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महायोद्धा भानजी जडेजा जिन्होंने अकबर को खदेड़ा था

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महायोद्धा भानजी जडेजा जिन्होंने अकबर को युद्धभूमि से खदेड़ा

पर इतिहासकारों ने भगौड़े को बना दिया अकबर महान

भानजी जाडेजा यह सच्ची कहानी है। एक वीर हिन्दू योद्धा की जिन्होंने अकबर को हरा कर भागने पर मजबूर किया और कब्जे में ले लिए उनके 52 हाथी 3530 घोड़े पालकिया आदि।न यह एक ऐसी वीर स्वाभिमानी और बलिदानी कौम थी जिनकी वीरता के दुश्मन भी कायल थे।

विक्रम सम्वंत 1633 (1576 ईस्वी) में मेवाड़, गोंड़वाना के साथ साथ गुजरात भी युद्ध में मुगलों से लोहा ले रहा था गुजरात में खुद अकबर और उसके सेनापति कमान संभाले थे।

इसी बीच अकबर ने जूनागढ़ रियासत पर 1576 ईस्वी में आक्रमण करना चाहा तब वहा के नवाब ने पड़ोसी राज्य नवानगर (जामनगर) के राजपूत राजा जाम सताजी जडेजा से सहायता मांगी। क्षत्रिय धर्म के अनुरूप महाराजा ने पडोसी राज्य जूनागढ़ की सहायता के लिए अपने 30000 योद्धाओ को भेजा जिसका नेतृत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर योद्धा भानजी जाडेजा।
सभी राजपूत योद्धा देवी दर्शन और तलवार शास्त्र पूजा कर जूनागढ़ की और सहायता के निकले पर माँ भवानी को उस दिन कुछ और ही मंजूर था।

अकबर और भानजी जड़ेजा के मध्य संग्राम जूनागढ़ के नवाब ने अकबर की स्वजातीय विशाल सेना के सामने लड़ने से अचानक साफ़ इंकार कर दिया व आत्मसमर्पण के लिए तैयार हो गया और नवानगर के सेनापति वीर भांनजी दाल जडेजा को वापस अपने राज्य लौट जाने को कहा।

भानजी और उनके वीर राजपूत योद्धा अत्यंत क्रोधित हुए और भान जी जडेजा ने सीधे-सीधे जूनागढ़ नवाब को राजपूती तेवर में कहा “क्षत्रिय युद्ध के लिए निकलता है या तो वो जीतकर लौटेगा या फिर रण भूमि में वीर गति को प्राप्त होकर।” वहां सभी वीर जानते थे की जूनागढ़ के बाद नवानगर पर आक्रमण होगा आखिर सभी वीरो ने फैसला किया की वे बिना युद्ध किए नहीं लौटेंगे।

अकबर की सेना लाखों में थी। उन्होंने मजेवाड़ी गांव के मैदान में अपना डेरा जमा रखा था, अन्तः भान जी जडेजा ने मुगलों के तरीके से ही कुटनीति का उपयोग करते हुए आधी रात को युद्ध लड़ने का फैसला किया और इसके बाद सभी योद्धा आपस में गले मिले फिर अपने इष्ट का स्मरण कर युद्ध स्थल की और निकल पड़े।

आधी रात और युद्ध शूरू हुआ। मुगलों का नेतृत्व मिर्ज़ा खान कर रहा था। उस रात हजारों मुगलों को काटा गया और मिर्जा खांन भी भाग खड़ा हुआ। सुबह तक युद्ध चला और मुग़ल सेना अपना सामान युद्ध के मैदान में ही छोड़ भाग खड़ी हुई। बादशाह अकबर जो की सेना से कुछ किमी की दुरी पर था वो भी उसी सुबह अपने विश्वसनीय लोगो के साथ काठियावाड़ छोड़ भाग खड़ा हुआ। उनके साथ युद्ध में मुग़ल सेनापति मिर्जा खान भी था। इस युद्ध में भान जी ने बहुत से मुग़ल मनसबदारो को काट डाला व हजारों मुग़ल मारे गए।

मुगलो को दौड़ा-दौड़ा कर भगाया :

नवानगर की सेना ने मुगलों का 20 कोस तक पीछा किया, जो हाथ आये वो काटे गए। अन्ततः मजेवाड़ी में अकबर के शिविर से 52 हाथी 3530 घोड़े और पालकियों को अपने कब्जे में ले लिया।

उस के बाद राजपूती फ़ौज सीधी जूनागढ़ गई। वहां नवाब को कायरकता का जवाब देने के लिए जूनागढ़ के किले के दरवाजे भी उखाड़ दिए। ये दरवाजे आज जामनगर में खम्बालिया दरवाजे के नाम से जाने जाते हैं जो आज भी वहां लगे हुए हैं।

बाद में जूनागढ़ के नवाब को शर्मिन्दिगी और पछतावा हुआ। उसने नवानगर महाराजा साताजी से क्षमा मांगी और दंड स्वरूप् जूनागढ़ रियासत के चुरू, भार सहित 24 गांव और जोधपुर परगना (काठियावाड़ वाला) नवानगर रियासत को दिए।

कुछ समय बाद बदला लेने की मंशा से अकबर फिर आया और इस बार उसे दुबारा “तामचान की लड़ाई” में फिर हार का मुह देखना पड़ा। इस युद्ध वर्णन “सौराष्ट्र नु इतिहास” में भी दर्ज है।

दोस्तों ! ऐसे और भी कई गुमनाम योद्धा हमारी पावन भूमि पर हुए हैं, जिन्होंने अपनी वीरता की मिसाले दी है। लेकिन उन वीरों की गाथा बस किस्से कहानियों में ही सीमित रह गए हैं। आज उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। इसे अधिक शेयर करें, ताकि भारतीय इतिहास की कलंक लेखनी मिट सके।

References:

http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.com/2015/06/52-3530-rajputana-soch-16331576-1576.html

https://www.abhigyandarpan.com/bhanji-dal-jadeja-full-history-hindi/

https://www.facebook.com/thegreatrajputs/posts/1009561505782899/

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