“भक्तशिरोमणि श्रीहनुमानजी”
एक बार की बात है | भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, तीनो भाइयों को श्री राम जी की सेवा की बहुत ललक रहती थीL लेकिन चतुर चपल हनुमान जी हमेशा प्रभु की सेवा में तत्पर रहते थे| सुबह से शाम तक कोई भी सेवा का मौका छोड़ते ही नहीं थे| बहुत प्रयास करने पर भी तीनो भाइयों को कोई सेवा का अवसर नहीं मिल पाता था|
अंततोगत्वा तीनों भाइयों ने माता सीताजी से मिलकरअपनी समस्या सुनाई| बोले ,”माता हनुमानजी हमें रामजी की सेवा करने का मौक़ा ही नहीं देते, पूरी सेवा अकेले ही किया करते हैं। अत: अब रामजी की सेवा का पूरा काम हम ही करेंगे, हनुमानजी के लिये कोई भी काम नहीं छोड़ेंगे।”
माता सीताजी ने उन्हें बहुत प्रकार से समझाया लेकिन फिर भी वो नहीं माने। प्रभु की सेवा का अवसर उन्हें भी मिले यही उनका परम उद्देश्य था। उन्होंने कहा कि माता एक बार आप अवसर दें। हमारे साथ अन्याय हो रहा है। प्रभु की सेवा का अवसर हमें भी मिलानाचाहिए। बहु भांति समझाने पर भी जब वो नहीं माने तो माता ने प्रभु इच्छा समझकर अपनी सहमति दे दी। ऐसा विचार करके भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने सेवा का पूरा काम आपस में बाँट लिया।
कामों की सूची बना ली गयी और सबने उसमे से अपने-अपने काम निर्धारित कर लिए।प्रभु के जगाने से लेकर उनके रात्रि के विश्राम के समय तक सभी सेवाएं उन्होंने बात लीं। हनुमान जी के लिए कोई भी काम नहीं छोड़ा गया।
अगले दिन जब हनुमानजी सेवा के लिये सामने आये, तब उनको रोक दिया और कहा कि आज से प्रभु की सेवा बाँट दी गयी है|और कहा कि आज से आपके लिये कोई सेवा नहीं है।
हनुमानजी ने कहा , “अच्छा कार्यों की सूची ही दिखा दें| हो सकता हो कोई कार्य रह गया हो|”
भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को पूरा विश्वास था की उन्होंने कोई कार्य छोड़ा नहीं है| अतः कामों की सूची पत्र हनुमान जी को सौंप दी गयी | हनुमानजी ने देखा कि दिन के सभी कार्य तो सबने आपस में बाँट लिए हैं | मन ही मन प्रभु श्री राम से प्रार्थना की | कुछ सोचने पर ध्यान आया कि भगवान् को जम्हाई (जँभाई) आने पर चुटकी बजाने की सेवा तो किसी ने भी ली ही नहीं है ।
उन्होंने कहा की बाकी सब कार्य तो आपने बाँट लिए हैं लेकिन एक कार्य रह गया है | तीनो भाई सोच में पड़ गए की हमने तो सारी सेवाएं लिख ली थी अब क्या रह गया था |उन्होंने पुछा ,” कौन सी सेवा रह गयी हनुमानजी|”
हनुमान जी ने कहा , सब सेवाएं तो हो गयी हैं लेकिन भगवान को जम्हाई आने पर चुटकी कौन बजायेगा। इसके लिए प्रभु को कष्ट देना उचित नहीं है। अतः यह सेवा मैं करूंगा।”
तीनो भाई हतप्रभ रह गए| यह सेवा किसी के ध्यान में ही नहीं आयी थी !
अत: हनुमान जी ने यही सेवा अपने हाथ में ले ली।
हनुमानजी में प्रभु की सेवा करने की लगन थी। जिसमें लगन होती है, उसको कोई-न-कोई सेवा मिल ही जाती है। प्रभु को लीला दिखानी थी , उनके भक्त के साथ कोई भेद भाव करे उन्हें कैसे सुहाता| युक्ति ऐसी निकली की हनुमान जी आनंदमग्न हो गए|
अब हनुमान जी को सेवा कौन कहे दिन भर का आनंद हो गया।, हर समय प्रभु के मुखारविंद का दर्शन प्राप्त हो रहा था। अब हनुमानजी दिन भर रामजी के सामने ही बैठे रहे, और उनके मुख की तरफ देखते रहे; क्योंकि रामजी को किस समय जम्हाई आ जाय, इसका कोई क्या पता ?
दिन बीता , संध्या गयी अब रात हुई, तब भी हनुमानजी उसी तरह बैठे हैं | भरतादि सभी भाइयों ने हनुमानजी से कहा कि अब प्रभु के विश्राम का समय हो गया है | भगवान अब विश्राम कक्ष में जाएंगे | अब आप जाएँ क्योंकि रात में आप यहाँ नहीं बैठ सकते| अतःअब आप चले जायँ।”
हनुमानजी बोले, “कैसे चला जाऊँ ? पता नहीं रात को न जाने कब प्रभु रामजी को जम्हाई आ जाय ! मुझे कैसे पता चलेगा और यही तो सेवा का एक अवसर मुझे मिला है। उसमे मैं बिल्कुल चूकना नहींचाहता।”
जब बहुत भांति आग्रह किया गया, तब हनुमानजी वहाँ से चले गये, और राजमहल के कंगूरे पर जाकर बैठ गये। वहाँ बैठकर उन्होंने लगातार चुटकी बजाना शुरू कर दिया ; क्योंकि रामजी को न जाने कब जम्हाई आ जाय ! हनुमान जी प्रभु प्रेम में मगन हो कर भजन गाते जाते और चुटकी बजाते जाते। जो सेवा उन्हें मिली थी उसको बिना किसी चूक निभाने के लिए प्रतिबद्ध थे हनुमानजी।
प्रभु भक्त वत्सल हैं और भक्त के प्रेमपूर्वक की हुई सारी सेवाओं को स्वीकार करते हैं| जब हनुमान जी चुटकी बजाने लगे तो प्रभु को उनकी सेवा स्वीकारना ही था| प्रभु ने जम्हाई के लिए ऐसा मुँह खोला की बंद ही नहीं किया| हनुमान जी लगातार चुटकी बजा रहे थे और प्रभु उनकी चुटकी सेवा खुले मुंह से स्वीकार कर रहे थे|
इधर प्रभु का लगातार खुला मुख खुला देखकर माता सीताजी बड़ी व्याकुल हो गईं | महल में शोर मच गया की न जाने रामजी को क्या हो गया है ! भरत, लक्ष्मण शत्रुघ्न सभी आ गये।
राजवैद्यों को बुलाया गया| वो भी कुछ समझ नहीं सके| ऐसा अद्भुत रोग तो उन्होंने पहली बार देखा था| वे भी कुछ कर नहीं सके। उन्होंने अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी||
राजगुरु वसिष्ठजी आये| उन्होंने प्रभु की अवस्था देखी | अचानक उन्हें ध्यान आया तो उनको आश्चर्य हुआ कि ऐसी चिन्ताजनक स्थिति में हनुमानजी दिखाई नहीं दे रहे हैं ! और सब तो यहाँ हैं, पर हनुमानजी कहाँ हैं ?” उन्होंने सबसे पूछा कि हनुमानजी कहाँ हैं?
तब सबने सारी घटना सविस्तार बताई कि कैसे हनुमान जी प्रभु की सेवा के लिए रात्रि में भी उनके पास रुकना चाहते थे और कैसे -कैसे उनको समझा-बुझा के भेजा गया|
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराये| उनकी समझ में सारा माजरा आ गया| उन्होंने तुरंत हनुमान जी को बुला के लाने के लिए कहा||
‘ खोज करने पर हनुमानजी छत पर बैठे चुटकी बजाते हुए मिले। उनको बुलाया गया और वे रामजी के पास आये|प्रभु के पास आते ही उन्होंने प्रणाम किया| जैसे ही उनका चुटकी बजाना बंद हुआ तो प्रभु श्री रामजी का मुख स्वाभाविक स्थिति में आ गया।
अब सबकी समझ में आया कि यह सब लीला हनुमानजी के चुटकी बजाने के कारण ही थी।
प्रभु ने अपनी लीला के द्वारा भक्त का मान भी रखा और तीनो भाइयों को बिना कुछ कहे शिक्षा भी दी| जहाँ चाह वहां राह|
सुनिए गाना एक बहुत पुरानी फिल्म से इसी अवसर के ऊपर ……
जय हो भक्तवत्सल दीनदयाल प्रभु श्री राम की!
जय हो भक्त शिरोमणि भक्ति के आदर्श श्री हनुमानजी की!
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