करवा चौथ (Karwa Chauth) दो शब्दों से मिलकर बना है,’करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। प्रेम,त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्व है,जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।
दानवीर राजा बलि वामन भगवान कोअपना सर्बस्व दान करने के लिए टोटी वाले करक(करवा-Karwa)से स्रपत्नीक जलार्घ्य दे कर अमर हुए थे।अतएव सधवायें अपने पति के दीर्घ जीवन की कामना हेतु करक(करवा)चतुर्थी (Karak Chaturthi-Karwa Chauth) का व्रत रखती आ रहीं हैं।
करवा चौथ व्रत तिथि- Karwa Chauth Vrat Tithi
‘करवा चौथ’…. ये एक ऐसा दिन है जिसका सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (Karwa Chauth Vrat Tithi occurs on Katirk Krishna Chaturthi) को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। कार्तिक मास की चतुर्थी जिस रात रहती है उसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है l
करवा चौथ व्रत का पौराणिक इतिहास-Karwa Chauth Puranic History
वैसे तो करवा चौथ(Karwa Chauth) की कई कहानियां सुनने को मिलती है लेकिन ये माना जाता है कि ये परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है।
1. ऐसा माना जाता है कि देवताओं और राक्षसों से युद्ध के दौरान देवताओं को विजयी होने के लिए ब्रह्मा जी ने उनकी पत्नियों को ये व्रत रखने का सुझाव दिया था। सभी देवियों ने ब्रह्मा जी की बात मानकर निर्जला एवं निराहार व्रत रखा। परिणाम स्वरूप युद्ध में देवता विजयी हुये और उसके बाद ही सभी देवियों ने व्रत खोला। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी और आसमान में चाँद निकल आया था। मान्यता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत शुरू हुआ।
2. यह भी कहा जाता है कि शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था।
3. महाभारत में भी इस व्रत का जिक्र किया जाता है जिससे पता चलता है कि गांधारी ने धृतराष्ट्र और कुंती ने पांडु के लिए यह व्रत किया था।
बस तभी से इस व्रत की प्रथा चली आ रही है महिलाएं सुबह सूर्योदय से से पहले उठकर सरगी खाती है। यह खाना आमतौर पर उनकी सास बनाती है और इसे खाने के उपरांत महिलाएं पूरे दिन भर निर्जल और निराहार रहती हैं। शाम को भगवान गणेश और शिव पार्वती की पूजा की जाती है जिसमें पत्नी अपने पति की लंबी उम्र और उनकी सफलता की कामना करती हैं। इसके ऊपर उपरांत चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य दिया जाता है और पूजा की जाती है। इसके बाद पत्नी छलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर उसका व्रत खोलता है और पत्नी अपने पति के पैरों को छूकर का आशीर्वाद लेती है।
करवा चौथ व्रत विधि-नियम: Karwa Chauth Vrat Vidhi-Rules
महिलाएं सुबह सूर्योदय के बाद पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं। दिन में शिव, पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है। शाम को देवी की पूजा होती है, जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है। चंद्रमा दिखने पर महिलाएं छलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं। पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं।
- इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है, तो कहीं नहीं है। इसलिए अपने परंपरा के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए। सरगी व्रत के शुरू में सुबह दी जाती है। एक तरह से यह आपको व्रत के लिए दिनभर ऊर्जा देती है।
- .इस व्रत में महिलाओं को पूरा श्रृंगार करना चाहिए। इस व्रत में महिलाएं मेहंदी से लेकर सोलह श्रृंगार करने चाहिए।
- चंद्रमा के आने तक रखा जाता है व्रत: इस व्रत को चंद्रमा के आने तक रखते हैं। उसके बाद व्रत को पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला जाता है। लेकिन इसके पहले निर्जला व्रत रखा जाता है। हर जगह अपने-अपने रिवाजों के अनुसार व्रत रखा जाता है।
- करवों से पूजा : इस व्रत में मिट्टी के करवे लिए जाते हैं और उनसे पूजा की जाती है। इसके अलावा करवा चौथ माता की कथा सुनना भी बहुत जरूरी है।
- पूजा के बाद चंद्रमा को छलनी से ही देखा जाता है और उसके बाद पति को भी उसी छलनी से देखते हैं।
करवा चौथ की पूजा विधि- Karwa Chauth Pooja Vidhi
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत(Karwa Chauth Vrat) का आरंभ करें-
“मम सुख सौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।”
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
- रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
“नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’
- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
- तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
- रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
- इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
बाकी व्रत रखने की सबकी आपनी-अपनी परम्परायें और विधि है, आप अपनी कुल परम्परा के अनुसार पूजा करें I
जब चंद्र को अर्घ्य दें तो यह मंत्र बोलें….
“करकं क्षीरसंपूर्णा तोयपूर्णमयापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरंजीवतु मे पतिः। या … ॐसोमसोमाय_नम:॥”
करवा चौथ व्रत कथा- Karwa Chauth Vrat Katha
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) मे काफी भिन्नताएँ है, अतः अपने मतानुसार कथा का चयन करें। प्रचलित कथाएँ निम्न प्रकार हैं:
- करवा चौथ व्रत कथा 1- सात भाई एक बहन की कथा
- करवा चौथ व्रत कथा 2- पतिव्रता करवा धोबिन की कथा
करवा चौथ व्रत कथा 1-सात भाई एक बहन वाली करवा चौथ व्रत कथा
Karwa Chauth Vrat Katha 1- 7 Brothers and a Sister
करवा चौथ व्रत की पहली कथा है।आपके यहाँ प्रचलित प्रथा के अनुसार आप एक या दोनों कथाएं पढ़ सकते हैं।
सात भाइयों की लाड़ली इकलौती बहन वीरावती की मार्मिक कहानी।कहते हैं कि भगवन श्री कृष्ण ने ये कथा द्रौपदी को सुनाई थी।
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को सुनाई करवा चौथ की कथा
एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहाँ हर समय अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहाँ हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया।
भगवान वहाँ उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले- एक बार पार्वती जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी- मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई:
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वीरावती केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले।
भाई नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो सभी भाईयों ने उससे कहा कि देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये। वीरावती ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए।वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ (Karwa Chauth) के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी।
वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
वीरावती को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती।
इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
इस प्रकार यह कथा कहकर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोले- ‘यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी।’
फिर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पाण्डवों की जीत हुई।
करवा चौथ व्रत कथा 2- पतिव्रता करवा धोबिन की कथा
Karwa Chauth Vrat Katha 2- Karwa Dhobin Katha
करवा चौथ व्रत(Karwa Chauth Vrat) की दूसरी कथा है। आपके यहाँ प्रचलित प्रथा के अनुसार आप एक या दोनों कथाएं पढ़ सकते हैं।
पुराणों के अनुसार करवा(Karwa) नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची।
उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी।
करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।
तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत(Karwa Chauth Vrat) का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
यह लेख मात्र आपकी जानकारी के लिए है, आप व्रत अपनी परम्परा के अनुसार ही करें जैसे आपके पूर्वज करते आ रहे हैं l
II जय माता की II
करवा चौथ व्रत से सम्बंधित लेख सारणी
विभिन्न वर्षों में करवा चौथ व्रत तिथि
- करवा चौथ तिथि -24 -10 – 2021, रविवार
- करवा चौथ तिथि -13 -10 – 2022, बृहस्पतिवार
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