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चिड़िया चिरौटा

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चिड़िया चिरौटा

(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)

एक थी चिड़िया और एक था चिरौटा। चिड़िया लाई चावल, चिरौटा लाया दाल। चिड़िया ने खिचड़ी बनाई। चूल्हे पर खिचड़ी रखकर चिड़िया पानी भरने गई। चिरौटे से कहती गई, “जरा खिचड़ी देखते रहना। कहीं जल न जाए।”

जब चिड़िया चली गई, तो चिरौटे ने कच्ची-पक्की खिचड़ी खा डाली। चिड़िया को पता न चल सके, इसलिए वह आंखों पर पट्टी बांधकर सो गया। इसी बीच चिड़िया पानी भरकर वापस लौटी। चिरौटे ने अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया था। चिड़िया बोली, “चिरोटेजी दरवाज़ा खोलो।” चिरौटे ने कहा, “मेरी आंखें दुख रही हैं। मैं तो आंखों पर पट्टी बांधकर लेट गया हूं। तुम हाथ डालकर दरवाजा खोल लों।”

चिड़िया ने कहा, “लेकिन पानी से भरी इन मटकियों को कौन उतारेगा?”

चिरौटा बोला, “ऊपर वाली मटकी फोड़ डालो और नीचे वाली मटकी लेकर घर के अन्दर आ जाओ।”


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चिड़िया ने ऊपर वाली मटकी फोड़ डाली और नीचे वाली मटकी उतार-कर घर में गयी। जब रसोईघर मे जाकर उसने खिचड़ी संभाली, तो देखा कि पतीली में खिचड़ी है ही नहीं।

चिड़िया ने पूछा, “चिरौटेजी! खिचड़ी कौन खा गया?”

चिरौटे ने कहा, “मुझे क्या पता कि कौन खा गया। राजा का कुत्ता आया था। शायद वह खा गया हो।”

चिड़िया राजा के पास शिकायत करने पहुंची। उसने राजा से कहा, “राजाजी, राजाजी! आपका कुत्ता मेरी खिचड़ी खा गया है।”

राजा बोला, “काले कुत्ते को हाजिर करो। वह चिड़िया की खिचड़ी क्यों खा गया?”

कुत्ता आया। उसने कहा, “मैंने चिड़िया की खिचड़ी नहीं खाई है। चिरौटे ने खाई होगी। वह झूठ बोल रहा होगा।”,

राजा बोला, “चिरौटे को हाजिर करो।”

चिरौटा आया। उसने कहा, “मैंने खिचड़ी नहीं खाई। कुत्ते ने खाई होगी।”,

राजा ने पूछा, “कोई सिपाही है?”

सिपाही के आने पर राजा ने हुक्म दिया, “चिरौटे और कुत्ते दोनों के पेट चीरो। जिसने खिचड़ी खाई होगी, उसके पेट में से खिचड़ी निकलेगी।”

कुत्ते ने कहा, “आप बेशक मेरा पेट चीरिए। मैंने खाई होगी तभी तो निकलेगी?”

लेकिन चिरौटा डर गया। खिचड़ी तो उसी ने खाई थी। वह थर-थर कांपने लगा। बोला, “महाराज! खिचड़ी तो मैंने ही खाई है। मेरा यह गुनाह माफ कर दीजिए।”

राजा को गुस्सा आ गया। उसने चिरौटे को कुएं में डलवा दिया।

चिड़िया बेचारी कुंए पर बैठी-बैठी रोने लगी। इस बीच उधर से एक ग्वाला निकला। चिड़िया ने उससे कहा:
ओ, गायों के ग्वाले भाई!
ओ, गायों के ग्वाले भाई!
मेरे चिरौटे को बाहर निकाल दो।
मैं तुम्हें खीर-पूरी खिलाऊंगी।

ग्वाले ने कहा, “बहन! मुझे इतनी फुरसत कहां है कि तुम्हारे चिरौटे को बाहर निकालूं, मुझे आगे जाने की जल्दी है।”

यह कहकर ग्वाला आगे बढ़ गया।चिड़िया वहीं बैठी राह देखती रही कि कोई और उधर से निकले। थोड़ी देर के बाद एक भैंस चराने वाला आया। चिड़िया ने उससे कहा:
ओ, भैंस चरानेवाले भैया!
ओ, भैंस चरानेवाले भैया!
मेरे चिरौटे को बाहर निकाल दो।
मैं तुम्हें खीर-पूरी खिलाऊंगी।

भैंस चरानेवाले ने कहा, “बहन! मुझे इतनी फुरसत कहां है कि मैं तुम्हारे चिरौटे को निकालूं?”

इतना कहकर भैंस चरानेवाला भी आगे बढ़ गया। चिड़िया और किसी की बाट जोहती बैठी रही।इसी बीच एक बकरी चरानेवाला उधर आया। चिड़िया ने कहा:
ओ, बकरी चरानेवाले भैया!
ओ बकरी चरानेवाले भैया!
मेरे चिरौटे को बाहर निकाल दो।
मैं तुम्हें खीर-पूरी खिलाऊंगी।

बकरी चरानेवाला बोला, “बहन! मुझे इतनी फुरसत कहां है कि मैं तुम्हारे चिरौटे को निकालूं? मुझे तो जल्दी जाना है।” यह कहकर बकरा चरानेवाला भी आगे बढ़ गया।चिड़िया वहीं बैठी रहीं। तभी एक ऊंट चरानेवाली उधर से निकली। चिड़िया ने कहा:
ओ, ऊंट चराने वाली बहन!
ओ ऊंट चरानेवाली बहन!
मेरे चिरौटे को बाहर निकाल दो।
मैं तुम्हें खीर-पूरी खिलाऊंगी।

ऊंट चरानेवाली को चिड़िया पर दया आ गई और उसने चिरौटे को कुएं में से बाहर निकाल लिया।

चिड़िया बोली, “चलो बहन! अब घर पहुंचकर मैं तुमको खीर-पूरी खिलाऊंगी।”

ऊंट चरानेवाली चिड़िया के घर पहुंची। चिड़िया ने बड़े प्रेम से उसके लिए खीर-पूरी तैयार की, लेकिन चिरौटा बदमाश निकला। उसने लोहे के एक तवे को तपाकर लाल सुर्ख कर लिया। और जब भोजन का समय हुआ, तो चिरौटे ने वह तवा सामने रखकर कहा, “आओ, ऊंट चरानेवाली बहन, आओ, और सोने के इस पटे पर बैठो।”

ज्योंही मेहमान बहन उस लाल पटे पर बैठने गई, उसे तवे की आग लगी और वह चीखती-चिल्लाती भागी:
मैं तो जल गई, मैंने खीर नहीं खाई
मैं तो जल गई, मैंने तो खीर नहीं खाई।

 

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