ससुराल की खिचड़ी
(गाँव की बड़ी पुरानी मजेदार कहानी)
एक बार एक आदमी अपनी ससुराल गया। वहाँ उसकी सास ने उसे स्वादिष्ट खिचड़ी खिलाई। उसने खिचड़ी पहले कभी नही खाई थी , इसलिए घर लौटते समय उसने अपनी सास से पूछा ,” अपने जो वस्तु मुझे बनाकर खिलाई , वह बड़ी स्वादिष्ट थी । आप मुझे उस व्यंजन का नाम बता दीजिए। मैं घर जाकर वही बनवा कर खाया करूँगा। “
सास ने बता दिया कि वह खिचड़ी थी। लेकिन उस आदमी को बड़ी जल्दी भूलने की आदत थी। थोड़े ही समय में वह बताई हुई वस्तु का नाम भूल जाता था। उसने तय किया की वह घर वापस पहुँचने तक ‘खिचड़ी’ नाम रटता जाएगा, ताकि भूले नही।
खा चिड़ी-खा चिड़ी
जब वह ससुराल से वापस आ रहा था तो वह रास्ते में ज़ोर-ज़ोर से ‘खिचड़ी-खिचड़ी बोलता जा रहा था। थोड़ी देर बाद बोलते-बोलते उसकी ज़बान लड़खड़ाई तो वह खिचड़ी की जगह ‘खा – चिड़ी खा – चिड़ी‘ बोलने लगा।
एक किसान अपने खेत में बड़ी मेहनत चिड़ियों से फसल की रखवाली कर रहा था। उसी समय वह आदमी वहाँ ज़ोर-ज़ोर से ‘खा-चिड़ी खा-चिड़ी’ चिल्लाते हुए आ पहुँचा। उसे ‘खा-चिड़ी खा-चिड़ी’ कहते सुन कर किसान को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा यह चिड़ियों को फसल खाने के लिए बुला रहा है। किसान ने उस आदमी को पकड़ कर मारते हुए कहा कि, ” दुष्ट! यहाँ मैं चिड़ियों को भगाते – भगाते परेशान हूँ , और तू ‘खा-चिड़ी खा-चिड़ी’ कह कर चिड़ियों को बुला रहा है। “
उड़ चिड़ी-उड़ चिड़ी
यह सुन कर उस आदमी ने पूछा , “भाई तुम मुझे मारो मत। यह बताओ की मैं क्या कहूँ?” किसान ने उसे कहा, “तू ‘उड़-चिड़ी, उड़-चिड़ी’ कह।”
उस आदमी ने सोचा, लगता है मैं सही नाम भूल गया था। इसलिए उसने किसान की बात को स्वीकार कर लिया और ‘उड़ चिड़ी-उड़ चिड़ी’ कहने लगा। वह ‘उड़ चिड़ी-उड़ चिड़ी’ की रट लगाता हुआ आगे चलता गया।
आगे जाकर उसे एक बहेलिया मिला। बहेलिया पक्षियों को फसाने की लिए जाल बिछाकर, छिपकर कर बैठा था। उधर यह आदमी ‘उड़ चिड़ी-उड़ चिड़ी’ की रट लगाते हुए पहुँचा। बहेलिए का माथा ठनका कि यह आदमी चिड़ियों को जाल में फसने नही देना चाहता, इसीलिए ज़ोर-ज़ोर से ‘उड़ चिड़ी-उड़ चिड़ी’ की रट लगा रहा है।
फंदे में फँस-फंदे में फँस
बहेलिए ने उस आदमी को खूब मारा। तब उसने पूछा ,” भाई अगर मैं ग़लत कह रहा हूँ तो , तुम ही सही बता दो, मैं क्या कहूँ?”. तब बहेलिया बोला ,” तू ‘फंदे में फँस-फंदे में फँस’ कह। “
अब आदमी ‘फंदे में फँस-फंदे में फँस’ कहता हुआ आगे पहुँचा। थोड़ी दूर आगे जाने पर , कुछ चोर चोरी करने के लिए जा रहे थे| चोरो ने उसकी ‘फंदे में फँस-फंदे में फँस’ की आवाज़ सुन कर सोचा की यह हमें फंदे में फसाना चाहता है। उसने उसे भेदिया (मुखबिर) समझ कर उसकी खूब धुनाई की।
ले- ले आओ,रख-रख जाओ
तब वह आदमी बोला, “भाई मुझे भूलने की आदत है। इसलिए जो जैसा बता देता है, मैं वैसा ही कहने लगता हूँ। अब तुम लोग ही बता दो मैं क्या कहूँ?” चोरों ने कहा,” तू ‘ले- ले आओ,रख-रख जाओ’ कहता जा।”
चोरों से छूटने के बाद, अब वह आदमी ‘ले-ले आओ, रख-रख जाओ’ कहता हुआ, आगे बढ़ता जा रहा था। आगे रास्ते में कुछ लोग मुर्दे को लिए जा रहे थे। उन्होने ‘ले-ले आओ, रख-रख जाओ’ की पुकार सुन कर सोचा कि यह आदमी हम सबको की भी मृत्यु चाहता है।
ऐसा किसी के ना हो’
उन लोगों ने भी उसको खूब पीटा। तब उस आदमी ने पूछा,” अच्छा अब मैं क्या कहूँ?” तब लोगों के कहा,” बोलो ‘ऐसा किसी के ना हो’।”
उस आदमी ने यह बात भी मान ली और ‘ऐसा किसी के ना हो’ कहता हुआ एक शहर में पहुँचा। शहर में राजा के बेटे की शादी थी और मार्ग से बारात जा रही थी। यह आदमी वहाँ से ‘ऐसा किसी के ना हो’ कहता हुआ गुज़रा। राजा के कर्मचारियों ने उसकी बात सुन ली और उस आदमी की खूब पिटाई की।
ऐसे सबका हो
उस आदमी ने सोचा कि लगता है फिर ग़लत हो गया। उसने फिर पूछा कि, “आप ठीक बताइए की मैं क्या कहता जाउँ?”
राजा के कर्मचारियों ने कहा कि, “तुम्हे ‘ऐसे सबका हो‘, ऐसा कहते जाना चाहिए| आख़िरकार वह आदमी ‘ऐसे सबका हो’ कहते हुए अपने घर पहुँच गया। घर पहुँच कर उसने अपनी पत्नी से कहा कि तुम ‘ऐसे सबका हो’ बना दो, आज मैं वही खाउँगा। “
सुनकर उसकी पत्नी ने बोला, “यह तुम क्या बोल रहे हो। ‘ऐसे सबका हो’ कौन सा व्यंजन है जो मैं बना कर खिलाउँ।”
आदमी गुस्से से बोले ,” तेरी माँ ने ही मुझे यह चीज़ बनाकर खिलाई थी और तुम उसकी बेटी होकर भी इसे बनाना नही जानती।”
पत्नी भी गुस्से में बोली,” मुझे यह सब बनाना नही आता। तुम अपनी माँ से ही बनवा कर खा लो।”
उस आदमी के बार – बार कहने पर भी पत्नी ने ना बनाया और झगड़ा बढ़ता ही गया। शोर सुनकर उस आदमी की माँ भी वहाँ आ गयी और उसने उसकी इस उल्टी बात को सुनकर उस आदमी की ही जम कर पिटाई कर दी। उस आदमी की पत्नी उस पर तरस खा कर बोली की आज तो तुमने इतनी मार खाई कि तुम्हारी खिचड़ी ही बन गयी।
पत्नी के मुँह से खिचड़ी का नाम सुनते ही वह आदमी खुशी से उछल पड़ा और कहने लगा, “हाँ-हाँ , मैं बस यही खिचड़ी ही तो खाना चाहता हूँ। तुमने यह नाम पहले ले लिया होता तो नाहक मैं इतनी मार ना ख़ाता। अब जल्दी से खिचड़ी बना दो।”
पत्नी अपने पति की इस बात को सुनकर हँसने लगी और उसने उसे स्वादिष्ट खिचड़ी बनाकर खिलाई।
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