घटना 4 नवम्बर 1971 की है। महाराज की एक अमेरिकी भक्त महिला जिसे वे राधा कहा करते थे, वृन्दावन में आनन्दमयी माँ के आश्रम से अपनी अमेरिकी सहेली अन्जनी (भारतीय नाम) के साथ एक रिक्शा में आ रही थी।
रिक्शा का चालक बहुत तेजी से रिक्शा भगा रहा था। राधा जी ने एकाएक भयवश अपनी आँखें बन्द कर ली थी। तुरंत उन बन्द आँखों से आपको महाराज जी के मुख का दर्शन हुआ। ऐसा अनुभव इससे पूर्व आपको कभी नहीं हुआ।
आप कहती हैं कि इस दर्शन में महाराज मुझसे कह रहे थे, “दुर्घटना होने जा रही है, कूद पड़।” मैंने तुरंत उनकी आज्ञा का पालन किया। मैंने जानते बूझते यह कार्य किया – बड़ी शान्ति और बिना किसी अन्तर्द्वन्द्व के। इस कार्य में न मुझे कुछ भय था और न मेरे दिल की कोई धड़कन ही रुकी।
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि मैं अन्जनी से कुछ कह भी नहीं पायी। मेरे कूदने का कोई कारण प्रत्यक्ष न था, कोई भी दर्शक मुझे पागल कह सकता। उसी क्षण वहाँ चौराहे में एक दूसरा रिक्शा हमारे रिक्शा से टकरा गया।
अन्जनी को थोड़ी चोट आयी। वह मेरे उपचार से ही स्वस्थ हो गई। टक्कर होने के एक क्षण पूर्व मेरी आँख खुली थी और दुर्घटना के पूर्व ही मैं कूद गई थी। महाराज मेरे साथ थे। यह उनकी अनन्त और अपार कृपा का फल है। मैं उनसे अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहती थी, पर उन्होंने मुझे धन्यवाद देने का अवसर ही नहीं दिया। हर बार जब भी उनके दर्शन होते वे वार्ता का विषय बदल देते, मेरी बात पर ध्यान न देते या इस दुर्घटना को स्वीकार नहीं करते थे।
श्री बाबा नीम करौली जी महाराज सर्वव्यापकता
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अलौकिक यथार्थ से
मुद्रलेखन श्री प्रेम तिवारी द्वारा
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