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यक्ष प्रश्न

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आज हम बहुधा लेखों में ‘यक्ष प्रश्न’ का मुहावरा पढ़ते हैं जिसका अर्थ है ऐसा सवाल जिसका उत्तर ढूढ़ना बहुत ही चुनौती पूर्ण है। यहाँ कहावत महाभारत के उस दृष्टान्त से ली गयी है जब युधिष्ठिर को अपने मृत भाइयों को पुनर्जीवित करने के लिए एक यक्ष के कठिनतम प्रहसनों के उत्तर देने पड़े थे। यह वास्तविक जीवन में एक महान परीक्षा थी जी जिसमें सभी पांडवों के जीवन दांव पर लगे थे।

कुल सौ प्रश्न किए थे यक्ष ने युधिष्ठिर से, लेकिन क्या आप इन प्रश्नों के जवाब जानते हैं?

यह तब की बात है जब पाण्डव अपने तेरह वर्ष के अज्ञातवास पर थे, और इस दौरान वे घने जंगलों में वास कर रहे थे।

धर्म देव को पता था कि युद्ध होकर रहेगा। वह पांडवों की तैयारी आंकना चाहते थे। उन्होंने युधिष्ठिर की परीक्षा लेने की सोची और हिरण का रूप धरकर वहां पहुंचे जहां पांडव निवास कर रहे थे। हिरण पांडवों के निवास से थोड़ी ही दूर पर स्थित ब्राह्मणों की कुटिया में गया और आग जलाने वाली अरणी के ऊपर अपनी सींगो को रगड़ने लगा। रगड़ते वक्त अरणी उसकी सींगो में फंस गयी। ब्राह्मणों ने जब हिरन को सींग रगड़ते देखा तो उसकी तरफ दौड़े। हिरण वहां से भागा अरणी उसकी सींगो में उलझे होने के कारण वह अरणी सहित ही वन में भाग गया।

सभी भाई पेड़ की छाया में बैठकर विश्राम कर रहे थे कि अचानक हैरान और परेशान ब्राह्मण उनके पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि एक हिरण उनके हाथों से अरणी (आग जलाने की लकड़ी) लेकर भाग गया, उन्हें वह वापस चाहिए। ब्राह्मण ने युधिष्ठिर से प्रार्थना की कि वह हिरण से अरणी वापस पाने में मदद करें।

सभी पांडव हिरण को खोजने निकले. उसका पीछा करते वे थक गए और प्यास लग गई। एक जगह थककर बैठ गए।

पांचों भाइयों ने मुनि की सहायता करने हेतु उस हिरण की खोज आरंभ कर दी। खोज करते हुए वे सभी काफी आगे निकल गए, गर्मी का समय था तो वे काफी थक भी गए और प्यास लग गई। एक जगह थककर बैठ गए।अब उन्हें इस तपती गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी चाहिए था, लेकिन दूर-दूर तक उन्हें कोई जलाशय ना दिखा।

अंतत: पानी खोजने का काम सबसे छोटे भाई सहदेव को सौंपा गया। युधिष्ठिर ने सहदेव से कहा कि आसपास देखो कहीं कोई जलाशय हो तो पीने के पानी का इंतजाम करो।

सहदेव पानी की खोज में निकले। कुछ दूर चलने पर सहदेव को एक जलाशय दिखाई दिया। वह वहां पहुंचा और उसने देखा कि जलाशय में बेहद ठंडा पानी है, पानी साथ ले जाने की बजाय सबसे पहले अपनी प्यास बुझाने के लिए सहदेव पानी पीने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तो एक आवाज़ सुनाई दी।

तभी एक आवाज आई- यह जलाशय मेरा है। अगर पानी पीना है तो पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो।

सहदेव ने आसपास देखा तो उन्हें सामने एक पैर के पास खड़ा एक बगुला दिखाई दिया।

यह बगुला एक यक्ष था जो चाहता था कि सहदेव पहले उसके प्रश्नों का उत्तर दे और फिर पानी पीये। लेकिन सहदेव ने प्यास से बेचैन होने के कारण यक्ष की एक ना सुनी और जैसे ही पानी अपने होठों से लगाया वह चक्कर खाकर गिर गया।

पानी पीते ही उनकी मृत्यु हो गई। जब काफी देर तक सहदेव ना लौटा तो अन्य भाईयों को चिंता होने लगी।

सहदेव को खोजने, युधिष्ठिर ने नकुल को भेजा। नकुल ने भी वह आवाज सुनी, अनसुना किया और पानी पीते ही मृत्यु हो गई।

फिर एक-एक करके क्रमानुसार अर्जुन और भीम सभी उस जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की चेतावनी सुने बिना पानी पी लिया और बदले में यक्ष ने उन्हें मृत कर दिया।सबकी वही गति हुई।

अब बचे थे युधिष्ठिर… सभी भाई कब से निकले थे लेकिन वापस ना लौटे। अब आखिरकार युधिष्ठिर ने सबको खोजने का फैसला किया औरस्वयं निकल पड़े। जब वे जलाशय के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके चारो भाई जमीन पर गिरे हुए हैं, लेकिन क्यों, इस बात से अनजान थे युधिष्ठिर।

जलाशय के किनारे चारो भाई मृत पड़े थे।ऐसे महावीरों को मारना किसी साधारण जीव के तो बस की बात नहीं है. शरीर पर चोट का भी निशान नहीं, यानी कोई युद्ध भी नहीं हुआ था।

युधिष्ठिर ने अपने सामने शीतल जल का जलाशय देखा, और कुछ भी अन्य करने से पहले अपनी प्यास बुझाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। यक्ष ने उन्हें चेतावनी दी कि वे पहले उसके प्रश्नों का उत्तर दें, तभी वह उन्हें पानी पीने देगा।

युधिष्ठिर ने कहा मैं आपके सभी प्रश्नों का उत्तर दूंगा लेकिन पहले आप अपने वास्तविक रूप में आएं। बगुले ने एक यक्ष का रूप ले लिया।

युधिष्ठिर के आग्रह पर यक्ष ने उनसे कुल सौ सवाल पूछे लेकिन यहां हम आपके सामने कुछ गिने-चुने सवाल रखने जा रहे हैं। साथ ही जानिए इन सवालों पर युधिष्ठिर का क्या जवाब था :-

यक्ष ने अपना पहला सवाल किया… उसने युधिष्ठिर से पूछा कि कौन हूं मैं?
जिस पर जवाब आया कि ‘तुम न शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।

अगला प्रश्न… यक्ष – जीवन का उद्देश्य क्या है?
युधिष्ठिर – जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।

यक्ष – जन्म का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं। फिर अगला प्रश्न… यक्ष – जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है? युधिष्ठिर – जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।

इन सवालों के बाद भी यक्ष नहीं रुके, वे एक के बाद एक सवाल करते रहे, तब तक जब तक आगे से कोई जवाब ना आए। उनका अगला सवाल था कि वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
जिस पर जवाब आया कि ‘जैसी वासनाएं वैसा ही जन्म होता है। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म’।

यक्ष – संसार में दुःख क्यों है?
युधिष्ठिर – लालच, स्वार्थ, भय संसार के दुःख का कारण हैं।

यक्ष – तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
युधिष्ठिर – ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।

यक्ष – क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या रूप है उसका? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
युधिष्ठिर – हे यक्ष! कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही अध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।

यक्ष – उसका स्वरूप क्या है?
युधिष्ठिर – वह सत्-चित्-आनन्द है, वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है।

यक्ष – वह अनाकार स्वयं करता क्या है?
युधिष्ठिर – वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।ईश्वर की रचना किसने की?

यक्ष – यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
युधिष्ठिर – वह अजन्मा अमृत और अकारण है।

यक्ष – भाग्य क्या है?
युधिष्ठिर – हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।

यक्ष – सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
युधिष्ठिर – सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।

यक्ष – चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।

यक्ष – सच्चा प्रेम क्या है?
युधिष्ठिर – स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।

यक्ष – तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
युधिष्ठिर – जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।

यक्ष – आसक्ति क्या है?
युधिष्ठिर – प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।

यक्ष – बुद्धिमान कौन है?
युधिष्ठिर – जिसके पास विवेक है।

यक्ष – नशा क्या है?
युधिष्ठिर – आसक्ति।

यक्ष – चोर कौन है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।

यक्ष – जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
युधिष्ठिर – जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।

यक्ष – कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
युधिष्ठिर – यौवन, धन और जीवन।

यक्ष – नरक क्या है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों की दासता नरक है।

यक्ष – मुक्ति क्या है?
युधिष्ठिर – अनासक्ति ही मुक्ति है।

यक्ष – दुर्भाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – मद और अहंकार।

यक्ष – सौभाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव।

यक्ष – सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
युधिष्ठिर – जो सब छोड़ने को तैयार हो।

यक्ष – मृत्यु के समान यातना कौन देता है?
युधिष्ठिर – गुप्त रूप से किया गया अपराध।

यक्ष – दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?
युधिष्ठिर – सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।

यक्ष – संसार को कौन जीतता है?
युधिष्ठिर – जिसमें सत्य और श्रद्धा है।

यक्ष – भय से मुक्ति कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – वैराग्य से।

यक्ष – मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जो अज्ञान से परे है।

यक्ष – अज्ञान क्या है?
युधिष्ठिर – आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।

यक्ष – दुःखों से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जो कभी क्रोध नहीं करता।

यक्ष – वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
युधिष्ठिर – माया।

यक्ष – माया क्या है?
युधिष्ठिर – नाम और रूपधारी नाशवान जगत।

यक्ष – परम सत्य क्या है?
युधिष्ठिर – ब्रह्म।…!

युधिष्ठिर के उत्तरों से संतुष्ट यक्ष ने उन्हें जल पीने दिया.

युधिष्ठिर जब जल पी चुके तो यक्ष ने कहा- चारों भाइयों में से मैं एक को जीवित कर सकता हूं. किसे जीवित कराना चाहते हो?

युधिष्ठिर ने कहा- आप माद्री पुत्र नकुल को जीवित कर दें.

यक्ष ने पूछा- तुम दस हजार हाथियों के बल वाले भीम और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन को छोड़कर नकुल को क्यों जीवित कराते हो?

युधिष्ठिर बोले- विपत्ति में भी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. यदि कुंती का सबसे बड़ा बेटा जीवित है तो माद्री का भी सबसे बड़ा पुत्र जीवित होना चाहिए.

यक्ष ने फिर पूछा- यदि दो को जीवित करना हो तो और किसे जीवित कराना चाहोगे?

युधिष्ठिर ने कहा कि वह सहदेव को जीवित कराना चाहेंगे क्योंकि वह सबसे छोटा है और उसके हिस्से का प्रेम और सेवा दोनों बाकी है.

यक्ष युधिष्ठिर की धर्मनिष्ठा से गदगद हो गया. उसने चारों भाइयों को जीवित कर दिया.

युधिष्ठिर ने कहा- आप वास्तव में कौन हैं? मैं आपका वास्तविक परिचय जानने को उत्सुक हूं. यक्ष ने परिचय देते हुए कहा- मैं तुम्हारा पिता धर्म हूं. तुम्हारी परीक्षा लेने आया था जिससे तुम सफल रहे.

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