आज 6 फरवरी 2022 के दिन पूरे देश और दुनिया से गीत संगीत के एक अध्याय का अंत हो गया। भारत की स्वर सम्राज्ञी ‘लता मंगेशकर‘ भौतिक रूप से हम सबको छोड़कर चली गईं।
हमारी सबसे प्रसिद्ध गायिका स्वरकोकिला भारत रत्न से सम्मानित जिनकी वाणी में मां सरस्वती खुद विराजमान थी। अपने स्वर से सबका दिल जीतने वाली खासकर से उनका गाना ए मेरे वतन के लोगो जिसने पूरे देश को भावुक कर दिया था अब वो हमारे बीच नहीं रही कल मां सरवती जी का दिन था और आज मां सरस्वती के रूप में लता जी के जाने पर अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि।हमारा नमन स्वीकार करो देवी !
भगवान उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे। ॐ शांति ! ॐ शांति! ॐ शांति !
लता जी का शरीर पूरा हो गया। कल सरस्वती पूजा थी, आज माँ विदा हो रही हैं। लगता है जैसे माँ सरस्वती इस बार अपनी सबसे प्रिय पुत्री को ले जाने ही स्वयं आयी थीं।अब यह मात्र संयोग है या क्या..आज सरस्वती प्रतिमा का विसर्जन होना है। देवी सरस्वती की मूर्ति स्वरूपा देवी लता मंगेशकर जी ने अपना देह भी सरस्वती प्रतिमा विसर्जन के दिन त्याग दिया। आज लता जी अपने मूल स्वरूप में विलीन हो गईं।
लेकिन जब तक ये दुनिया रहेगी तब तक वो अपनी आवाज़ के ज़रिए हमेशा हमारे साथरहेंगी। उनके सामने बड़े से बड़े अवार्ड और सम्मान भी नतमस्तक थे। उनका कद और उपलब्धियाँ इतनी ज़्यादा थी, कि उनके सामने हर हरसम्मान छोटा लगता था। अपनी जिंदगी में उन्होंने जो ऊंचाइयां तय की, आज तक कोई ऐसा मक़ाम नहीं छू पाया।
मृत्यु सदैव शोक का विषय नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता है। लता जी का जीवन जितना सुन्दर रहा है, उनकी मृत्यु भी उतनी ही सुन्दर हुई है।
93 वर्ष का इतना सुन्दर और धार्मिक जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है। लगभग पाँच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है, और हृदय से सम्मान दिया है।
उनके पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब उस तेरह वर्ष की नन्ही जान के कंधे पर छोटे छोटे चार बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेवारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा?
भारत पिछले अस्सी वर्षों से लता जी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में, विषाद में,ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में… हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है।
लता जी गाना गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था।
कोई उनके घर जाता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मन्दिर दिखातीं थीं। बस इन्ही तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था उन्होंने। सोच कर देखिये, कैसा दार्शनिक भाव है यह… इन तीन के अतिरिक्त सचमुच और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता संसार में। सब आते-जाते रहने वाली चीजें हैं।
कितना अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन कैरियर में लगभग 36 भाषाओं में हर रस/भाव के 50 हजार से भी अधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपना पहले और अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान भजन ही गाया है। ‘ज्योति कलश छलके’ से ‘दाता सुन ले’
तक कि यात्रा का सौंदर्य यही है कि लताजी न कभी अपने कर्तव्य से डिगीं न अपने धर्म से! इस महान यात्रा के पूर्ण होने पर हमारा रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता जी।
साभार
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