श्री बाबा गंगाराम चालीसा
॥दोहा॥
अलख निरंजन आप हैं , निरगुण सगुण हमेश ।
नाना विधि अवतार धर , हरते जगत कलेश । ।
बाबा गंगारामजी , हुए विष्णु अवतार ।
चमत्कार लख आपका , गूंज उठी जयकार । ।
॥चौपाई॥
गंगाराम देव हितकारी , वैश्य वंश प्रकटे अवतारी । ।
पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ , धन्य – धन्य पितु मातु भयेउ ।
उत्तम कुल उत्तम सतसंगा , पावन नाम राम अरू गंगा ।
बाबा नाम परम हितकारी , सत सत वर्ष सुमंगलकारी ।
बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं , तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई ।
जो जन बाबा में चित लावा , तेहिं परताप अमर पद पावा ।
नगर झुंझनू धाम तिहारो , शरणागत के संकट टारो ।
धरम हेतु सब सुख बिसराये , दीन हीन लखि हृदय लगाये ।
एहि विधि चालीस वर्ष बिताये , अन्त देह तजि देव कहाये ।
देवलोक भई कंचन काया , तब जनहित संदेश पठाया ।
निज कुल जन को स्वप्न दिखावा , भावी करम जतन बतलावा ।
आपन सुत को दर्शन दीन्हों , धरम हेतु सब कारज कीन्हों ।
नभ वाणी जब हुई निशा में , प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में ।
ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा , जिमि जनहित प्रकटेउ सब ईशा ।
चमत्कार एहि भांति दिखाया , अन्तरध्यान भई सब माया ।
सत्य वचन सुनि करहिं विचारा , मन महँ गंगाराम पुकारा ।
जो जन करई मनौती मन में , बाबा पीर हरहि पल छन में ।
ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा , त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहि जांचा ।
उच्च मनोरथ शुचि आचारी , राम नाम के अटल पुजारी ।
जो नित गंगाराम पुकारे , बाबा दुःख से ताहिं उबारे ।
बाबा में जिन्ह चित्त लगावा , ते नर लोक सकल सुख पावा । ।
परहित बसहिं जाहिं मन मांही , बाबा बसहिं ताहिं तन मांही ।
धरहिं ध्यान रावरी मन में , सुखसंतोष लहै न मन में ।
धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा , पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा ।
गंगाराम नाम जो गावे , लहि बैकुंठ परम पद पावे ।
बाबा पीर हरहिं सब भांति , जो सुमरे निश्छल दिन राती ।
दीन बन्धु दीनन हितकारी , हरौ पाप हम शरण तिहारी ।
पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा , सदा करो संतन मॅह बासा ।
तारण तरण गंग का पानी , गंगाराम उभय सुनिशानी ।
कृपासिंधु तुम हो सुखसागर , सफल मनोरथ करहु कृपाकर ।
झुंझनू नगर बड़ा बड़भागी , जहँ जन्में बाबा अनुरागी ।
पूरन ब्रह्म सकल घटवासी , गंगाराम अमर अविनाशी ।
ब्रह्म रूप देव अति भोला , कानन कुण्डल मुकुट अमोला ।
नित्यानन्द तेज सुख रासी , हरहु निशातन करहु प्रकासी ।
गंगा दशहरा लागहिं मेला , नगर झुंझनू मॅह शुभ बेला ।
जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा , छवि निरखि मन हरष अपारा ।
प्रात : काल ले नाम तुम्हारा , चौरासी का हो निस्तारा ।
पंचदेव मन्दिर विख्याता , दरशन हित भगतन का तांता ।
जय श्री गंगाराम नाम की , भवतारण तरि परम धाम की ।
‘महावीर’ धर ध्यान पुनीता , विरचेउ गंगाराम सुगीता।
॥दोहा॥
सुने सुनावे प्रेम से , कीर्तन भजन सुनाम ।
मन इच्छा सब कामना , पुरई गंगाराम ।।
।।इति श्री बाबा गंगाराम चालीसा ।।
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