Join Adsterra Banner By Dibhu

श्राद्ध पक्ष /पितृ पक्ष का महत्त्व पारसी प्रेत की घटना से समझें

0
(0)

श्राद्ध पक्ष /पितृ पक्ष आज से आरम्भ हो गया है। श्राद्ध अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म है। हमारे सनातन धर्म में जीवन के बाद जीवात्मा के विभिन्न अवस्थाओं पर गहन शोध किया गया है। फलस्वरूप विभिन्न स्थितियों में दुखी पाती हुयी जीवात्माओं के उद्धार हेतु कई सारी क्रियाएं बताई गयी हैं। आपके पुरोहित आपके लिए उचित कर्म का निदान समयानुसार बताते हैं।

विपरीत इसके भूमध्य सागर के पास या सिंधु नदी के पार के क्षेत्रों में उत्पन्न हुए मजहबों / religions (इस्लाम ,क्रिश्चियनिटी,पारसी) में मृतक आत्मा की सद्गति और उद्धार के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया जाता है। उनकी मान्यताओं के अनुसार अब वो जीवात्माएं क़यामत के दिन / day of salvation के दिन ही पुनः जिन्दा की जाएँगी।

पारसी समाज में तो Sky Burial (आकाशीय दफ़नाने ) की प्रक्रिया को अपनाया जाता है जिसमें मृतक के शव को एक ऊँची जगह पर (टावर ऑफ़ साइलेंस ) पर पशु पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।

इन प्रकृति नियम विरुद्ध मान्यताओं के फलस्वरूप इन आत्माओं को महान कष्ट भोगना पड़ता है। उनकी आत्माएं अपनी कब्रों /tombs के आस-पास या अपने मृत्युस्थल के समीप ही मंडराती रहती हैं और निरंतर मृत्यु के समय की वेदना को अनुभव करती रहती हैं, जैसे की एक बार का मरण पर्याप्त नहीं था वो बार बार उसी कष्ट को हर रोज भोगती रहती हैं। इनकी स्थिति बड़ी भयावह होती है। ये आत्माएं खुद तो कष्ट में होती ही हैं और अपनी गलत मानसिकता के फलस्वरूप दूसरों को भी कष्ट देने में आगे रहती हैं।

यद्यपि इनमें से भी किस को अक्ल आ जाय तो वह पुनः पुनर्जन्म के अस्तित्व को स्वीकार कर नया शरीर प्राप्त कर लेती हैं।

श्राद्ध के द्वारा मृतक की आत्मा को तृप्ति व शांति प्रदान किया जाता है। आज के आधुनिक लोग माने या न माने श्राद्ध के महत्त्व एक पारसी व्यक्ति की प्रेतात्मा की घटना से समझा जा सकता है। यह घटना महान भक्त और सुविख्यात कल्याण पत्रिका(est 1923) के सम्पादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ मुंबई चौपाटी पर घटित हुयी थी।

श्री हनुमान प्रसाद ने अपनी साधना और भक्ति के फलस्वरूप बाद में अध्यात्म जगत की असीम उत्कर्ष को प्राप्त किया था। यहाँ तक कि कहा जाता है कि उनके अंत समय से पहले उनके शरीर में साक्षात् भगवान श्री कृष्ण स्वयं निवास करने लगे थे। श्री हनुमान प्रसाद को लोग ‘भाई जी’ के नाम से भी सम्बोधित करते थे। उन्होंने बाद में गीता प्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। सुप्रसिद्ध कल्याण पत्रिका की शुरुआत उन्होंने ही की थी ।

इस घटना के बारे में गीता प्रेस से जुड़े लोग जानते हैं या ‘भाई जी’ के करीबी लोग। इन्हीं में से एक हैं हरी कृष्ण दुजारी, जिन्होंने हमें ‘भाई जी’ के जीवन से जुड़ी एक दिलचस्प घटना के बारे में बताया। ‘

यह पारसी प्रेत वाली घटना श्री हनुमान प्रसाद के जीवन में तब घटी थी जब वह बिजनेस के सिलसिले में मुंबई में रहा करते थे। धर्म-कर्म में रुचि होने के चलते शाम को काम से फ्री होने के बाद मरीन ड्राइव स्थित चौपाटी पर जप किया करते थे। जिस जगह बैठकर वह जप करते थे, वहां कुछ दिनों से एक व्यक्ति आकर बगल में खड़ा हो जाता था।

एक दिन जब ‘भाई जी’ ने उस व्यक्ति को देखा तो मुस्कुराकर अपना परिचय दिया और उससे परिचय पूछा।

उस व्यक्ति ने ‘भाई जी’ से कहा, ‘आप डरो नहीं तो मैं आपको अपने बारे में जानकारी दूं।’

‘भाई जी’ ने कहा कि इसमें डरने वाली क्या बात है।

उस व्यक्ति ने हंसकर कहा कि वह आत्मा हैं।

हरिकृष्ण दुजारी ने बताया कि ‘भाई जी’ उस दौरान कुछ पलों के लिए सहम गए थे। फिर उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा कि वह उनकी क्या सेवा कर सकते हैं?

इस पर उसने कहा, ‘मैं काफी दिनों से भटक रहा हूं। किसी ने बात नहीं की, लेकिन आपके बात करने से मेरे अंदर बोलने की शक्ति आ गई है। इसलिए आप ही वह शख्स हैं, जो मुझे प्रेत योनि से छुटकारा दिला सकते हैं।’

इस पर ‘भाई जी’ ने उस आत्मा से विस्तार से अपने बारे में बताने को कहा।उस आत्मा ने बताया कि वह एक पारसी परिवार में जन्मा था। लगभग एक महीने पहले उसकी मौत हो गई थी। पारसी धर्म के अनुसार, उसका अंतिम संस्कार भी किया गया, लेकिन अब तक वह प्रेत योनि में भटक रहा है। उसने सुना है कि हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार ऐसे होते हैं, जिनसे व्यक्ति मरने के बाद प्रेत योनि में नहीं भटकता। उस आत्मा ने ‘भाई जी’ से एक बार फिर से अंतिम संस्कार कराने के बारे में कहा।

‘भाई जी’ ने उस आत्मा द्वारा दिए गए विवरण के आधार पर उसके परिवार से संपर्क किया। इसके बाद उस व्यक्ति के बारे में जानकारी हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपने सहयोगी हरिराम शर्मा को भेजकर उसका पिंडदान करवाया। पिंडदान के बाद एक दिन फिर उसी आत्मा ने चौपाटी पर ‘भाई जी’ से संपर्क किया और पिंडदान करवाने के लिए उनका आभार प्रकट किया। उसके बाद वह आत्मा ‘भाई जी’ को फिर कभी नजर नहीं आई। इस घटना के बाद ‘भाई जी’ की रुचि अध्यात्म में बढ़ गई।

अतः किसी के मजाक उड़ाने पर या हतोत्साहित करने पर शास्त्र विहित श्राद्ध कर्म न छोड़ें क्योंकि जो आज आपको पथभ्रमित कर रहे हैं उन्हें स्वयं नहीं पता वो कितने पथभ्रमित हैं।

Bombay Chaupati पर जब भाई जी से एक प्रेत ने उद्धार की याचना की | Shree Hanuman Prasad Ji Poddar Ji-4

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


संकलित लेख

About संकलित लेख

View all posts by संकलित लेख →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः