ठण्ड (जाड़ा) के ऊपर भोजपुरी कविता
जाड़ा बहुत सतावत बा
सरसर हवा बाण की नाईं
थर थर काँपैं बाबू माई
तपनी तापैं लोग लुगाई
कोहिरा छंटत नहीं बा भाई
चहियै सबै जियावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा
गरमी असौं बराइस खीस
जाड़ा भय बा ओसे बीस
जौ ना रोकिहैं अब जगदीस
मरि जइहैं बुढ़ये दस बीस
जियरा बहुत जरावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा
माछी मच्छर भएन अलोप
पहिने बाटै सब कनटोप
बरफ किहे बा अइसन कोप
गाँव भयल सरवा यूरोप
केहु ना देखै आवत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा
अब प्रस्तुत है ठण्ड के ऊपर एक हिंदी कविता ::
आओ एक कप मित्र चाय साथ पी लें
कुहरे में डूबी है संध्या,
जी भर के जी लें |
आओ मित्र एक कप चाय,
साथ-साथ पी लें ||
मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ,
मौसम की आहट |
ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते,
भर दें गरमाहट |
मौका है चलो दें निकाल,
कटुता की कीलें |
आओ मित्र एक कप चाय,
साथ-साथ पी लें ||
फिर से इशारों में खेलें,
प्यार वाला खेल |
जो कुछ भी मन में है दबा,
सब कुछ दें उड़ेल |
मन से हो मन का संवाद,
होंठों को सी लें |
आओ मित्र एक कप चाय,
साथ-साथ पी लें ||
जितने भी हैं शिकवे-गिले,
बिसरायें सारे |
रात के आँचल में मिलकर,
टाँक दें सितारे |
गहरा न जाये अन्धकार,
जला दें कंदीलें |
आओ मित्र एक कप चाय,
साथ-साथ पी लें
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