योगी खुद एक हवन कुण्ड है |
योगी लोग या ब्राह्मण गृहस्थ लोगो के आमंत्रण पर गृह शुद्धीकरण के लिये हवन करते हैं | यह धूनी कर्म आदि काल से ही चला आ रहा है | पहले राजा ,महाराजा जनता की भलाई ,अपने राज्य की भलाई जेसे — विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाव के लिये करते थे, क्योंकि हवन सामग्री में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों का प्रयोग होता है |
जब यह हवन सामग्री हवन कुंड में डाली जाती है तो इसकी सुगंध से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ दूर होकर वातावरण शुद्ध हों जाता है | यह वैज्ञानिक सत्य भी है कि हवन से वातावरण शुद्ध होता है और बीमारी के कीटाणु नष्ट होते हैं | परन्तु क्या हम जानते हैं कि योगी भी एक अग्नि कुण्ड है ,यज्ञ है ,धूनी है जिसमें साधना की क्रियाओं का हवन बार- बार अभ्यास द्वारा देकर साधक योगी की अवस्था को पा सकता है !
जैसे –जब योगी प्राणायाम द्वारा प्राण वायु का रेचक करता है तो तब मूल अग्नि प्रकट होती है | शरीर की रक्त ,पित्त ,आब सभी बीमारियाँ भस्म होती हैं !
जब योगी भिक्षा भोजन त्याग कर अर्थात अन्न पानी त्याग कर योग में बह रसपान करता है तब ,भुयँगम अग्नि ,प्रगटता है |
जब साधना में प्राणायाम करने से कुण्डलिनी जाग्रत होती है , तब सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी में प्राण वायु ऊर्ध्वरेता होता है !ब्रह्मरँध्र में शिव और शक्ति का मिलन होता है | तब ब्रह्म अग्नि प्रगट होता है | इसी अवस्था में इन पिंगला और सुषुम्ना के प्रवाह तीसरे भवन अर्थात सहस्रार दसवें द्वार में आते हैं | तब अन्न ,पानी भस्म करने वाला काल अग्नि प्रगटता है |
जब जोगियों की दोनो आँखो में त्रिपुटी में प्रकाश निर्माण होता है | जिसे योगी तीसरी आँख खुलने का प्रमाण देते हैं | जब योगी के कंठ, होंठ सूख जाते हैं तथा बाल व त्वचा में परिवर्तन आता है | इसे कायाकल्प भी कहते है इस अवस्था में पाँचवी अग्नि रुद्र अग्नि का निर्माण होता है |
इस प्रकार साधक इन पंच अग्नि द्वारा अपनी अंतिम अवस्था को पा लेता है | क्योंकि पहले ही बताया हुआ है कि योगी खुद एक अग्नि कुण्ड है ,हवन है |
आदेश आदेश
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