वाराणसी : जैतपुरा स्थित नागकूप महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है। वह शेषावतार भी माने जाते हैं। नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती श्रद्धाभाव से मनाई जाती है। इस दौरान नागकुआ पर शास्त्रार्थ का आयोजन होता है जो विश्व प्रसिद्ध है। स्कंद पुराण के अनुसार यह वह स्थल है जहा से पाताल लोक जाने का रास्ता है। माना जाता है इस कूप के अंदर सात कूप हैं।
शास्त्रों के अनुसार नाग पंचमी के दिन स्वयं पतंजलि भगवान सर्प रूप में आते हैं और बगल में नागकूपेश्वर भगवान की परिक्रमा करते हैं। मान्यता यह भी है कि शास्त्रार्थ में बैठते हैं और शास्त्रार्थ में शामिल विद्यार्थियों पर कृपा भी बरसाते हैं। नागकूप कालसर्प शाति का भी एकमात्र स्थान है। यहा नागेकूपेश्वर शिवलिंग का पाणिनविरचित अष्टाध्यायी के साढ़े चार हजार सूत्रों से अभिषेक और बिल्वार्चन किया जाता है।
इस अनादि परंपरा को जीवंत रखने के उद्देश्य से काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रो. रामयत्न शुक्ल ने 1995 में उत्तर प्रदेश नागकूप शास्त्रार्थ समिति की स्थापना की जो आज पूरे देश के प्रतिष्ठित विद्वानों का सम्मान कर नागकूप व काशी की शास्त्रार्थ परंपरा को जीवंत रखता है।
इसमें देशभर के एक हजार संस्कृतविद् सदस्य हैं। समिति के सदरस्यो ने बताया कि शास्त्रों के आंतरिक ज्ञान तथा कोड पत्र का ज्ञान पांडुलिपियां जो हैं उनका ज्ञान शास्त्रार्थ से ही होता है इसलिए इस परंपरा को जीवंत रखना काशीवासियों का दायित्व है। यहां नाग पंचमी पर हर साल हजारों लोगों की जुटान होती है।
नागपंचमी पर घर-घर में नागदेव की पूजा होती है । इसके लिए लोग दिनभर तैयारियों में जुटे रहते हैं | इस अवसर पर नाग जाप के बाद दूध, लावा व मिश्री को भोग लगाकर लोग नागदेव की पूजन-अर्चन करते हैं । साथ ही अपने अपने घरों के द्वार के बाहर नागदेव की मूर्ति चित्र भी लगाते हैं।
Shared by : पाण्डेय नितेश बनारसी
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