शुक्ल पक्ष | Papankusha Ekadashi /पापांकुशा एकादशी |
Kartik Krishna Paksha /कार्तिक कृष्ण पक्ष | Rama Ekadashi /रमा एकादशी |
Kartik Shukla Paksha/कार्तिक शुक्ल पक्ष | Dev Prabodhini Ekadashi /देव प्रबोधिनी एकादशी |
Adhikmas Krishna Paksha/अधिकमास कृष्ण पक्ष | Parama Ekadashi /परमा एकादशी |
Adhikmas Shukla Paksha/अधिकमास शुक्ल पक्ष | Padmini Ekadashi/पद्मिनी एकादशी |
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