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श्री विश्वकर्मा जी चालीसा-1

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श्री विश्वकर्मा जी चालीसा-1

॥दोहा॥

श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊँ, चरणकमल धरिध्य़ान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान ।।

॥चौपाई॥

जय श्री विश्वकर्म भगवाना जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ।।
शिल्पाचार्य परम उपकारी भुवनापुत्र नाम छविकारी ।।

अष्टमबसु प्रभाससुत नागर शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ।।
अद्रभुत सकल सुष्टि के कर्त्ता सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्त्ता ।।

अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं कोइ विश्व मँह जानत नाही ।।
विश्व सृष्टिकर्त्ता विश्वेशा अद्रभुत वरण विराज सुवेशा ।।


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एकानन पंचानन राजे द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ।।
चक्रसुदर्शन धारण कीन्हे वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ।।

शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा सोहत सूत्र माप अनुरूपा ।।
धमुष वाण अरू त्रिशूल सोहे नौवें हाथ कमल मन मोहे ।।

दसवाँ हस्त बरद जग हेतू अति भव सिंधु माँहि वर सेतू ।।
सूरज तेज हरण तुम कियऊ अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ।।

चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ।।
विष्णुहिं चक्र शुल शंकरहीं अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ।।

इंद्रहिं वज्र वरूणहिं पाशा तुम सबकी पूरण की आशा ।।
भाँति भाँति के अस्त्र रचाये सतपथ को प्रभु सदा बचाये ।।

अमृत घट के तुम निर्माता साधु संत भक्तन सुर त्राता ।।
लौह काष्ट ताम्र पाषाना स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ।।

विद्युत अग्नि पवन भू वारी इनसे अद्भुत काज सवारी ।।
खान पान हित भाजन नाना भवन विभिषत विविध विधाना ।।

विविध व्सत हित यत्रं अपारा विरचेहु तुम समस्त संसारा ।।
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका विविध महा औषधि सविवेका ।।

शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ।।
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ।।

भे आतुर प्रभु लखि सुरशोका कियउ काज सब भये अशोका ।।
अद्भुत रचे यान मनहारी जलथलगगन माँहिसमचारी ।।

शिव अरु विश्वकर्म प्रभु माँही विज्ञान कह अतंर नाही ।।
बरनै कौन स्वरुप तुम्हारा सकल सृष्टि है तव विस्तारा ।।

रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा तुम बिन हरै कौन भव हारी ।।
मंगलमूल भगत भय हारी शोक रहित त्रैलोक विहारी ।।

चारो युग परताप तुम्हारा । अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ।।
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता । वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ।।

मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा सबकी नित करतें हैं रक्षा ।।
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा हवै निष्काम करै निज कर्मा ।।

प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई विपदा हरै जगत मँह जोइ ।।
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ।।

इक सौ आठ जाप कर जोई छीजै विपति महा सुख होई ।।
पढाहि जो विश्वकर्मचालीसा होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ।।

विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे । हो प्रसन्न हम बालक तेरे ।।
मैं हूँ सदा उमापति चेरा । सदा करो प्रभु मन मँह डेरा ।।

॥दोहा॥

करहु कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिवरुप ।
श्री शुभदा रचना सहित, ह्रदय बसहु सुरभुप ।।

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