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नक्सलियों की चाल – ३ अप्रैल २०२१ बीजापुर छत्तीसगढ़

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नक्सलियों की चाल – ३ अप्रैल २०२१ बीजापुर छत्तीसगढ़
     कभी नेशनल ज्योग्राफी या ऐनिमल प्लेनेट वगैरह पे कोई डाॅक्यूमेंट्री या फिर कोई दूसरा प्रोग्राम देखे हो क्या ?????

    अगर देखे हो ,तो आपने Hyena जरूर देखे होंगें । Hyena यानि लकडबघ्घा एक मरियल सा , कुपोषित , चित्तेदार कुत्ते जैसा प्राणी होता है ,जिसके दाँत बहुत पैने होते है । इस प्राणी की खूबी होती है कि ये अकेले किसी प्राणी का शिकार नही कर पाता । उतना शारिरिक दमखम , या फिर साहस इस जानवर मे नही होता । 

        ये हमेशा इसी फिराक मे रहता है कि कोई जंगली जानवर शिकार करे । ये दूसरे जानवरो का शिकार चुराकर भागने के लिए जाना जाता है । झुंड मे कई बार ये शेर के जबडो से भी शिकार छीन ले जाते है।

Hyena की शिकार छीनने की एक टेक्टिक्स होती है । ये शिकार को खा रहे दूसरे परभक्षियो के शिकार पर जाकर मूत देता है । इनका मूत्र बहुत ही बदबूदार होता है । कोई भी परभक्षी अब उस शिकार को नही खाता । ये दूसरो के शिकार को चट कर जाता है ।

       कैसा भी सडा गला जानवर इसे मिल जाये , यहाँ तक कि कई कई दिन पहले मरे शिकार को भी , गिद्दो के बीच मे घुसकर चट करने की आदत होती है इसकी । 

        Hyena झुंड मे रहते है । इनके झुंड को Pack करते है ।......." A pack of hyena" 

महाडरपोक , ठीठ , परभक्षी , और दूसरे जानवरो के शिकार छीनकर खाने वाले Hyena झुंड मे शिकार करते है ।

          50-60 लकडबघ्घो का झुंड , किसी भी सक्षम ,ताकतवर , और दक्ष शिकारियो जानवरो पर भी घात लगाने से नही चूकता । ये झुंड बनाकर शेर , और हाथी जैसे जानवरो तक को घेर लेते है । कोई इधर से काटता है , कोई उधर से काटेगा । शेर को भी पागल बना देते है । शेरो के साथ साथ Hyena बडी भैंसो , और यहाँ तक कि हाथियो तक को मारकर खा जाते है । इनका झुंड ही इनकी ताकत है । साथ ठीठ किस्म का ऐटीट्यूड और नोचने की आदत , ये अगर शिकार को घेर लें , तो शिकार भले ही साईज या ताकत मे कितना भी बडा हो , ये उसे नोच डालते है । 

        मान लीजिए , आप बहुत ही ताकतवर , युद्धक , शूरवीर महावीर टाईप के इंसान है । आप कंधे पर Ak-47 भी लटकाये हुए है । हाथ मे फरसा और कमर मे पिस्तौल भी टंगी है । अचानक ही किसी मोड पर घात लगाये 25-30 जंगली कुत्ते आपको घेर ले ,और नोचने लगे ,तब आप क्या कर लोगे ??????

     अगर कुत्ते एक एक करके आये , तो आप उनकी टांगो पर चांग रखकर चीर दोगे , जबडा पकडकर फाड दोगे । किसी को फरसे से यमलोक पहुँचाओगे , तो किसी की लट्ठ मारकर कमर तोड दोगे । 

      पर 25- 30 कुत्ते अचानक टूट पडेंगें , तो आपकी सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी । आप बदहवास हो उठेंगें। आप ना तो अपना फरसा संभाल पायेंगें , ना ही कंधे से राईफल उतारने का मौका मिलेगा । आपकी सारी योग्यता , वीरता , शूरवीरता , ट्रैनिंग और शारिरिक ताकत धरी रह जायेगी । 

      आप अगर एक दो कुत्तो को मार गिराने मे सफल भी हुए , तो बाकी अपने नुकले दांतो से आपको चीर फाड कर रख देंगें । मुकाबला तो दूर आपको इतना भी होश नही रहेगा कि आप मदद के लिए किसी को पुकार सके। 

    यहाँ आपको व्यक्तिगत शारिरिक क्षमता , प्रशिक्षण, हथियार , सूझबूझ , टेक्टिक्स , प्लानिंग को इस्तेमाल कर पाने का वक्त ही नही मिलेगा । 

     उन जंगलो मे विजिबिविटी बहुत कम है । आपके दुशमन को लोकल सपोर्ट हासिल है । वो जंगल को हमसे आपसे बेहतर जानते है । और उनकी ताकत है , झुंड बनाकर आपके ऊपर ऐम्बुश करना । ताकि आपको वक्त ही ना मिल सके। जब तक सुरक्षाबलो को होश आता है , तब तक जितना नुकसान होना होता है , वो हो चुका होता है । 

      नक्सली अफगान मुजाहिदीनो की Area Ambush की टेक्नीक मे पारंगत हो चुके है । वो एक साथ कई जगहो पर एम्बुश लगाते है । छिटपुट फायर करके भागते है । उनके सर्वनाश के लिए प्रतिबद्ध जवान जंगलो मे उनका पीछा करते है । और उनके बिछाये जाल मे ट्रेप हो जाते है । जैसे ही जवान Killing zone मे आते है । तीन तरफ से उन पर अचानक हमला होता है । 

       जो जवान Ambush site से बच निकलते है , फिर से किसी दूसरे तैयारशुदा एम्बुश मे फँस जाते है । जिन रास्तो से reinforcement आने की संभावना होती है , वहाँ पर माईन्स लगाकर ये लोग पहले ही तैयारी के साथ बैठे होते है , मदद को जा रही टुकडी पर भी एम्बुश लगा होता है । 

     बीजापुर सुकमा मे यही हुआ है । 8 जवान अचानक " U "शेप मे लगाये एम्बुश मे ट्रैप हो गये । उनके मूवमेंट को ट्रैक करके उन पर तीन तरफ से हमला हुआ ।  उनकी मदद के लिए आगे बढ रहे 15 जवानो पर वहां से डेढ किलोमीटर दूर फिर से एम्बुश किया गया । 

       जो लोग सवाल करते है कि 24 घंटो तक जवानो को शव क्यूँ पडे रहे , वो ये जान ले , कि अगर उन जवानो की मदद के लिए कोई भी टीम आगे बढती तो निश्चित रूप से नक्सलियो के जाल मे फंसकर बडा नुकसान उठाती । और कैजुल्टियों का फिगर 22 नही बल्कि 100 से ऊपर होता । 

       जंगलो मे छुपाव हासिल करना आसान है।  नक्सली जान बूझकर , सुरक्षा बलो को अपने लगाये एम्बुश मे आने के लिए ललचाते है । वो आपको अपने बिछाये जाल मे आने के लिए उकसाते है । और फिर मशीनगनो से चौतरफा फायर होता है । पहले से एम्बुश साईट पर लगाई गई IED एक्टिवेट कर दी जाती है । 

        सुरक्षा बलो के लोग मूर्ख नही है । बीजापुर मे भी "ड्रोन" के जरिये CRPF ने नक्सलियो की लोकशन देख ली थी । वो उन्हे नेस्तानाबूद करने के लिए ही आगे बढ रहे थे । नक्सलियो ने अपनी लोकेशन जानबूझकर जाहिर की थी, वहाँ मुश्किल से 20-25 नक्सली थे  मगर उनका असली जमावडा जंगल मे था । जैसे ही हमारे जवान गाँव से 200 मीटर दूर तक पहुँचे। तीन तरफ से उन पर फायर खोल दिया गया । 
       ये सब इतना आसान नही है । नक्सली लगातार अपनी टेक्टिक्स बदलने मे भी माहिर हो चुके है । इन खतरनाक लकडबघ्घो का ईलाज " हेली बाॅर्न" आपरेशनो से ही किया जा सकता है । 
      अपाचे अटैक हैलीकाॅप्टर केवल सेना को ही क्यों मिले ??? CRPF को भी उपलब्ध करवाईये । नक्सलियो को CRPF खुद रगड देगी । हिडमा , सुजाता , जैसे नक्सलियो को आज नही तो कल मार गिराया जायेगा । आप लोग अर्बन नक्सलो का खात्मा करने के लिए कमर कस लीजिए । 

     आदिवासी कल्याण , जंगल और जमीन की लडाई , मानवाधिकार के चोचले , ज्यूडिशियरी का दुरूपयोग , दुनिया भर के NGO , एेक्टिविस्ट , बिनायक सेन , वारवरा राव , सुधा भारद्वाज , वर्नोन गोन्साल्विस , गौतम नवलखा , प्रोफेसर साईबाबा , नंदिनी सुंदर , बेला भाटिया , कविता कृष्णन , अरूंधति राॅय , जैसे लोगो को तो CRPF नही संभालेगी । आपने खुद संभालना होगा ।

पोस्ट सौजन्य लेखक: राजीव_कुमार

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