ख़फ़ा होते हैं, हो जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं।
जिन गद्दारों ने राहत इन्दोरी के शेर को शान से पढ़ा कि!
“सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में…
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है “
तो – उनको उन्ही की भाषा में मुँहतोड़ जवाब :
ख़फ़ा होते हैं, हो जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं।
जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं,.. इनका मान थोड़ी है।
जिन्हे बंटवारे के बाद भी उनके मुल्क में जगह ना मिली।
वो हिन्दुस्तान के अब बाशिंदे थोड़े ही है।
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बांटने के बाद भी रहने को जगह दी है हमने जिन्हें।
वो बंटवारे के बाद कायदे से हिन्दुस्तान के निवासी थोड़े ही हैं।
श्री कृष्ण, श्री राम की धरती है हिन्दुस्तान, सजदा तो तुम्हारे बाप को भी करना ही होगा।
मेरा वतन,. ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है।
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी..
पर जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है।
मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे-कतरे से….
बहुत बांट लिया,.. अब बस,…कोई खैरात थोड़ी है!!
जिन्हे रहने को आशियां दिया… उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा।
मगर अब हम भी कडवी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं??…
बहुत लूटा फिरंगी ने,.. कभी लुटेरे बाबर के गद्दार पूतों ने…
ये मेरा घर है हमारा हिंदुस्तान,.. मेरी जान!!… मुफ्त की सराय थोड़ी है…
बिरले मिलते है सच्चे मुसलमान दुनिया में
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है।
कुछ तो अपने ही शामिल है वतन को तोड़ने में
अब ये बरखा और रविश कोई मुसलमान थोड़ी हैं??
सुन लो…. गद्धारों।।….. जरा गौर से सुन लो…….??
बहुत संघर्ष कर के पाया है इसे देश के सच्चे सपूतों ने…. कंहा शामिल है तुम्हारा खून इस वतन के संघर्ष की मिट्टी में?????????
हां तुमने संघर्ष किया… और खून बहाया अपना एक अलग मुल्क बसाने के लिए!!
तुम्हारा बंटा हुआ मुल्क पाकिस्तान है…. वंहा क्यों नहीं जाकर हक जताते?????
ये हिंदुस्तान अब सिर्फ हमारा है,… तुम्हारे बाप का थोड़ी है ।।
By : Mr Feel