पितृ श्राद्ध आरम्भ -२ सितम्बर २०२०
इस वर्ष पितृ श्राद्ध २ सितम्बर २०२० से आरम्भ हो रहे हैं।
- पूर्णिमा श्राद्ध – 2/9/20, बुधवार
- 1 प्रतिपदा श्राद्ध – 3/9/20 गुरुवार
- 2 द्वितीया श्राद्ध – 4/9/20 शुक्रवार
- 3 तृतीया श्राद्ध- 5/9/20 शनिवार
- 4 चतुर्थी श्राद्ध-6/9/20 रविवार
- 5 पंचमी श्राद्ध- 7/9/20 सोमवार
- 6 षष्ठी श्राद्ध-8/9/20 मंगलवार
- 7 सप्तमी श्राद्ध- 9/9/20 बुधवार
- 8 अष्टमी श्राद्ध- 10/9/20 गुरुवार
- 9 नवमी श्राद्ध- 11/9/20 शुक्रवार
- 10 दशमी श्राद्ध- 12/9/20 शनिवार
- 11 एकादशी श्राद्ध- 13/9/20 रविवार
- 12 द्वादशी श्राद्ध- 14/9/20 सोमवार
- 13 त्रयोदशी श्राद्ध- 15/9/20 मंगलवार
- 14 चतुर्दशी श्राद्ध- 16/9/20 बुधवार
- 15 सर्वपितृ अमावस श्राद्ध 17/9/20 गुरुवार
165 साल बाद ऐसा संयोग, पितृपक्ष के 1 महीने बाद आएगी नवरात्र-
हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है और घट स्थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होने जा रहा है।
लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष की मानें तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।
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इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
क्या होता है अधिक मास?
एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।
अधिकमास को कुछ स्थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्वयं श्रीहरि से उन्हें स्वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहरि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही दान पुण्य उत्तम है।
-पं नीरज

