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कालिदास की परीक्षा

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कालिदास की परीक्षा

कालिदास बहुत बड़े विद्वान हो चुके थे | चारो ओर उनकी प्रसिद्धि की डंका बज रहा था | इससे उनमे किंचित अभिमान जागृत हो चुका था| माँ सरस्वती का स्नेहपात्र कालिदास अब महान कवि चुके थे| लेकिन माँ अपने बच्चों की ग़लतियाँ सुधारने में हमेशा तत्पर रहती हैं |

एक दिन कालिदास सुदूर यात्रा में रास्ता भटक गये | भूख- प्यास ने आकुल किया तो निकटवर्ती गाँव की ओर मुड़े | गाँव के बाहर ही कुएँ पर एक वृद्धा स्त्री पानी निकाल रही थी |

कालिदास ने निवेदन किया: माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.

स्त्री बोली  बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।
मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालीदास ने कहा  मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।


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स्त्री बोली  तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।

कालिदास ने कहा  मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली  तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।
पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?
.
(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)
कालिदास बोले  मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा  नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)
कालिदास बोले  मैं हठी हूँ ।

स्त्री बोली  फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)
कालिदास ने कहा  फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

स्त्री ने कहा  नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।
मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)

वृद्धा ने कहा  उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा  शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।
.
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।

शिक्षा :-
विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।
दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए…..
*अन्न के कण को*
“और”
*आनंद के क्षण को*

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