मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य अवतार की पूजा का विधान है। भगवान का यह अवतार सतयुग में हुआ था। मान्यता है जो भी भक्त इस दिन मछलियों की सेवा करते हैं, उन्हें दाना खिलाते हैं, भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से उनके हर प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं। मत्स्य द्वादशी पर भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। चूंकि, इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर स्वयाम्भुव मनु और सप्तर्षियों की जल प्रलय से रक्षा की थी, अतएव मत्स्य अवतार संकट से उबारने के लिए प्रसिद्द हैं।
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु ने एक कल्प के अंत तथा एक नए कल्प के निर्माण के समय लिया था अर्थात एक युग के अंत होने पर जब नया युग शुरू होता है तब उन्होंने इस अवतार को लिया था। कल्प वह होता हैं जिसमें चारों युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग) आते हैं।
मत्स्य द्वादशी के दिन पूजा और व्रत के अलावा कुछ खास उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से नौकरी और कारोबार में आने वाली हर तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
इस बार २०२१ में १५ दिसंबर दिन बुधवार को मत्स्य द्वादशी मनाई गयी। सन २०२२ में मत्स्य द्वादशी ५ दिसंबर सोमवार को मनाई जाएगी|
इस दिन मंदिरों में भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में ‘नागलापुरम वेद नारायण स्वामी मंदिर’, भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित है। ये भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार को समर्पित एकमात्र मंदिर ही है।
मत्स्य द्वादशी का द्वादशी का महत्व:
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सृष्टि का आरंभ जल से हुआ है और आज के समय में भी जल ही जीवन है। इसलिए शास्त्रों में मत्स्य द्वादशी का विशेष महत्व माना जाता है।
- भगवान विष्णु के सभी अवतारों में से प्रथम अवतार मत्स्य अवतार है. जिस वजह से मत्स्य द्वादशी बहुत ही शुभ और लाभकारी मानी जाती है।
- मत्स्य द्वादशी के दिन श्रद्धा पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से भक्तों के सभी प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं और उनके सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
मत्स्य द्वादशी के बारे में तथ्य :
सूचना: कृपया ध्यान दें आजकल अधिकतर वेबसाइटों पर मत्स्य अवतार के द्वारा दानव हयग्रीव के वध की बात पोस्ट की गयी है जो कि पूर्णतः भ्रामक है। वस्तुतः हयग्रीव दानव का वध भगवान विष्णु के ही एक अन्य अवतार हयग्रीव ने ही किया था क्योंकि हयग्रीव दानव को वरदान था कि उसका हयग्रीव के द्वारा ही वध हो! वर माँगते हुए उसने सोचा कि हयग्रीव तो वह स्वयं ही है तो फिर कौन उसका वध करेगा। आदि माता ने उसे वरदान तो दे दिया, परन्तु कालांतर में दानव का अवतार बहुत बढ़ा तो भगवान् विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ जिसमें उनका सर घोड़े का था। ‘हय’ एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ घोड़ा ही होता है। हयग्रीव अवतार की कथा के लिए यहाँ पढ़ें।
इन सारी वेबसाइटों का स्त्रोत संभवतः एक ही मूल वेबसाइट से गलत जानकारी कॉपी पेस्ट करने के कारण ऐसी चूक हुयी है। यह तथ्य यह भी दर्शाता है कि अधिकांश लेखकों ने बिना शास्त्रों को पढ़े और शोध किये बस देखा देखी गलत पर गलत जानकारी पोस्ट करते गए। बड़ी ही शोचनीय अवस्था है कि जिन्हे हिन्दू धर्म का कुछ भी नहीं पता वो भी व्यूज के लिए बिना जाने त्रुटिपूर्ण लेख पोस्ट करते हैं।
मैंने इसकी पुष्टि करने के लिए पूरा मत्स्य पुराण पुनः पढ़ा पर यही पाया कि भगवान हयग्रीव ने ही हयग्रीव दानव का वध किया था,मस्त्यावतार भगवान ने नहीं। भगवान् मत्स्य की कथा निम्न है :
मत्स्य अवतार की कथा
राजा सत्यव्रत
कल्प के अंत के समय एक महान राजा सत्यव्रत राज किया करते थे जो भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त तथा धर्म के पालक थे। एक दिन वे प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात नदी में सूर्य देव को जल अर्पण कर रहे थे। तभी हाथ में जल लेते समय उसमे एक छोटी मछली भी आ गयी। जब वे वापस उस मछली को समुंद्र में डालने लगे तभी वह मछली राजा से बात करने लगी।
कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था। सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार हृदय का भी था। प्रभात का समय था। सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नान करने के पश्चात नदी में सूर्य देव को जल अर्पण कर रहे थे। तभी हाथ में जल लेते समय उसमे एक छोटी मछली भी आ गयी। सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया।
मछली बोली- “राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।” सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली- “राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है।”
सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया।
यहाँ भी मछली का शरीर रात भर में ही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया।
दूसरे दिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- “राजन!
मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंध कीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है।”
तब सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल किया, किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ गया।
इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डाल दिया।
आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहने के लिए वह छोटा पड़ गया।
अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली- “राजन! यह समुद्र भी मेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए।”
अब सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। यह देखकर राजा विस्मित रह गए थे तथा उन्हें अपनी गलती का अनुभव हो गया था। उन्होंने मछली से कहा कि उन्होंने अहंकारवश उसे तुच्छ प्राणी की संज्ञा दी थी। यह देखकर राजा सत्यव्रत को अहसास हो गया कि यह मछली कोई और नही बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का ही रूप है क्योंकि ऐसी दिव्य शक्ति केवल उन्ही में ही हो सकती है। इसलिये उन्होंने उसके सामने हाथ जोड़कर अपने असली रूप में आने की प्रार्थना की।
वह विस्मय-भरे स्वर में बोला- “मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वाले आप कौन हैं?
आपका शरीर जिस गति से प्रतिदिन बढ़ता है, उसे दृष्टि में रखते हुए बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि आप अवश्य परमात्मा हैं।
यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?”
सचमुच, वह भगवान श्रीहरि ही थे। राजा सत्यव्रत के निश्छल मन तथा सत्य वचन को सुनकर भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में उन्हें दर्शन दिए जिसका ऊपरी भाग श्रीहरि तथा निचला भाग मत्स्य का था।
उन्होंने सत्यव्रत से कहा कि अब प्रलय का समय निकट आ चुका है तथा अब से सात दिन के पश्चात एक महाप्रलय आएगी जिसमें संपूर्ण पृथ्वी डूब जाएगी तथा जीवन का अंत हो जायेगा।
“राजन! आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्र उमड़ उठेगा।
भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल के अतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा।
उस समय श्रीहरि की कृपा से एक विशाल नौका तुम्हारे पास आएगी। उन्हें उस नौका में सप्त ऋषि, सभी प्रकार के प्राणियों के सूक्ष्म रूप और सभी अनाजों. वनस्पतियों तथा अन्य वस्तुओं के बीज संग्रहित करके रखने होंगे। इसके पश्चात मैं पुनः मत्स्य रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। मेरे शीर्ष पर्स स्थित विशाल सींग से वासुकी नाग की सहायता से उस नौका को तुम्हे बांध देना है। इसके पश्चात मैं प्रलय पर्यन्त उस नौका व उसमें उपस्थित सभी की रक्षा करूंगा और इस संकटसे तुम सबको पार लगाऊंगा। मैं उसी समय तुम्हे आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूँगा।”
सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे।
सृष्टि पर आयी महाप्रलय तथा मनु का उदय
इसके सात दिन के पश्चात सृष्टि में महाप्रलय आ गयी। राजा सत्यव्रत भगवान विष्णु के कहेनुसार सप्त ऋषियों समेत अन्य सभी वस्तुओं को अपने साथ लेकर एक ऊँचें पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए। तभी एक विशाल नाव उनके पास आई जिसमें उन्होंने समस्त बीजों तथा प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को रखा। इसके पश्चात वे सभी उस नाव में बैठे तथा वह नाव प्रलय में तैरती हुई आगे बढ़ने लगी।
जब धीरे-धीरे प्रलय ने भयानक रूप लिया तब उनकी नौका भी हिलने-डुलने लगी तथा पानी अंदर आने लगा। उस समय भगवान विष्णु पुनः मत्स्य अवतार में वहां आये जिसका एक विशाल सींग था। वासुकी नाग भी उनके साथ आया तथा सत्यव्रत ने उसकी सहायता से नाव को मछली के सींग से बांध दिया।
नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।
सहसा मत्स्य रूपी भगवान प्रलय के सागर में दिखाई पड़े।
सत्यव्रत और सप्त ऋषि गण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे- “हे प्रभो! आप ही सृष्टि के आदि हैं,
आप ही पालक है और आप ही रक्षक ही हैं। दया करके हमें अपनी शरण में लीजिए, हमारी रक्षा कीजिए।”
सत्यव्रत और सप्त ऋषियों की प्रार्थना पर मत्स्य रूपी भगवान प्रसन्न हो उठे।
उन्होंने अपने वचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया- “सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ।
न कोई ऊँच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत नश्वर है।
नश्वर जगत में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है।
जो प्राणी मुझे सबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।”
इसके बाद सृष्टि प्रलय में सबका अंत हो गया। प्रलय के शांत होने के पश्चात वह नाव एक किनारे धरती पर पहुंची तथा भगवान विष्णु ने पुनः अपने मत्स्य अवतार में दर्शन दिए। अब सृष्टि में केवल सत्यव्रत राजा (मनु), सप्तऋषि तथा अन्य वस्तुएं शेष थी जो वे अपने साथ लाये थे।
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार लेने का उद्देश्य
अंत में भगवान विष्णु ने मनु को अपने मत्स्य अवतार लेने का उद्देश्य प्रकट किया। उन्होंने उसे बताया कि जिस प्रकार एक किसान अपनी फसल की कटाई के समय कुछ बीजों को अपने पास रख लेता है तथा उसके पश्चात उन्हीं बीजों की सहायता से पूरा धन-धन्य पुनः उगाता है। उसी प्रकार सृष्टि के अंत के पश्चात उसके पुनः निर्माण के लिए कुछ बीजों का रखा जाना आवश्यक था।
भगवान विष्णु ने मनु को सभी चीज़ों के बीज रखने का आदेश दिया था चाहे वह दुःख देने वाली हो या सुख। उदाहरण के तौर पर पुष्प तथा कांटे दोनों, कोयल तथा कौवा दोनों क्योंकि सृष्टि में हर जीव का अपना औचित्य तथा महत्ता है। इसके साथ ही सप्त ऋषि का चुनाव इसलिये महत्वपूर्ण था क्योंकि ज्ञान के बिना मनुष्य अधुरा है। इसलिये सृष्टि में संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से उनका बचना आवश्यक था।
इसके साथ ही भगवान विष्णु ने मनु को चारों वेद प्रदान किये जिनकी रक्षा स्वयं श्रीहरि ने की थी। उन्होंने चारों वेदों को अपने मुख में दबाकर रखा था तथा अब मनु को सृष्टि के कल्याण के लिए लौटा दिए थे।
मनुस्मृति लिखने का आदेश
अंत में भगवान विष्णु ने अपने धाम को जाने से पहले मनु को आदेश दिया कि चूँकि वह प्राचीन कल्प से बचा हुआ एक मात्र प्राणी शेष है तो वह उस कल्प की सभी अच्छी बाते एक पुस्तक में लिखे। इसके साथ ही उस पुस्तक में उन बातों का भी उल्लेख करे जिस कारण उस सृष्टि का अंत हुआ तथा एक नयी सृष्टि का निर्माण संभव हो सका। इस पुस्तक की सहायता से आने वाले कल्प में लोग प्रेरणा ले सकेंगे। इस पुस्तक को मनुस्मृति के नाम से जाना जायेगा अर्थात मनु को जो-जो भी याद रहा वह उसने उस पुस्तक में लिख दिया। यह कहकर भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का औचित्य पूर्ण हुआ तथा वे अपने धाम को लौट गए।
मत्स्य द्वादशी पूजन विधि
मत्स्य द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें. वस्त्र आदि पहनने के बाद पूजा शुरू करें. पूजा वाले स्थान पर जल से भरे चार कलश रखें. इसमें पुष्प डाल दें, उसके बाद चारों कलश को तिल की खली से ढक दें. इनके सामने भगवान विष्णु की पीली धातु की प्रतिमा रखें और फिर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि से पूजन करें.
इसके बाद पूजा स्थल में चार भरे कलश में पुष्प डालकर स्थापित करें. बता दें कि यह चार कलश समुद्र का प्रतीक माने जाते हैं. इसके उपरांत चारों कलश को तिल की खली से ढक कर इनके सामने भगवान श्री हरि विष्णु की पीली धातु की प्रतिमा स्थापित करें.
- इसके बाद भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं.
- अब भगवान श्री हरि को केसर का तिलक लगाएं.
- इसके बाद गेंदे के फूल, तुलसी के पत्ते अर्पित करें.
- इसके उपरांत मिठाई का भोग लगाकर इस मंत्र का जाप करें-ॐ मत्स्य रूपाय नमः.
- पूजा के आखिर में आरती जरूर करें.
इस मंत्र का करें जाप (Matsya Dwadashi Mantra) : मंत्र: ॐ मत्स्यरूपाय नमः॥
मत्स्य एकादशी के दिन करें यह उपाय-
इस दिन पूजा और व्रत के अलावा कुछ खास उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से नौकरी और कारोबार में आने वाली हर तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं.
- सभी प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने और सभी संकटों को दूर करने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन मछलियों को दाना डालें.
- मत्स्य द्वादशी के दिन नव धान को अपने सिर से वार कर पानी में डाल दें. ऐसा करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं.
- आर्थिक संकट को दूर करने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सम्मुख रोली मिले गाय के घी का दशमुखी दीपक जलाएं.
- किसी भी संकट या विवाद को दूर करने के लिए भगवान विष्णु पर अर्पित किए गए गेहूं के दाने मछलियों को खिलाएं.
- नुकसान से बचने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के प्रसाद को गाय को खिलाएं.
- व्यापार में सफलता पाने के लिए भगवान विष्णु पर चढ़ा सिक्का जल में प्रवाहित कर दें.
- परिवार में खुशहाली लाने के लिए तुलसी की माला से भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें.
- मत्स्य द्वादशी के दिन जलाशय या नदियों में मछलियों को आटे की गोली खिलाना बहुत ही पुण्यकारी माना गया है. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के कुंडली के दोष दूर होते हैं.
- इस दिन जलाशय या नदियों में मछलियों को आटे की गोलियां खिलाने से मनुष्य के कुंडली के दोष दूर होते हैं.
- इस दिन भगवान विष्णु के सम्मुख रोली मिले गाय के घी का दशमुखी दीपक जलाने से आर्थिक संकट दूर होते हैं.
- यदि किसी की नौकरी या कारोबार में परेशानियां आ रहीं हैं तो इस दिन भगवान विष्णु पर चढ़ाया हुआ सिक्का जल में प्रवाहित कर दें.
ओम भगवते वासुदेवाय नमः
References:
https://hindi.webdunia.com/religious-stories/hayagreeva-avatar-story-in-hindi-120121800062_1.html
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