ये है वो छत्र जो अकबर ने माँ ज्वाला जी के मंदिर मैं चढ़ाया था, पर चढाते समय वो बोला की हे माँ मैं तेरे पास ये छत्र लेकर आया हु, आज तक दुनिया में किसी ने इतना बड़ा सोने का छत्र तेरे दर पर नहीं चढ़ाया होगा।
ये कहते ही छत्र उसके हाथ से जमीं पर गिर गया और ना जाने किस धातु में बदल गया, आज भी ये छत्र वही मंदिर में एक कोने में पड़ा हुआ है, बड़े से बडा वैज्ञानिक आज तक ये पता नहीं लगा पाया है की ये छत्र किस धातु का है।
जब अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र चढाया। तब उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।
बोलो जय ज्वाला माँ,
तेरी पावन ज्योति ने संसार में किया उजाला माँ,,,,
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