माघ शुक्ल एकादशी – जया एकादशी
Magh Shukla Paksha Ekadashi-Jaya Ekadashi
भारतवर्ष में एकादशी व्रत का बहुत बड़ा महत्व माना गया है| ऐसा माना जाता है की एकादशी का व्रत पापों से छुटकारा पाने और स्वयं को सात्त्विक बनाने के लिए सबसे सुलभ साधन है|एकादशी का व्रत बहुत कम साधनो में भी किया जा सकता है | इसलिए ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी इसे आसानी से कर सकता है| आवश्यकता है सिर्फ़ श्रद्धा , विश्वास और सात्विक भाव से निष्पाप राहते हुए प्रभु की भक्ति सहित व्रत और रात्रि जागरण| रात्रि जागरण प्रभु के भजन कीर्तन के साथ होना चाहिए| एकादशी की कथायें स्वयं इस व्रत की सरल प्रक्रिया को प्रकट करती हैं|
एकादशी का व्रत अनेक कष्टों को दूर करने वाला भी कहा गया है| यह संसारिक भोग के साथ मोक्ष भी प्रदान करने वाला है| हर महीने में दो एकादशियाँ होती हैं, और हर एकादशी का विशेष महत्व होता है और यह विशेष फल प्रदान करने वाला होता है|माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी की को जया एकादशी कहते हैं| जया एकादशी महान पुण्य देने वाली और बुरी योनियों से भी छुटकारा दिलाने में समर्थ मानी गयी है| ऐसा कहा जाता है की जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करता है वह सब जप, तप, दान धर्म का फल पाता है क्योंकि एकादशी व्रत का प्रभाव इन सबसे बढ़कर माना गया है|
जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्म्य है। श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को “जया एकादशी” कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।
जया एकादशी की कथा यह भी लक्षित करती है की देव कार्य के समय यदि कभी ग़लती से कामासाक्त हो जाए तो जया एकादशी से उसका प्रायश्चित कर सकते हैं| कभी कभार यदि देव कार्य जैसे हवन, पूजा, अर्चना के समय यदि ग़लती से मन में कामासाक्त विचार आ जायें तो उसके लिए जया एकादशी का व्रत कर लेना चाहिए | क्योंकि देव अपराध के कारण इतर योनि में जन्म हो सकता है या कोई और परिणाम हो सकते हैं| जया एकादशी की कथा इस बात तो स्पष्ट रूप से प्रमाणित करती है|
जया एकादशी की कथा:
धर्मराज युधिष्ठिर बोले,” हे कृष्ण! आप ने माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का वर्णन किया, अत्यंत प्रिय लगा| अप स्वेदज, अंडज, उद्भिज और जरायुज – चारो प्रकार के जीवों के उत्पन्न कर्ता, पालन तथा नाश करने वाले हैं| अब आप कृपा कर माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए| इसका क्या नाम है, इसके व्रत की विधि क्या है और इसमे किस देवता का पूजन किया जाता है?
श्री कृष्ण भगवान बोले – हे राजन , माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया एकादशी है| इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या जैसे पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है| इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य कुयोनि अर्थात भूत, प्रेत , पिशाच, आदि योनियों से मुक्त हो जाता है| अतः इस एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए| अब मैं तुमसे पद्म पुराण में वर्णित इस एकादशी की महिमा की एक पौराणिक कथा कहता हूँ |
देवराज इंद्र स्वर्ग में राज्य करते थे और अन्य सभी देव गण सुख पूर्वक वहाँ रहते थे| एक समय इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे | गंधर्व गान कर रहे थे | उन गन्धर्वो में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी पत्नी मालिनी भी थे| मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे| गंधर्व कन्या पुष्पवती ने माल्यवान को देखा तो उस पर मोहित हो गयी| माल्यवान भी उस पर मोहित हो गया| पुष्पव ती ने अपने रूप- लावण्य और हाव-भाव से माल्यवान को आकर्षित कर उसे अपने वश में कर लिया| माल्यवान और पुष्पवती को यह विचार ना रहा की इंद्र की सभा में शाप मिल जाएगा| परस्पर दोनो की दृष्टि लड़ने लगी|
हे राजन! पुष्पवती भी अत्यंत सुंदर कन्या थी | अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए सभा में गान करने लगे| परंतु एक दूसरे पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया , इससे संगीत की लय टूट गयी| संगीत प्रेमियों को यह बुरा लगा| संगीत एक साधना है और संगीत पवित्र माना जाता है तथा इस साधना को भ्रष्ट करना अपराध है| देवराज इंद्र इनकी भाव भंगिमाओं को देखकर इनके प्रेम को समझ गये और उन्होने इसमे अपना अपमान समझ कर उनको श्राप दे दिया |
इंद्र ने कहा,” संगीत साधना की पवित्रता को नष्ट करने वाले मूर्खों! माल्यवान और पुष्पवती तुमने सरस्वती की पूजा में विघ्न डाला है| तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, तुम्हे धिक्कार है| अब तुम दोनो को स्त्री- पुरुष के रूप में मर्त्य लोक में जाकर पिशाच रूप धारण कर अपने कर्मों का फल भोगना होगा| भारी सभा में अपमान करने वाले को ऐसा दंड दिया जाता है | तुमने गुरुजनो की सभा में संयम से रहने के नियम को तोड़ा है, इसलिए अब तुम्हे देवलोक का निवास नही मिल पाएगा| तुम दोनो अधम पिशाच , असंयमी का सा जीवन बिताओगे| अपवित्र जल और अपवित्र भोजन ही तुम्हारे योग्य है|
इंद्र का ऐसा श्राप सुनकर वे अत्यंत दुखी हुए और श्रापवश दोनो मर्त्य लोक में आ गये और हिमालय पर्वत पर दुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे| यदि वे पापियों के देश में जाते तो खाना-पीना मनमाना मिल जाता परंतु श्राप से श्रीघ्र उद्धार ना होता| इस कारण उन्होने तपोभूमि बद्रीनाथ में निवास किया| उन्हे गंध, रस तथा स्पर्श आदि कुछ भी ज्ञात ना था | यहाँ उन्हे अपार दुख मिल रहे थे| गुरुजनो की सभा में संयम से रहना चाहिए और संगीत की परम पुनीत साधना में अपनी भावना अपवित्र ना होने दें, यही बात उन दोनो के सोच का कारण बनी| वे बीहड़ वनो में कुरूप सूरते लिए और अभक्ष्य भक्षण करते हुए अपना जीवन बिता रहे थे| हिमालय के ठंडे प्रदेश में उनका जीवन अत्यंत कष्टमय था| उन्हे एक क्षण के लिए भी निद्रा नही आती थी| वहाँ अत्यंत सर्दी थी| इससे उनके रोम खड़े रहते और मारे शीत के उनके दाँत किटकिटाते रहते| दोनो पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे और उन्हे अपनो से बिछड़ने का बड़ा दुख था| एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा की , हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए थे की इस जन्म में हमे यह अत्यंत दुखदाई पिशाच योनि प्राप्त हुई|
दैवयोग से तभी माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आ गयी| निराशा से घिरे होने के कारण उस दिन उन्होने सवेरे से कुछ भी भोजन नही किया और ना ही कोई पाप कर्म किया| केवल फल फूल खा कर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल व्यथित मन से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये | उस समय सूर्य देव अस्त हो रहे थे| उस रात अत्यंत ठंड थी , इस कारण वे दोनो शीत के मारे अति दुखी हो कर , मृतक के समान आपस में एक दूसरे से चिपटे हुए थे| उस रात्रि उन्हे निद्रा भी नही आई| वे प्रभु का ध्यान करके दिन भर अपनी ग़लतियों की क्षमा माँगते रहे थे, रात्रि को भी उन्हे ईश्वर का ध्यान बना रहा|
श्री कृष्ण बोले,” हे राजन संयोग से उस दिन जया एकादशी की तिथि थी| दिन में व्रत और रात्रि में ईश्वर का ध्यान और जागरण के कारण अनजाने में ही पुण्य का कारण बन गया| उनका यह व्रत हो गया | जया एकादशी के उपवास और रात्रि जागरण करने से दूसरे दिन होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गयी| वे अत्यंत सुंदर गंधर्व और अप्सरा के देह धारण कर, सुंदर वस्त्र आभूषणो से अलंकृत हो स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गये| उस समय में आकाश में देवता तथा गंधर्व उनकी स्तुति करते हुए पुष्प वर्षा करने लगे| स्वर्ग लोक में जाअकर उन दोनो ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया| देवराज इंद्र उनको पहले जैसे रूप में देख कर आश्चर्यान्वित हुए और | इंद्र ने उनसे पूछा की अपनी पिशाच योनि से किस प्रकार छुटकारा पाया, मुझे बताओ |
माल्यवान अपनी भूल पर पछताता हुआ बड़ी विनम्रता से बोला,” देवराज इंद्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से हमारी पिशाच देह छूटी है|
यह सुनकर देवराज इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले,”हे माल्यवान भगवान की कृपा और जया एकादशी का व्रत करने से ना केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गयी और तुम पवित्र हो गये , बल्कि तुम्हारे सभी कुल वाले और हम देवताओं के भी भी वंदनीय हो गये| क्योंकि भगवान विष्णु और शिव के भक्त सदैव वंदनीय रहते हैं| अतः आपको धन्य है! धन्य है! अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो|
पुष्पवती ने भी निवेदन किया ,” हे देवराज इंद्र! आपका श्राप हमे वरदान सिद्ध हुआ और हमें भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त हुई|
श्री कृष्ण कहने लगे,” हे धर्मराज युधिष्ठिर! इस जया एकादशी के व्रत से समस्त कुयोनि अर्थात बुरी योनि छूट जाती है| इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि मे पड़ा व्यक्ति भी मुक्ति पा लेता है| जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है, मानो उसने सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए| क्योंकि एकादशी का व्रत सब जप, यज्ञ, दान आदि से अधिक फलदाई है| जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते है, वे अवश्य ही एक हज़ार वर्ष तक स्वर्ग में निवास करते हैं|
व्रत विधि:
जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे। भगवान की षोड़शोपचार पूजा करें! पूजा के बाद जया एकादशी की कथा (उपर दी हुई है) अवश्य पढ़ें|
पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नियम निष्ठा से व्रत रखने से व्यक्ति पिशाच योनि से भी मुक्त हो जाता है।
एकादशी के दिन कम से कम दो बार पूजा , सुबह और शाम को अवश्य करें| द्वादशी के दिन प्रातः पुनः पूजा करके ब्राह्मण को दान , भोजन और दक्षिणा देकर ही स्वयं अन्न ग्रहण करें|द्वादशी के दिन भी सामिष(माँसाहारी) भोजन से बचें|
Magh Shukla Paksha Ekadashi-Jaya Ekadashi (In English):
Yudhisthira Maharaj said, “Oh Lord Sri Krishna! You have explained us about Shattila ekadashi falling dark fortnight of Magh month. We are enthralled by it. You are master of the universe, You alone are the source of the four types of living entities “Andaj- those born from eggs, ‘Swedaj- those born from perspiration’, ‘Udbhij- those born from seeds’ and ‘ Jarayuj-those born from embryos’. You alone are the root cause of all, Oh Lord, and therefore You are the creator, maintainer and destroyer of all above mentioned four kinds of life forms . “My Lord, now please tell us about the Ekadasi that occurs in the bright fortnight of Magh month (Magh Shukl ekadashi) . By what name is it known, and what is the process for observing it? Who is the presiding Deity that is to be worshipped on this sublime day?
Lord Sri Krishna replied, “Oh Yudhisthira! The ekadashi falling in the bright fortnight of Magh month is knows as Jaya Ekadashi. Jaya Ekadasi obliterates all kinds of sinful reactions even like the papa of killing of Brahmana(Brahm hatya) and person attains the Moksha. The person is freed from lowly ghostly forms like Bhoot, Pret , Pishaach .There for one should observe this Ekadashi with proper procedure . Now I will tell about a story mentioned in holy Padm purana.
Long ago in the heavenly planes, Lord Indra ruled his celestial kingdom of heaven. All the devas (demigods) living there were very happy and content. Once Indr was enjoying a concert in Nandana Forest, which was beautifully graced with Parijata Flowers.The celestial singers called Gandharvas were singing. Gandharv Pushpadanta was present there with his daughter Pushpavati. Another Gandharv Chirasen was accompanied by his wife Malini and their sons Pushpavaan and Malyavaan. Pushpavati was a celestial beauty and Malyavaan saw each other and were instantly enamoured by each other.Pushpavati, being exceptionally beautiful too no time to attract Malyavan, with her charm and grace. Malyavan & Pushpavati couldn’t see that they could be cursed in Indra’s court. Blissfully unawares by their surroundings and completely enamoured by each other’s charms they were stealing glances.
O King! Pushpavati was very beautiful. Now they had come with the other performers to please Lord Indra by singing and dancing , but because they had become so enamored of each other, their intellect failed them midway and their rhythm broke in between. Music lovers took offence of this mistake. Music is considered as way to please Goddess Saraswati- The Goddess of art. That’s why it is considered an offence. Lord Indra understood the source of the errors at once. Offended at the discord in the musical performance, he became very angry and screamed, “You useless fools! You pretend to sing for me while in a stupor of infatuation with each other! You are mocking me! I curse you both to suffer henceforth as Pishachas . As husband and wife, go to the earthly regions and reap the reactions of your offenses. You have broken the code of conduct to maintain dignified behaviour in elder’s presence. Therefore you cannot remain in celestial realms now. You must live life of Pishacha, an unrestrained and undignified life. You are fit to carry on yourself only on filthy water and filthy food .”
Struck dumb by these harsh words, Malyavan and Pushpavati at once became morose and fell from the beautiful Nandana Forest in the kingdom of heaven to a Himalayan peak on Earth and started living there. If they went to the sinful lands, they would have got plenty of food and resources to survive, but then the riddance from curse would not have been easier. Hence they lived in holy land of Badrikashram . They lost their sense of taste and smell, and even their sense of touch. It was so cold and miserable high on the Himalayan wastes of snow and ice that they were suffering immeasurable hardships. One should maintain good code of conduct in elder’s presence and should not malign their notions during the performing the art of music-These thought constantly bothered them. They had clumsy faces now and eating filthy food while wondering in deep forests. It was very cold in Himalayan region. Even if they were in a cave, because of the snowfall and cold their teeth chattered ceaselessly, and their hair stood on end because of their fright and bewilderment.
They were remorsing greatly and had nobody to console them. In this utterly desperate situation, Malyavan said to Pushpavati, ‘What abominable sins did we commit to have to suffer in these pisacha bodies, in this impossible environment? This is absolutely hellish! Though hell is very ferocious, the suffering we are undergoing here is even more abominable. Therefore it is abundantly clear that one should never commit sins.”
However, by their great good fortune, it so happened that all auspicious Magh shukl Jaya Ekadashi befell during that time. They were greatly distressed and lost all hopes so they did not eat anything since morning and neither committed any sin of hunting etc. They spent their day by just surviving on whatever fruit etc the found. By the evening they came and sat under a Peepal tree with heavy hearts full of sadness and remorse. Sun was setting at that time. It was really cold at that night.Rather, the night was even colder and more miserable than the day. They shivered in the frigid snowfall as their teeth chattered in unison, and when they became numb, they embraced just to keep warm. Locked in each others arms, they could not enjoy neither sleep nor sex.They kept on remembering God and asking for forgiveness during the day and remained awake remembering Lord at night also.
Lord Krishna said,” O Yudhishthir! It was the day of Jaya ekadashi that day by chance. Fasting during the day and remembering Lord during the night staying awake became cause of great Punya although unknowingly by them. This became a vrata for them.The very next day they left their ghostly Pishaach forms because of fasting on jaya Ekadashi and staying awake at night . Malyavan and Pushpavati were once again beautiful heavenly beings(Gandharva and Apsara) wearing lustrous ornaments and exquisite garments. They proceeded to celestial realm heaven-Amaravati, in celestial airplane (vimana) arrived on the spot for them. A chorus of heavenly denizens , demi Gods and Gandharvas sang their praises.
Soon Malyavan and Pushpavati arrived at Amaravati, Lord Indra’s capital city, and then they immediately went before Lord Indra and offered him their cheerful obeisances. “Lord Indra and all Gods were astonished to see that they had been transformed, restored to their original status. Indra asked how did they got rid of their ghostly Pishaach forms so soon.
Malyavan replied, ‘Oh lord, it was by the extreme mercy of the Lord Vishnu and the powerful influence of the Jaya Ekadasi, that we were released from our suffering condition as pisachas.
Indradev was extremely pleased and said, ‘ O Malyavan, Not only you have got rid if Pishaach form and you absolved ll of your sins but Because you served the Supreme Lord Sri Vishnu by observing Ekadasi, you have become worshipable even by me and other Gods. Whosoever engages in devotional service to Lord Sri Hari or Lord Shiva becomes praiseworthy and worshippable even by me. Of this there is no doubt.Therefore praises for you. Now you can go with Pushpavati and have free rein to enjoy each other and wander about his heavenly planet as you wish.
Pushpavati also said that,” O Lord Indra! Your curse became a boon for us.”
Lord Shri Krishna said,” O Dharmaraj Yudhisthir ! A person can get rid of all lowly forms by observing this jaya ekadashi Vrata. Even person stuck in the most fallen form of ghostly Pishaacha also get rid of his lowly form with powerful influence of Jaya Ekadashi. A great soul who observes this fast with full faith and devotion has in effect given all kinds of charity, performed all kinds of sacrifice(Yajnas),Chantings(Japas) and bathed in all the Holy places of pilgrimage.Ekadashi vrata is more fruitful and powerful than all kinds of Japa, charity and yajnas. People who observe Jaya Ekadashi , they reside in heaven for at least a thousand years.
Jaya Ekadashi Vrata Procedure:
One should worship Lord Vishnu on Jaya Ekadashi day. People who want to keep fast they should eat once on a day before(On Dashami day). And the food has to be Sattvik(Pure vegetarian food with simple taste- Like milk,fruit ,vegetable , grains etc). On ekadashi day the person should not eat anything , if not possible tenn the ca take fruit and milk without salt. STRICTLY No grains or rice or non veg on ekadashi day. One should take Sankalpa ( an oath to observe the fast) in morning remembering Lord Vishnu. They he should do a Shodashopachar Pooja or at least offer Dhoop(Incense) , Deep(Lamp) ,Chandan(Sandal), Fruit, Til and Naivedya & offer bath with Panchamrit(milk,ghee-clarified butter, sugar,curd, honey, sandal & water). Make sure to recite the story of Jaya Ekadashi(Given Above) after pooja.
Devote should keep fast during the day and if possible at night also or can eat fruit at night. he should stay awake at nigh doing chanting of Lord or remembering Lord. On the next day of Dwadashi he should feed Brahans and gift the with janeu, beetle nut and Dakshina(some money) and then should take food. If the person observes the fast with full procedure and faith if is definitely freed even from ghostly for of pishach.
Years & Dates of This Ekadashi:
Date in 2019 – 16 February 2019, Day- Saturday || Begins – 01:19 PM, Feb 15 / Ends – 11:02 AM, Feb 16 || Nakshatra- Ardra upto 07:06 PM afterwards Punarvasu || Chandra- Gemini (Mithun)
Links To All 26 Ekadashis of 13 Months (Adhikmas Included)
Month/हिंदी महीना | Ekadashi Name/एकादशी का नाम |
Margashirsha Krishna Paksha/मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष | Utpanna Ekadashi/उत्पन्ना एकादशी |
Margashirsha Shukla Paksha/मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष | Mokshada Ekadashi/मोक्षदा एकादशी |
Paush Krishna Paksha /पौष कृष्ण पक्ष | Safala Ekadashi /सफला एकादशी |
Paush Shukla Paksha/पौष शुक्ल पक्ष | Putrada Ekadashi /पुत्रदा एकादशी |
Magh Krishna Paksha/माघ कृष्ण पक्ष | Shattila Ekadashi /षटतिला एकादशी |
Magh Shukla Paksha/माघ शुक्ल पक्ष | Jaya Ekadashi /जया एकादशी |
Falgun Krishna Paksha/ फाल्गुन कृष्ण पक्ष | Vijaya Ekadashi/विजया एकादशी |
Falgun Shukla Paksha/फाल्गुन शुक्ल पक्ष | Amalaki Ekadashi /आमलकी एकादशी |
Chaitra Krishna Paksha/चैत्र कृष्ण पक्ष | Papmochani Ekadashi /पापमोचनी एकादशी |
Chaitra Shukla Paksha/चैत्र शुक्ल पक्ष | Kamada Ekadashi /कामदा एकादशी |
Vaishakh Krishna Paksha/वैशाख कृष्ण पक्ष | Varuthini Ekadashi/ वरुथिनी एकादशी |
Vaishakh Shukla Paksha/वैशाख शुक्ल पक्ष | Mohini Ekadashi/मोहिनी एकादशी |
Jyesth Krishna Paksha/ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष | Apara Ekadashi /अपरा एकादशी |
Jyesth Shukla Pakhsa/ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष | Nirjala Ekadashi /निर्जला एकादशी |
Ashadh Krishna Paksha/आषाढ़ कृष्ण पक्ष | Yogini Ekadashi/योगिनी एकादशी |
Ashadh Shukla Paksha/आषाढ़ शुक्ल पक्ष | Devshayani Ekadashi / देवशयनी एकादशी |
Shravan Krishna Paksha/श्रवण कृष्ण पक्ष | Kamika Ekadashi / कामिका-कामदा एकादशी |
Shravan Shukla Paksha/श्रवण शुक्ल पक्ष | Shravana Putrada Ekadashi /श्रावण पुत्रदा एकादशी |
Bhadrapad Krishna Paksha/भाद्रपद कृष्ण पक्ष | Aja Ekadashi /अजा एकादशी |
Bhadrapad Shukla Paksha /भाद्रपद शुक्ल पक्ष | Parivartini-Parsva Ekadashi /परिवर्तिनी-पार्श्व एकादशी |
Ashwin Krishna Paksha/आश्विन कृष्ण पक्ष | Indira Ekadashi/इंदिरा एकादशी |
Ashwin Shukla Paksha/ आश्विन शुक्ल पक्ष | Papankusha Ekadashi /पापांकुशा एकादशी |
Kartik Krishna Paksha /कार्तिक कृष्ण पक्ष | Rama Ekadashi /रमा एकादशी |
Kartik Shukla Paksha/कार्तिक शुक्ल पक्ष | Dev Prabodhini Ekadashi /देव प्रबोधिनी एकादशी |
Adhikmas Krishna Paksha/अधिकमास कृष्ण पक्ष | Parama Ekadashi /परमा एकादशी |
Adhikmas Shukla Paksha/अधिकमास शुक्ल पक्ष | Padmini Ekadashi/पद्मिनी एकादशी |
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