पितृ पक्ष के अवसर पर
|| पितृ- पक्ष ||
जो चले गए……..
वो अपने थे……..
उनके भी क्या-क्या….’सपने’ थे….
आज ! सपने में भी है”अपने” साथ ….
क्यों……..?
आज सपना “हकीकत” है ………!
“अपना ” समझो गनीमत है ……..!
जो चले गए वो ‘अपने’ थे …………!
आओ कुछ उनका भी ‘मान’ करें
सम्मान करें नमन कर गुणगान करें…!
श्रद्धानत करें समर्पण……..
कुंठाओं गल-गरल भावनाओ का करें
” तर्पण “
“याद” तो उनकी आती है …….!
“दिल ” को बहुत तड़पाती है….!
बार-बार “दिल ” कहता है …….
“कुछ” देर और रुक जाते ……
वे “दर्पण” में हैं न “तर्पण ” में…….
बस ! याद करो श्रद्धा और विश्वास से
“समर्पण” में ……..!
जो रह गए वो ” सपने ” थे …..
जो चले गए ” वो ” अपने थे ………
पितरों को सादर समर्पित……..!
टिप्पणी : उपरोक्त लेख साभार उद्घृत है | लेखक का विवरण प्राप्त नही है | लेखक के विचार बहुत ही प्रासंगिक और सराहनीय है| हमारी ओर से उन्हे बहुत-बहुत साधुवाद |
पितृ पक्ष के बारे में मुगल सम्राट शाहजहाँ ने भी उल्लेख किया था| बात यह थी कि शाहजहाँ के बेटे औरंगजेब ने उसे क़ैद कर लिया था | औरंगजेब ने शाहजहां को 7 वर्ष तक कारागार में रखा था। वह उसको पीने के लिए नपा-तुला पानी एक फूटी हुई मटकी में भेजता था तब शाहजहाँ ने अपने बेटे औरंगजेब को पत्र लिखा जिसकी अंतिम पंक्तियां थी-
“ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी,
ब पिदरे जिंदा आब तरसानी,
आफरीन बाद हिंदवान सद बार,
मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब
अर्थात्
हे पुत्र ! तू भी विचित्र मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को पानी के लिए भी तरसा रहा है। शत शत बार प्रशंसनीय हैं वे ‘हिन्दू’ जो अपने मृत पूर्वजो को भी पानी देते हैं।
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