बनियों का स्वांग (नाटक)
(मजेदार पुरानी ग्रामीणआँचलिक कहानी)
बीस बनिये थे। बीसों यात्रा पर निकले। रास्ते में एक नाला मिला। नाले का नाम था, जांबुड़िया। नाला बहुत गहरा था। दिन में भी वहां धूप नहीं पहुंचती थी।
बनिये उस नाले के रास्ते जा रहे थे। वही उन्हें सामने से आते हुए चोर मिले। एक तो बनिये, जिस पर उन्हें चोर मिल गए। बनियों को घबराहट होने लगी। इतने में चोरों ने आवाज लगाई, “आप कौन लोग हैं? अपने कपड़े-लत्ते, जेवर-गहने सब यहीं उतार दो, नहीं तो मारे जाओगे।”
बनिये सब समय को पहचानने वाले थे। विरोध करके भी क्या कर पाते? बोली, “भैया, इनकार कौन करता है? लो ये कपड़े, ये लत्ते और ये सारे जेवर-गहने।” चोरों को तो मुंह मांगी मुराद मिल गई। उन्होंने जेवर-गहने, कपड़े-लत्ते सब फुरती से समेट लिए और गठरी बांधकर चल पड़े।
बनिये सब खड़े-के-खड़े रह गए, लेकिन मन-ही-मन सोचने लगे—‘यह तो कोई अच्छी बात नहीं कि चोर हमें इस तरह लूटकर चले जायं। इससे तो हमारी चतुर जात की लाज ही जायगी। इसलिए हमें कोई तरकीब जरुर सोचनी चाहिए।’
तरक़ीब सोचकर एक बनिया चोरों के पीछे दौड़ा। पास पहुंचकर उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाकर बोला, “भाइयो, मेरी एक विनती है, ज़रा सुनिए।”
चोर बोले, “जाओ-जाओ, इस तरह गिड़गिड़ाओ मत। हम इतने भोले नहीं हैं कि तुम्हारी बातों में आ जायं। तुम बनिये हो, तो हम सवाये बनिये हैं!”
बनिये ने कहा, “भैया! इसमें भुलावा देने की तो कोई बात नहीं है। हम आपकी बराबरी कैसे कर सकते है?”
एक चोर बोला, “ठीक है। ज़रा ठहरें और सुने लें कि यह क्या कहना चाहता है?”
बनिये ने कहा, “हमने एक नया स्वांग सीखा है। हम चाहते हैं कि कुछ देर रुककर आप उसे देखते जाइए। हमें अपना यह स्वांग आगे के गांव में दिखाना है। आप पारखी लोग हैं। देखकर हमें बताइए कि यह काम हमको अच्छी तरह आता है या नहीं।”
दूसरा चोर बोला, “भाइयो, खबरदार! कहीं इसमें बनिया भाई की कोई चाल न हो! बनियों की चालाकी तो बनिये ही जानते हैं।”
बनिये ने कहा, “इसमें कोई चालाकी-वालाकी नहीं है। हम तो आपको अपना स्वांग भर दिखाना चाहते हैं। देखकर जायंगे, तो अच्छा ही है, नहीं तो आप पर हमारा कोई हुक्म तो चलता ही नहीं है।”
तीसरे चोर ने कहा, “अरे, तुम किसे समझा रहे हो? स्वांग तो भांडों का काम है। बनिये भी कहीं स्वांग करते हैं?”
बनिया बोला, “स्वांग बनिये भी करते हैं और उनके बाप भी करते हैं। मुसीबत के मारे सब कोई करते हैं। आप देखना चाहे, तो आपकों दिखा दें, नहीं तो रहने दें।”
चोरों ने कहा, “भाइयो! चलो, देखते चलें। हमकों इन बनियों-बक्कालों का डर ही क्या है। फिर हमारी ये बन्दूकें और तलवारे कहां गई हैं?”
चोर स्वांग देखने बैठ गए और बनियों ने स्वांग दिखाना शुरु किया।
पहला बनिया गणपति बाबा का वेश धरकर आया और गया। चोर कहने लगे, “हां भाई, ये लोग स्वांग करना तो जानते हैं।”
फिर ब्राह्मण का वेश आया। ब्राह्मण बना बनिया बाबड़ी खोदता जाता था और गाता जाता था:
एक बम्मन बावड़ी खोदता,
दूसरा राम, राम बोलता।
चोरों ने कहा, “सचमुच, ये बनिये स्वांग रचना तो जानते हैं।” फिर बोले, “अरे हो बनियो! ये कोई नए स्वांग नहीं है। ये तो वे ही स्वांग हैं, जो सब जगह होते हैं।”
बनिये बोले, “भाइयो, नए स्वांग तो आगे आयंगे। अपने गए स्वांग ही तो हम आपको दिखाना चाहते हैं।” फिर एक बनिये ने जांबुड़िया का स्वांग रचा। जांबुड़िया बना बनिया कूदने, नाचने और गाने लगा।
यह करो, वह करो,
जांबुड़िया जाकर खबर करो।
बनिये सब नाचने और गाने लगे:
यह करो, वह करो,
जांबुड़िया जाकर खबर करो।
चोर एक-दूसरे के सामने देखने लगे और आपस में कहने लगे, “देखो, इन बनियों को तो देखो! ये दुकान चलाना छोड़कर स्वांग रचाने लगे है। स्वांग तो बढ़िया रचा लेते हैं।”
इसी बीच सब बनियों से हटकर एक बनिया अलग चलने लगा और गाने लगा:
यह करुं, वह करुं,
जांबुड़िया जाकर खबर करुं।
दूसरे सब बनिये दोहराने लगे और यह बनिया गाता-गाता पिछले पैरों जाने लगा। चोर तो देखते ही रहे। इस तरह गाता-गाता वह बनिया कहीं-का –कहीं पहुंच गया। दूर जाने के बाद वह जांबुड़िया गांव पहुंचा। वहां थानेदार को सारी जानकारी देकर सिपाहियों के साथ नाले की तरफ रवाना हुआ।
इधर दूसरे बनियों ने एक के बाद दूसरा स्वांग पेश करना जारी रखा। केरबा नाच का स्वांग किया। विदूषक का स्वांग किया। और भी कई स्वांग दिखाये। इतने में घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई पड़ी बनिये समझ गए कि सिपाही आ पहुंचे हैं। अब चोर पकड़े जायंगे।
घोड़ों की टापों की आवाज सुनकर चोर चौके। लेकिन इसी बीच बनियों ने घोड़े का स्वांग रचा और गाने लगे:
स्वांग वाले बनिये हाजिर हैं,
घोड़े का स्वांग लाये हैं।
चोरों ने सोचा कि यह तो घोड़े का स्वांग आया है, और इसीलिए घोड़ों की टापों की आवाज़ आ रही है। चोर बैठे रहे। इसी बीच खाकी पोशक वाले थानेदार और सिपाही दिखायी पड़े। चोर डरे और भागने लगे। तभी बनियों ने गाना शुरु किया:
स्वांग वाले बनिये हाजिर हैं,
थानेदार का स्वांग लाये हैं।
चोरों ने कहा, “अरे, यह तो स्वांग है! सचमुच इन बनियों ने बहुत ही बढ़िया स्वांग रचा है।”
इसी बीच थानेदार और सिपाही वहां आ पहुंचे और उन्होंने चोरों का पकड़ लिया।
बाद में बनियों ने अपने कपड़े-लत्ते और जेवर-गहने सब संभाल लिये और अपने घर पहुंच गए।
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