‘बूढ़ सुग्गा पोस न मानेला’ यह भोजपुरी कहावत काफी पुरानी है। आइए सबसे पहले कठिन शब्दों का अर्थ जानते हैं
कठिन शब्दार्थ
बूढ़ – बूढ़ा
सुग्गा – तोता (मराठी में पोपट)
पोस – पोषण, उपकार
बूढ़ सुग्गा पोस न मानेला का अर्थ
यहां कहावत लोकोक्ति का अर्थ है कि बूढ़ा तोता पोषण नहीं मानता। अर्थात आप चाहे जितना भी खिला पिला लें वो आपका लालन पालन का उपकार नही मानेगा ।
होता ऐसा है कि यदि आप एकदम छोटे शिशु तोते को बचपन से ही अपने आश्रय में लें और उसे खिला-पिला कर बड़ा करें तो एक समय आएगा कि उसे यदि उसे उड़ भागने का मौका मिल भी जाए तो भी वह नहीं भागेगा क्योंकि उसे आपसे लगाव हो चलता है। और शायद इसलिए भी की उसने बाहर कभी देखा ही नहीं है तो उसे पता नहीं कि बाहर की दुनिया होती कैसी है।
वहीं यदि कोई उम्र दराज तोता यदि गलती से पकड़ में आ जाए तो आप चाहे उसे कितनी भी अच्छी तरह से रख लें, अच्छे से अच्छा खिला पिला लें , उसे स्वतंत्रता की कीमत पता होती है। मौका मिलते ही वह उड़ भागेगा।आपका पोस (पोषण) नही मानेगा।
बूढ़ सुग्गा पोस न मानेला का वाक्य प्रयोग
गिरधारी चच्चा बड़े का कुक्कुर जियउलन।खूब खियौला पियौला लेकिन भी कुछ दिना बाद कुक्कुरवा सिवाने भाग गयल। भैया का करबा, बूढ़ सुग्गा पोस न मानेलन।
खड़ी हिंदी बोली रूपांतर – गिरधारी चाचा ने एक बड़े कुत्ते को पालतू बनाना चाहा लेकिन खूब खिलाने पिलाने पर और अच्छी रख-रखाव के बावजूद भी कुछ दिनों बाद वह कुत्ता दूर दराज क्षेत्र में भाग गया। सच ही बात है कि बूढा सुग्गा पोस नहीं मानता।
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