गुजरात में भावनगर के पास अरब सागर में कोलियाक तट पर करीब 1.5 किलोमीटर अंदर जाकर एक अद्भुत तीर्थ है शिव मंदिर है भगवान निष्कलंकेश्वर- निष्कलंक महादेव का। यहाँ पर समुद्र देवता स्वयं भगवान शिव का नित्य जलाभिषेक करते हैं। निष्कलंक महादेव मंदिर (Nishkalank Mahadev Temple)रोज जलसमाधि लेता है। नित्य होने वाले प्राकृतिक ज्वार में मंदिर पूरी तरह डूब जाता है। इस बीच महादेव के दर्शन नहीं सकते। प्रतिदिन दोपहर 1 बजे से 10 बजे के बीच ही ज्वार के कम होने पर समुद्र की लहरे मंदिर तक पहुँचाने का मार्ग देती हैं। भगवान के दर्शन उसी समय संभव होता है।
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समुद्र के बीच स्थित है निष्कलंक महादेव मंदिर
जब ज्वार पूरे जोर पर होता है तब निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर का केवल पताका और स्तम्भ ही नजर आता है। जिसे देखकर अनुमान होता है कि यही पर मंदिर स्थित है। मंदिर का प्रसत्र निर्मित स्तंभ 20 फीट ऊंचाई का है। जब तक ज्वर रहता है यु समझिये कि समुद्र देवता शिव मंदिर की स्वतः स्वच्छता कर देते हैं।
जब पानी कम होता है तब कुछ नित्य के दर्शनार्थी पानी में पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते है। यद्यपि उन्हें पानी तरह उतरने की प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। ज्वार विशेष रूप से अमावस्या और पूर्णिमा के दिनों में सक्रिय होते हैं और भक्त इन दिनों ज्वार के गायब होने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसलिए, कृपया मंदिर जाने से पहले समुद्र के उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के कार्यक्रम पर ध्यान दें क्योंकि मंदिर की पूरी यात्रा इस पर निर्भर करती है।
निष्कलंक महादेव मंदिर (Nishkalank Mahadev Temple) में भगवान, शिवजी के पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं। द्वापर युग में पांडवों ने इस स्थान की पूजा की थी और उन पांचों भाइयों में से प्रत्येक को भगवान शिव ने यहीं दर्शन दिए थे। ये 5 पवित्र शिवलिंग उन्ही के हैं।
निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर की मान्यताएं
लोगों की ऐसी मान्यता है कि यदि निष्कलंक महादेव मंदिर (Nishkalank Mahadev Temple) में किसी प्रियजन की चिता कि राख शिवलिंग पर लगाकार जळ में प्रवाहित कर दें तो उसको मोक्ष मिल जाता है। मंदिर में भगवान शिव को राख, दूध, दही और नारियल चढ़ाए जाते है।
महाभारत काल से हैं निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर
निष्कलंकेश्वर महादेव मंदिर का संबंध महाभारत काल से है। महाभारत युद्ध के बाद पांडव एक भरी चिंता हुयी कि उन्हें इस भयंकर युद्ध में अपने ही सगे-संबंधियों की हत्या का पाप लगा है। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण से उपाय पूछा। भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को एक काला ध्वज और एक काली गाय सौंपकर उस गौ का अनुसरण करने को कहा।
इस तरह मिली पाप से मुक्ति
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि जब ध्वज और गाय का रंग पूरी तरह बदल जाएं यानी ध्वजा और गौ काले से सफदे हो जाएं तो समझ लेना कि पाप से मुक्ति मिल गई। और जिस जगह ऐसा हो उसी स्थान पर भगवान शिव के दर्शन के लिए तपस्या भी करना।
गौ माता का अनुसरण करते हुए पांडव जब कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वज का रंग सफेद हो गया। तब वह वहीँ रुक कर भगवान शिव की तपस्या भी करने लगे। भगवान शिवजी ने प्रसन्न होकर पांचों भाईयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वह पांचों शिवलिंग ही यहाँ स्थित है। पांचो शिवलिंगों के सामने नंदी की प्रतिमा भी हैं। सभी शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है।
इस चबूतरे पर एक छोटा सा तालाब भी है, जिसे पांडव तालाब कहते हैं। श्रद्धालु पहले यहां हाथ-पैर धोते हैं फिर दर्शनकर पूजा-अर्चना करते हैं।
भादवे महीने की अमावस क़ो भरता है भाद्रवी मेला
चूंकि यहां पर आकर पांडवों को अपने सम्बन्धियों को मारने के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते हैं। भाद्रपद महीने की अमावस्या को यहां पर मेला लगता है जिसे भाद्रवी मेला कहा जाता है।
प्रत्येक अमावस्या के दिन निष्कलंक महादेव मंदिर (Nishkalank Mahadev Temple) में भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। हालांकि पूर्णिमा और अमावस के दीन ज्वार अधिक सक्रिय रहता है फिर भी श्रद्धालु उसके ऊतर जाने इंतजार करते है और फिर भगवान शिव का दर्शन करते है।
वार्षिक ‘भाद्रवी मेला’ भावनगर के महाराजा के वंशजो के द्वारा मंदिर की पताका फहराने से प्रारम्भ होता है। मार्के कि बात है कि यही पताका मंदिर पर अगले एक वर्ष तक फहराती रहती है और यह झंडा केवल अगले मंदिर उत्सव के दौरान बदला जाता है।। यह भी एक बड़े आश्चर्य की बात है की साल भर एक ही पताका लगे रहने के बावजूद कभी भी इस पताका को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। यहां तक की 2001 के विनाशकारी भूकंप में भी नहीं जब यहां 50,000 लोग मारे गए थे।
Nishkalank Mahadev Darshan Time Table
निष्कलंक महादेव दर्शन समय सारणी
निष्कलंक महादेव मंदिर प्रायः लगभग सुबह 8:30 बजे खुलता है और फिर शाम को 7:00 बजे पानी में डूब जाता है।तिथि के अनुसार इस समय में परिवर्तन होता है। नीचे सारणी के अनुसार विभिन्न दिनों में इसके खुलने और बंद होने का समय समझें।
Tithi(तिथि) Vad/Sud | Hour/Minutes (Empty) खुला रहेगा | Hour/Minutes (Full) |
Pratipada (प्रतिपदा)-Ekam | 08 – 18 am | 01 – 18 pm |
Dwitiya(द्वितीया)-Beej | 09 – 06 am | 02 – 06 pm |
Tritiya(तृतीया)-Trij | 09 – 54 am | 02 – 54 pm |
Chaturthi(चतुर्थी)-Choth | 10 – 42 am | 03 – 42 pm |
Panchami(पंचमी)-Pancham | 11 – 30 am | 04 – 30 pm |
Shashthi(षष्ठी)-Chhth | 12 – 18 pm | 05 – 18 pm |
Saptami(सप्तमी)-Satam | 01 – 06 pm | 06 – 06 pm |
Ashtami(अष्टमी)-Atham | 02 – 18 pm | 07 – 18 pm |
Navami(नवमी)-Num | 03 – 06 pm | 08 – 06 pm |
Dashami(दशमी)-Dasham | 03 – 54 pm | 08 – 54 pm |
Ekadashi(एकादशी)-Agyarash | 04 – 42 pm | 09 – 42 pm |
Dwadashi(द्वादशी)-Barash | 05 – 30 pm | 10 – 30 pm |
Trayodashi(त्रयोदशी)-terash | 06 – 18 pm | 11 – 18 pm |
Chaturdashi(चतुर्दशी)-Chaudash | 07 – 06 pm | 12 – 06 am |
Purnima(पूर्णिमा) | 07 – 30 pm | 12 – 30 am |
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