पराशरसंहिता के “बालब्रह्मचारिणे” -१०४ पटल” (बालब्रह्मचारी के लिए ) अनादिब्रह्मचारिन्” –१०३ पटल,(अनादिकाल से ब्रह्मचारी) कथन से ऋषि स्वयं हनुमान जी को बालब्रह्मचारी स्वीकार कर रहे हैं । अथर्वणरहस्य जो अथर्ववेद का परिशिष्टांश है उसमें “ब्रह्मचर्याश्रमिणे” (सप्तमुखी हनुमत्कवच में ) उन्हें ब्रह्मचर्य आश्रम में स्थित बतलाया गया है । जो हनुमान जी के गृहस्थाश्रम की कल्पना का मुंहतोड़ उत्तर है ।
ऐसी स्थिति में उन्हें प्राजापत्य ब्रह्मचारी मानना बुद्धि का दिवालियापन ही है ; क्योंकि प्राजापत्य ब्रह्मचारी गृहस्थाश्रम में ही स्वीकृत है, ब्रह्मचर्याश्रम में नहीं । हनुमान जी का ब्रह्मचर्याश्रमत्व अथर्वणरहस्य से सिद्ध किया जा चुका है।
पराशरसंहिताकार खुद हनुमान जी को बालब्रह्मचारी कहकर परशुराम जी की भांति उन्हें अविवाहित घोषित कर रहे हैं । पौर्वापर्य के वाक्यों को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय होता है–“उपक्रमोपसंहारयोरेकवाक्यत्वम्” सर्वमान्य सिद्धांत है । अत: पराशरसंहिताकार की दृष्टि में भी हनुमान जी अविवाहित ही हैं ।
अत: उनके द्वारा विवाह का वर्णन मात्र आलङ्कारिक ही है । यहां विश्वकर्मा की पुत्री छाया बतलाती गई है । जिसका विवाह सूर्य से हुआ । जबकि मत्स्यपुराण आदि में विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा बतलायी गयी है । वह सूर्य के यहां अपनी छाया को छोड़कर चली आती है । उसी छाया को पराशरसंहिताकार यहां विश्वकर्मा की पुत्री लिख रहे हैं–पटल-६/श्लोक-३,
पराशरसंहिताकार यहां आलङ्कारिक वर्णन में अपनी विस्मृति का सुस्पष्ट परिचय दे रहे हैं ।
दिनकर की किरणों को विश्वकर्मा ने तरासकर कम कर दिया–“शाणतस्तं स्वल्पप्रभं चक्रे स करदीधितम् ।।–१०३/६, जिससे वह कन्या छाया भास्कर के तेज को सह सके । अस्तु ।
स्वल्पप्रभ भास्कर से सुवर्चला नामक कन्या हुई–“भानोशछिन्नकरच्छायात् कन्या जाता सुवर्चला ।-पटल-६/श्लोक-७, कराणां=किरणानां, छाया:=कान्ति:= करच्छाया: , छिन्ना: करच्छाया: यस्य स: छिन्नकरच्छायो भानुस्तस्मात् छिन्नकरच्छायात् भानो: । जिनकी किरणें काट दी गई हैं ऐसे सूर्य से एक सुवर्चला कन्या जन्मी ।
यहां जो किरणें ( तेजस् =तेज ) काटकर अलग की गयी है । उन्हीं किरणों के तेज:पुञ्ज का नाम सुवर्चला रखा गया है । और वह तेज:पुञ्ज चूंकि सूर्य से निकला है । इसलिए उसे सुवर्चला नाम दिया गया । वर्चस् तेज को कहते हैं–
“तेज:पुरीषयोर्वर्च:”–अमरकोष-३/३/२३१वांश्लोक,
सुवर्चला का विग्रह देखें –“सु=सुन्दराणि, वर्चांसि=तेजांसि तानि सुवर्चांसि = सुन्दर तेज । सभी सकारान्त शब्द अकारान्त भी माने गये हैं–” सर्वे सकारान्ता अकारान्ता: ” इस नियम से सकारान्त वर्चस् शब्द अकारान्त भी है । सु=सुन्दरा,वर्चा: इति सुवर्चा:=रमणीय तेज । तान् लाति गृह्णाति इति सुवर्चल:= तेज:पुञ्ज । स्त्रीत्व विवक्षायां सुवर्चला ।
सूर्य के खरांदे जाने से समुत्पन्न इस तेजोराशि का नाम पराशरसंहिताकार ने सुवर्चला रखा है । यहां तेज:पुञ्ज की कन्या रूप में कल्पना की गयी है । चूंकि वह तेज सूर्य का है इसलिए उसका जनक सूर्य को बतलाया गया । और इस कल्पित कन्या के विवाह की कल्पना हनुमान जी से की गई ।
वाल्मीकि रामायण से यह विषय सुस्पष्ट हो रहा है। हनुमान जी पर इन्द्र द्वारा वज्रप्रहार होने पर कुपित पवनदेव को प्रसन्न करने के लिए सभी देवों ने मारुति को वरदान दिया ।
जिनमें भगवान भास्कर वरदान दे रहे हैं कि “मैं अपने तेज की सौववीं कला तुम्हें देता हूं —
” मार्तण्डस्त्वब्रवीत् तत्र भगवांस्तिमिरापह:। तेजसोSस्यमदीयस्य ददामि शतिकां कलाम् ।।”–उत्तरकाण्ड-३६/१३,
दिये जा रहे सूर्य के इसी शतांश तेज: समूह को पराशरसंहिताकार सुवर्चला नामक कन्या की कल्पना कर लिए हैं ।
सूर्य भगवान ने हनुमान जी को वरदान दिया है कि जब उनकी शास्त्राध्ययन की योग्यता हो जायेगी तब उन्हें मैं सम्पूर्ण शास्त्र दे दूंगा–
“यदा च शास्त्राण्यध्येतुं शक्तिरस्य भविष्यति । तदाSस्य शास्त्रं दास्यामि”–वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड;-३६/१४,
अब जिन ४ विद्याओं को न देने की कल्पना पराशरसंहिताकार ने की है । वे शास्त्रों से बहिर्भूत हैं या अन्तर्भूत ?? बहिर्भूत मानने पर उनका विद्यात्व ही नष्ट हो जायेगा । और अन्तर्भूत मानने पर वरदान के अनुसार वे शास्त्रों की उपलब्धि के साथ ही उपलब्ध हो जायेंगी ।
अत: पराशरसंहिताकार का वर्णन मत्स्य मार्कण्डेय आदि पुराणों एवं अथर्वणरहस्य तथा वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही ग्राह्य है । फलत: हनुमान जी के विवाह का वर्णन एक कल्पना मात्र है । आलङ्कारिक है ।स्वार्थ में उसका प्रामाण्य नहीं है।
?जय श्रीराम?
*प्रतिलिपि
स्वामी दीनदयालाचार्यजी महाराज
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com