क्यों मंत्र सिध्द नहीं होते …क्यूँ हम निराश हो जाते हैं !
गायत्री मन्त्र साधना में लौकिक विफलता और काशी गमन
श्री माधवाचार्य गायत्री के गंभीर एकनिष्ठ साधक थे। उन्होंने पावन भूमि वृन्दावन में रहते हुए गायत्री मन्त्र के विविध अनुष्ठान पूर्ण मनोयोग से संपन्न किये। साधना करते हुए उन्हें तेरह(13) वर्ष व्यतीत हो गए परन्तु उन्हें किसी प्रकार का भौतिक या आध्यात्मिक उन्नति सिद्धि दृष्टिगोचर न हुयी।अपनी इस समर्पित गायत्री साधना की ऐसी तात्कालिक विफलता देखकर उन्हें बड़ी निराशा हुयी। तत्पश्चात श्री माधवाचार्य काशी की ओर प्रस्थान कर गए। वहां उनकी भेंट एक वाममार्गी अवधूत सिद्ध से हुयी। उसने उन्हें श्री काल भैरव (जानिए काशी के 8 भैरवों को) की साधना का सुझाव दिया। यह तथ्य सर्वविदित है की वाममार्गी साधनायें अपेक्षाकृत कम समय में सिद्ध हो जाती हैं यद्यपि साधना में तनिक भी त्रुटि होने पर संभावित हानि बहुत घातक भी हो सकती है। त्वरित सफलता की आशा लेकर माधवाचार्य जी अब गायत्री मन्त्र की साधना छोड़ कर काल भैरव की साधना में प्रवृत्त हो गए।
श्री कालभैरव दर्शन व उनके द्वारा गायत्री मंत्र अनुष्ठान का आदेश
तेरह वर्षो तक कठोर गायत्री साधना करने वाले श्री माधवाचार्य के लिए वाममार्ग की साधना कोई दुरूह न सिद्ध हुयी। काल भैरव की साधना करते हुए शीघ्र ही उन्हें एक वर्ष व्यतीत हो गए।
एक दिन साधना के अनन्तर उन्हें एक गंभीर वाणी का उद्घोष सुनाई दिया, “मैं प्रसन्न हूँ तुमसे ! वरदान मांगो !”
माधवाचार्य की प्रतीत हुआ कि कोई मतिभ्रम हुआ है क्योंकि केवल वाणी सुनाई दे रही थी। सामने या अगल बगल कोई दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। इससे उन्होंने सुना अनसुना कर दिया। परन्तु उन्हें वही वाणी से तीन बार सुनाई दी।
तब माधवाचार्य जी समझ गए कि ये कोई इतर मानवीय शक्ति हैं। उन्होंने कहा , “आप कौन हैं ? सामने आकर परिचय दें , अभी मैं श्री काल भैरव की उपासना में व्यस्त हूँ।”
पुनः गंभीर वाणी में प्रत्युत्तर आया, “तुम जिसकी उपासना कर रहे हो , मैं वही काल भैरव हूँ !”
माधवाचार्य जी ने पूछा, “तो फिर सामने आकर दर्शन दीजिये देव।”
श्री काल भैरव ने कहा, “नहीं आ सकता।”
माधवाचार्य, “पर क्यों ?”
काल भैरव जी ने कहा , “हे माधव ! तुमने तेरह वर्ष तक जिस प्रकार गायत्री मंत्रो का निरंतर जाप करते हुए कठिन साधना की है, उसका तेज़ तुम्हारे चहु ओर व्याप्त है। उनके प्रभाव को मैं दृष्यमान होकर सहन नहीं कर सकता हूँ। इसलिए मैं तुम्हारे सामने प्रकट नहीं हो सकता।”
“जब आप उस तेज़ का सामना नहीं कर सकते तो मेरे आप किस प्रयोजन में काम आ सकते हैं। मेरे साधना करने का उद्देश्य ही दर्शन प्राप्ति था। अतः आप जाएँ।” माधवाचार्य जी ने निराश होकर कहा।
काल भैरव , “परन्तु बिना तुम्हारी साधना का प्रतिफल दिए मैं नहीं जा सकता हूँ।”
“तब आप मुझे यह बताएं की मुझे मेरी तेरह वर्षों की गायत्री साधना का प्रतिफल क्यों नहीं मिला?”, माधवाचार्य ने अपनी पिछली असफलता को याद करते हुए तिक्त भाव से पूछा।
श्री काल भैरव के कहा , “तुमसे किसने कहा की तुम्हे तुम्हारी गायत्री मन्त्र साधना का प्रतिफल नहीं मिला? वह अनुष्ठान बिलकुल निष्फल नहीं हुए। उन तरह वर्षों के गायत्री अनुष्ठान से तुम्हारे जन्म-जमांतरों की पाप राशि नष्ट हुयी है और तुम निर्मल हुए हो।”
माधवाचार्य ने निवेदन किया , “तो फिर हे देव अब मेरे लिए क्या कर्तव्यपथ उचित रहेगा ? अब मैं क्या करूँ ?”
श्री काल भैरव, “अब तुम फिर से एक वर्ष तक गायत्री मन्त्र का अनुष्ठान करो। इससे तुम्हारे इस जन्म के शेष पाप भी नष्ट हो जायेंगे और माता गायत्री तुम पर कृपा करेंगी।”
माधवाचार्य ने अपनी साधना शंका निवारणार्थ पूछा , “हे देव आप और गायत्री माता कहाँ होते हैं ? हम क्यों नहीं आपको देख पाते ?”
“हम यहीं होते हैं भिन्न भिन्न आयामों में। जब तुम साधना के अंतर्गत मन्त्र जाप कर्म कांड आदि संपन्न करते हो तो तुम्हे हमें देखने की शक्ति उपलब्ध होती है जिसे तुम दर्शन साक्षात्कार कहते हो।”
माधवाचार्य की शंका का पूर्ण निर्मूलन हुआ। आज के अनुभव से मन में कुछ शांति छायी। तदनन्तर माधवाचार्य पुनः वृन्दावन लौट आये और गायत्री मन्त्र का अनुष्ठान फिर से आरम्भ किया।
गायत्री माता के दर्शन व वरदान प्राप्ति
श्री माधवाचार्य अब निश्चिंततापूर्वक दत्तचित्त होकर गायत्री मन्त्र की साधना में अनुरत हो गए। एक दिन वह सूर्योदय पूर्व ब्रह मुहूर्त में साधना में बैठने ही वाले थे कि समुख तीव्र दिव्य आलोक उद्भासित हुआ। प्रकाश पुंज में माता गायत्री की छवि धीरे धीरे स्पष्ट हुयी
“माधव मैं आ गयी हूँ ! वरदान मांगो वत्स।,” माँ की स्नेहासिक्त दिव्य वाणी मुखरित हुयी।
माधव का मन प्राण रोमांचित हो उठा।वर्षों की साधना अंततः सफल हुयी। माँ, माँ कहकर माधवाचार्य फूट-फूट कर रोने लगे।
माँ पहले बहुत लालसा थी वरदान मांगने की पर अब कोई इच्छा शेष न रही। आप जो मिल गयी हैं , मेरे सारे मनोरथ सफल हो गए।”
माँ , “नहीं माधव तुम्हे मांगना तो होगा ही। साधना का प्रतिफल अवश्य मिलता है। यह शाश्वत नियम है।”
माधव, “तो माँ यही वर दीजिये की यह शरीर भले ही समय के साथ नष्ट हो जायेगा परन्तु इस शरीर से की गयी भक्ति की आप सर्वदा साक्षी रहेंगी।” निष्काम, इच्छा निःशेष माधवाचार्य के मुख से केवल इतना ही निकल सका।
“तथास्तु” ,अपने भक्त के इस निस्वार्थ भोली याचना पर माँ भी बिना मुग्ध हुए न रह सकीं।
गायत्री माता (पढ़िए श्री गायत्री माता की आरती) की साक्षात् कृपा प्राप्त कर माधवाचार्य जी ने अगले तीन वर्षों तक ‘माधवनिदानम‘ नामक आयुर्वेद का आलौकिक ग्रंथ लिखा और अपनी भक्ति को अमर कर गए।
गायत्री मंत्र महिमा का संक्षिप्त विवेचन-Gayatri Mahima
याद रखिये- आपके द्वारा शुरू किये गये मंत्र जाप पहले दिन से ही काम करना शुरू कर देतै है। लेकिन सबसे पहले (आपके पूर्व जन्म के संचित कर्म और प्रारब्ध के पापों को नष्ट करते है। देवताओं की शक्ति इन्हीं पापों को नष्ट करने मे खर्च हो जाती है और जैसे ही ये पाप नष्ट होते है, आपको एक आलौकिक तेज एक आध्यात्मिक शक्ति-सिध्दि प्राप्त होने लगती है !
शास्त्रों में 7 करोड़ मंत्र बताए गए हैं ।जो पूरे ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करते हैं व सर्वत्र व्याप्त है ।उसमें भी गायत्री मंत्र का प्रमुख स्थान हैं। भगवान् राम के गुरु, सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त गाधिनंदन श्री विश्वामित्र जी ने इस मंत्र का अविष्कार किया था। बुरी शक्तियों को हटाने लिए यह ब्रह्मास्त्र स्वरूप है। बहुत-बहुत शक्तिशाली मंत्र है। बुरी शक्तियाँ वो होती है जो मोक्ष नही चाहती, वो संसार को ही सब कुछ मानती है। वे बुरी शक्तियाँ पंच विकारों में फंसी आत्माए होती है।वे अपने आत्मतत्व को नही जानती है । गायत्री मंत्र सबका भला चाहता है।यह मंत्र सबको मोक्ष दिलाता है। गायत्री मन्त्र के जाप से उनका अस्तित्व ही समाप्त होने लगता है और उन्हें मुक्ति की ओर ले जाता है जो यह बुरी शक्तियां नहीं सहन कर पाती हैं और इसलिए बुरी शक्तियाँ इस मंत्र से भाग जाती है।
यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है की गायत्री मंत्र सात्त्विक तेजयुक्त साधना है। जबकि अवधूत द्वारा बताई हुयी भैरव साधना तंत्र मार्गीय साधना थी। अतएव उस मार्ग द्वारा आमंत्रित देवता सतोगुणी तेज नहीं सहन कर पाए। यह भी एक प्रकट सत्य है की गायत्री मन्त्र की नित्य माला जपने वाले के आस पास तमोगुणी शक्तियां भूत -प्रेत आदि नहीं फटक सकते।
सन्दर्भ
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