साधना करते समय साधक को विभिन्न गंधों का अनुभव होता है। सामान्यतः यह साधना करते समय गंध की पहला अनुभव होता है। यह गंध इतर शक्तियों की उपस्थिति या उनके प्रभाव की परिचायक होती है। यह गंध अच्छी या बुरी दोनों प्रकार की हो सकती हैं। हालाँकि किसी गंध से आप निश्चयपूर्वक इतर योनि की प्रजाति निश्चित नहीं कर सकते। फिर भी श्री मनोज पंडित जी ने कुछ प्रकार की गंधों से इतर शक्तियों का सम्बद्ध बताया है। प्रस्तुत है यह सारणी आपके लिए ,
तेज मादक गंध में कई तरह की होती है।
- मोगरे की तीखी गंध – इनमें यक्षिणियां , काल भैरव , भगवान् शंकर के उग्र रूप वाले देव और गण आते हैं।
- मोगरे की भीनी भीनी गंध (मीठी गंध ) – इनमें अप्सराएं , किन्नरियां , माँ दुर्गा , माँ कमला आते हैं।
- गुलाब की तीखी सुगंध – इनमें माँ महाकाली ,कामकला काली, श्मशान काली, पवन पुत्र हनुमान जी के उग्र रूप ,भगवान् नरसिंह , आकाश भैरव आते हैं।
- गुलाब की मीठी सुगंध – भगवन श्री कृष्ण , माता राधा जी , माँ लक्ष्मी जी,माँ लक्ष्मी जी की सारी योगिनी शक्तियां, महादेवी षोडशी त्रिपुर सुंदरी , शुद्ध पवित्र आत्माएं आती हैं।
- काला भूत (एक तरह का इत्र होता है )- इसमें भूमिया बाबा, सैय्यद , पाक जिन्न आदि आते हैं।
- फिरदौस– इसमें जिन्नात, रूहें, माता लक्ष्मी से सम्बंधित शुक्रवारी शक्तियां , छोटी योनि के इतर शक्तियां , ग्राम देवता आते हैं।
इन शक्तियों के इन इत्रों से सम्बन्ध होते हैं।
ज्ञान सौजन्य : पंडित श्री मनोज
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