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गायत्री मन्त्र के सम्बन्ध में युग ऋषि श्री राम शर्मा आचार्य के उदगार

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गायत्री मन्त्र के बारे में युग ऋषि श्री राम शर्मा आचार्य के उदगार -9 February 1978

गायत्री मंत्र का संबल आप पकड़ लें तो पार हो सकते हैं!

‘‘भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री है। यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। इन माता-पिता की हम सभी को श्रवण कुमार की तरह कंधे पर रखकर सेवा करनी चाहिए।”


गायत्री मंत्र :

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

देवियो! भाइयो!!

मेरे पिताजी गायत्री मंत्र की दीक्षा दिलाने के लिए मुझे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय जी के पास ले गए। महामना मालवीय जी और हमारे पिता सहपाठी थे। उनका विचार था कि लड़के का यज्ञोपवीत संस्कार और गायत्री मंत्र की दीक्षा महामना मालवीय जी से कराई जाए। पिताजी मुझे वहीं ले गए, तब मैं दस-ग्यारह वर्ष का रहा होऊँगा। मालवीय जी के मुँह से जो वाणी सुनी, वह अभी तक मेरे कानों में गूँजती है। हृदय के पटल और मस्तिष्क पर वह जैसे लोहे के अक्षरों से लिख दी गई, जो कभी मिट नहीं सकेगी।


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उनके शब्द मुझे ज्यों के त्यों याद हैं, जिसमें उन्होंने कहा था—‘‘भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री है। यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। इन माता-पिता की हम सभी को श्रवण कुमार की तरह कंधे पर रखकर सेवा करनी चाहिए।’’

गायत्री मंत्र बीज है और इसी से वृक्ष के रूप में सारा का सारा भारतीय धर्म विकसित हुआ है। बीज छोटा-सा होता है बरगद का और उसके ऊपर वृक्ष इतना बड़ा विशाल होता हुआ चला जाता है। गायत्री मंत्र से चारों वेद बने। वेदों के व्याख्यान स्वरूप ब्रह्माजी ने, ऋषियों ने और ग्रंथ बनाए, उपनिषद् बनाए, स्मृतियाँ बनाईं, ब्राह्मण, आरण्यक बनाए। इस तरह हिन्दू धर्म का विशालकाय वाङ्मय बनता चला गया। हिन्दू धर्म की जो कुछ भी विशेषता दिखाई पड़ती हैं—साधनापरक, ज्ञानपरक अथवा विज्ञानपरक, वह सब गायत्री के बीज से ही विकसित हुई हैं। सारे का सारा विस्तार गायत्री बीज से ही हुआ है। बीज वही है, टहनियाँ बहुत सारी हैं। हिन्दू धर्म में चौबीस अवतार हैं। ये चौबीस अवतार क्या हैं? एक-एक अक्षर गायत्री का एक-एक अवतार के रूप में, उनके जीवन की विशेषताओं के रूप में, उनकी शिक्षाओं के रूप में है। हर अवतार एक अक्षर है गायत्री का, जिसमें क्रियाएँ और लीलाएँ करके दिखाई गई हैं। उनके जीवन का जो सार है वही एक-एक अक्षर गायत्री का है।

हिन्दू धर्म के दो अवतार मुख्य हैं—एक का नाम राम और दूसरे का नाम कृष्ण है। राम चरित का वर्णन करने के लिए बाल्मीकि रामायण लिखी गई, जिसमें 2400 श्लोक हैं और प्रति 100 श्लोक के पीछे सम्पुट लगा हुआ है गायत्री मंत्र के एक अक्षर का। श्रीकृष्ण चरित भागवत् में लिखा है। श्रीमद्भागवत् में भी चौबीस हजार श्लोक हैं और एक हजार श्लोक के पीछे गायत्री मंत्र के एक अक्षर की व्याख्या एक हजार श्लोकों में।

रामचरित हो अथवा कृष्णचरित—दोनों का गायत्री का वर्णन इस रूप में मालवीय जी ने किया कि मेरे मन में बैठ गया कि यदि ऐसी विशाल गायत्री है, तो मैं खोज करूँगा। उसका और अनुसंधान करके लोगों को यह बताकर रहूँगा कि ऋषियों की बातें, शास्त्रों की बातें सही हैं क्या? स्तुता मया वरदा…………..कामधेनु, पारस, कल्पवृक्ष आदि जो लाभ गायत्री उपासना के बताए गए हैं, उसके लिए मुझे जिंदगी का जुआ खेलना ही पड़ेगा और खेलना ही चाहिए।

मित्रो! चार-पाँच वर्ष में ही मेरी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी। मेरे गुरु मेरे पास आए और उन्होंने जो बातें बताईं उससे जिंदगी का मूल्य मेरी समझ में आ गया। जिंदगी का मूल्य और महत्त्व समझकर मैं चौंक पड़ा कि चौरासी लाख योनियों में घूमने के बाद मिलने वाली यह जिंदगी मखौल है क्या? इसके पीछे महान उद्देश्य छिपे हुए हैं। भगवान् ने यह मौका दिया है। एक, इनसानी जिंदगी हमारे हाथ में देकर के। पर क्या हम और इसका इस्तेमाल कर पाते हैं?

मालवीय जी ने मुझे सबसे कीमती एक ही बात बताई थी कि गायत्री मंत्र का संबल आप पकड़ लें तो पार हो सकते हैं। वे मेरे दीक्षा गुरु हैं और आध्यात्मिक गुरु वे हैं, जो हिमालय पर रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिंदगी की कीमत मैंने पूरी तरीके से वसूल कर ली है। एक-एक साँस को इस तरीके से खर्च किया है कि कोई यह इल्जाम मुझ पर नहीं लगा सकता कि आपने जिंदगी के साथ मखौल किया है, दिल्लगीबाजी की है।

जीवन-देवत पारस है, अमृत है और कल्पवृक्ष है। इसका ठीक से इस्तेमाल करता हुआ मैं चला गया और वहाँ से चलते चलते अभी पचपन साल की मंजिल पूरी करने में समर्थ हो गया। क्या-क्या किया? कैसे पाया? मैं चाहता हूँ कि चलते-चलते आपको अपने भेद और रहस्य बताता जाऊँ कि गायत्री मंत्र कितना सामर्थ्यवान है? यह इतना कीमती है कि मात्र माला घुमाने की कीमत पर इसके लाभ नहीं प्राप्त किए जा सकते। इसके लिए कुछ ज्यादा ही कीमत चुकानी पड़ेगी।

परम पूजनीय पं० श्रीराम शर्मा आचार्य-९ फरवरी १९७८

Reference: 9 फरवरी 1978 को दिया गया गुरुदेव का उद्बोधन -पार्ट 1

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Vedmata Gayatri

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