एक बार श्री नीम करोली ( नीब करोरी) महाराज जी कहीं जल्दी में जा रहे थे। जिस कार मे बाबाजी बैठे थे वह चलते चलते एक पुल पर आ गई। पुल पर सामने से गन्ने से लदी हुई बैलगाड़ियाँ आ रही थी जिससे रास्ता अवरूद्ध हो गया था। गुजरने की जगह नई दिखने के कारण ड्राईवर ने ग़ाडी की गति धीमी कर दी।
महाराज जी बोले,” गाड़ी तेज़ चलाओ।”
ड्राईवर बोला,” महाराज जी इतनी जगह नहीं है कि गाड़ी निकल सके। किधर से जाऊं।” बाबा ने फिर से तेज़ चलाने को बोले, ड्राईवर ने पुनः असमर्थता व्यक्त की।
तब बाबा बुलंद आवाज में बोले,”अपनी आँखें बन्द कर और चला।”
ड्राईवर इस बात पर थोड़ा घबराया, पर महाराज जी यथावत बोले, “हमने कही न कि आँखें बन्द कर और चला गाड़ी।”
ड्राइवर बाबा का पक्का भक्त था उसने बाबा के कथनानुसार अपनी आँखें बन्द कर ली और गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी। थोड़ी देर बाद जब उसने आँखें खोली तो पाया कि गाड़ी पुल के पार निकल गई थी। उसे सहसा इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, पर लीलाधारी कब लीला कर जाये, किसी को पता नहीं।
ड्राइवर बाबा का पक्का भक्त था उसने बाबा के कथनानुसार अपनी आँखें बन्द कर ली और गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी। थोड़ी देर बाद जब उसने आँखें खोली तो पाया कि गाड़ी पुल के पार निकल गई थी। उसे सहसा इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, पर लीलाधारी कब लीला कर जाये, किसी को पता नहीं।
ऐसी ही एक और घटना हुई थी, जिसका जिक्र हम आगे के पोस्ट में करेंगे।
जय श्री नीब करौरी बाबा

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