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श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर, वाराणसी-संक्षिप्त परिचय

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Table of Contents

काशी का श्री संकट मोचन हनुमान जी मंदिर

वाराणसी(काशी) के प्रमुख मंदिरों में से एक संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर के प्रति लोगों की जबरदस्त आस्था है। इसी स्थान पर तुलसीदास जी को श्री हनुमान जी के दर्शन प्राप्त हुए थे और यही बैठकर उन्होंने श्री रामचरितमानस का अधिकांश भाग लिखा था। मंदिर की महत्ता इसी तथ्य से ही समुचित रूप से प्रमाणित है।

श्री संकट मोचन मंदिर का महत्त्व-Importance of Sankat Mochan Mandir

वाराणसी में दुर्गाकुण्ड से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University-BHU) जाने वाले रास्ते में प्रभु श्रीराम के परमभक्त और पवनसुत संकटमोचन हनुमान जी का काफी प्रसिद्ध संकट मोचन मन्दिर (Sankat Mochan Mandir) स्थित है।

लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान् संकट मोचन (Sankat Mochan) सभी के दुखों को हरते हैं और किसीको भी खालीहाथ जाने नहीं देते सभी की झोली भरते हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों के कष्‍ट हनुमान के दर्शन मात्र से ही दूर हो जाते हैं।जो उनके सच्चे भक्त हैं वो उनके ह्रदय में बसते हैं। तभी तो काशी आने वाला या रहने वाला हर छोटा बड़ा इनके चरणों में आकर मत्था ज़रूर टेकता है। हर मंगलवार- शनिवार को यहां जबरदस्त भीड़ उमड़ती है।

आस्था का केंद्र संकट मोचन मंदिर

काशी प्रवास के दौरान रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आराध्य हनुमान जी के कई मन्दिरों की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित हनुमान मन्दिरों में से एक संकट मोचन मन्दिर (Sankat Mochan Mandir), भक्ति की शक्ति का अदभुत प्रमाण देता है।

मान्यता है कि जब वे काशी में रह कर रामचरितमानस लिख रहे थे, तब उनके प्रेरणा स्त्रोत संकट मोचन (Sankat Mochan) हनुमान थे।

इस मन्दिर में स्थापित मूर्ति को देखकर ऐसा आभास होता है, जेसै साक्षात हनुमान जी विराजमान हैं। इस मन्दिर की एक अद्भुत विशेषता यह भी है कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई है कि वह सामने स्थित मंदिर में भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं, जिनके वे परम भक्त हैं।

श्रीरामचरितमानस का अधिकाँश भाग यहीं लिखा गया

कहते हैं की तुलसीदास जी को इसी स्थान पर हनुमान जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। हनुमान जी से ही प्रेरणा प्राप्त करके तुलसीदास जी ने “रामचरितमानस” की।श्रीरामचरितमानस का अधिकाँश भाग यहीं बैठकर तुलसीदास जी ने लिखा था आज भी जिसकी मूल पांडुलिपि तुलसीघाट के किनारे स्थित तुलसीदास जी के प्राचीन निवास स्थान में सुरक्षित रूप से रखी हुई है.

श्री संकट मोचन मंदिर का विवरण- Details of Sankat Mochan Mandir

वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से लंका-बी. एच. यू. (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) जाने वाले मार्ग पर दुर्गाकुंड मंदिर से करीब तीन सौ मीटर आगे बढ़ने पर दाहिनी ओर कुछ कदम की दूरी पर ही मंदिर का विशाल मुख्य द्वार है। आठ एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैला संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर परिसर हरे-भरे वृक्षों से भरा है।

मुख्य मंदिर में हनुमान जी की सिन्दूरी रंग की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है। माना जाता है कि यह हनुमान जी की जागृत मूर्ति है। गर्भगृह की दीवारों पर लिपटे सिंदूर को लोग अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप लगाते हैं। गर्भगृह में ही दीवार पर नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है। 

हनुमान मंदिर के ठीक सामने एक कुंआ भी है जिसके पीछे राम जानकी का मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने राम जानकी और लक्ष्मण भी स्थापित हैं जिसका अर्थ यह है कि भगवान श्रीराम सदैव हनुमान के हृदय में निवास करते हैं।श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के उपरांत राम जानकी का भी आशीर्वाद लेते हैं। वहीं एक तरफ शिव मंदिर है।

श्री राम जानकी और लक्ष्मण

इस भव्य और बड़े हनुमान मंदिर में अतिथिगृह भी है जिसमें मंदिर में होने वाले तमाम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने आये अतिथि विश्राम करते हैं। हनुमान जी के मंदिर के पीछे हवन कुंड है जहां श्रद्धालु पूजा पाठ करते हैं। 

माना जाता है कि यह हनुमान जी की जागृत मूर्ति है। गर्भगृह की दीवारों पर लिपटे सिन्दूर को लोग अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप लगाते हैं। गर्भगृह में ही दीवार पर नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है।

इस भव्य और बड़े हनुमान मन्दिर में अतिथिगृह भी है, जिसमें मन्दिर में होने वाले तमाम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने आये अतिथि विश्राम करते हैं। हनुमान जी के मन्दिर के पीछे हवन कुण्ड है, जहाँ श्रद्धालु पूजा पाठ करते हैं।

संकट मोचन मंदिर में उपस्थित वानर सेना से सावधान

शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित इस मन्दिर में बंदरों की बहुतायत संख्या है। पूरे संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर में बंदर इधर-उधर उछल कूद करते रहते हैं। कभी-कभी तो ये बंदर दर्शनार्थियों के पास आकर उनसे प्रसाद भी ले लेते हैं। हालांकि झुण्ड में रहने वाले ये बंदर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।

आप भी यदि यहाँ दर्शन के लिए आते हैं तो प्रसाद ले के चलते समय विशेष सावधानी बरतें। या तो प्रसाद तो अपने साथ लाये बैग में ही छुपा लें या फिर बंदरों के लिए अलग से प्रसाद की व्यवस्था भी कर लें। कोई अन्य सामान न लेकर यह केवल प्रसाद के पीछे ही लपकते हैं। पूरी सावधानी बरते पर भी यदि बन्दर प्रसाद छीन लें तो समझिये की प्रभु के भक्तों ने ही प्रसाद ग्रहण कर लिया 🙂

श्री संकट मोचन मंदिर का नामकरण-Sankat Mochan Namkaran

श्री तुलसीदास रचित श्री हनुमान अष्टक के आरम्भ में ही एक छंद है :

बाल समय रवि भक्षी लियो तब तीनो लोक भयो अंधियारो,
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहू सो जात न टारो ।।
देवन आनि करी बिनती तब छाडी दियो रबि कष्ट निवारो,
को नहीं जानत है जग में कपि ‘संकट मोचन’ नाम तिहारो।।

संकट मोचन (Sankat Mochan) नाम दो शब्दों से बना है; संकट =कठिनाई /समस्या , मोचन =छुड़ाना /उबरना – जैसा कि नाम से ही विदित है इस मंदिर का नामकरण संकट से उबारने वाले श्री हनुमान जी की ही महिमा को प्रकाशित करने के लिए हुआ है। प्रतिमा का नामकरण श्री तुलसीदास जी द्वारा ही किया हुआ है।

श्री हनुमान जी अपने सात्विक भक्तों की समस्याओं का समाधान अवश्य करते हैं। इसी आस में इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।

श्री संकट मोचन मंदिर का इतिहास-History of Sankat Mochan Temple

देश के ऐतिहासिक मंदिरों में शामिल काशी के इस संकट मोचन मंदिर(Sankat Mochan Temple) का इतिहास करीब 400 साल से भी अधिक पुराना है।मान्यताओं के अनुसार मन्दिर प्रांगण में हनुमान जी की जो मिट्टी की मूर्ति है उसकी स्थापना श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वयं सन् 1608-1611 में अपने हाथों से बनाकर की थी।

अधिकतर मंदिरों में आपने शिला /पत्थर के बने हनुमान जी के विग्रह देखे होंगे परन्तु शास्त्रों के अनुसार उपासना के लिए मिट्टी और गौ माता के पवित्र गोबर से मिश्रित प्रतिमा का भी निर्माण किया जा सकता है।

लगभग 400 साल पहले बनाये गए गोस्वामी श्री तुलसीदास द्वारा स्वयं निर्मित इस हनुमत विग्रह में अद्भुत शक्ति परिलक्षित होती है। विग्रह के सामने उपस्थित होने पर आपको स्वयं उसकी जीवंतता का अनुभव होगा। विग्रह के ऊपर निरंतर उपासना के लिए सिन्दूर का लेप किये जाने से आपको यह प्रस्तर प्रतिमा की भांति भी प्रतीत हो सकती है।

जहाँ आज संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर है वहीँ श्री हनुमान जी ने तुलसीदास जी को साक्षात दर्शन दिया था। इसलिए तुलसीदास जी ने कालांतर में संकटमोचन मन्दिर की स्थापना की।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि दर्शन देने के उपरांत हनुमान जी स्वयं ही मिट्टी की मूर्ति में परिवर्तित हो गए।

प्रारम्भ में मंदिर का स्वरुप लघु था लेकिन सन 1900 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं पंडित श्री राम शर्मा आचार्य के दीक्षा गुरु पंडित महामना मदन मोहन मालवीय जी ने इस मन्दिर का व्यवस्थित निर्माण करवाया। तब से लेकर अब तक निरंतर श्रद्धालु देश विदेश दूर दराज़ से यहाँ अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते रहते हैं।

श्री संकट मोचन मंदिर सञ्चालन व्यवस्था

मन्दिर के संचालन और उसकी देख रेख के लिए मंदिर के महंत श्री वीरभद्र मिश्र द्वारा ‘संकट मोचन (Sankat Mochan) फाउंडेशनकी स्ठापना हुई। प्रो.वीरभद्र मिश्र जी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बी एच यू ( Institute of Technology, BHU) में सिविल इंजीनियरिंग के आचार्य(Professor) थे। वे एक कुशल पखावज वादक भी थे साथ ही गंगा स्वच्छता के कार्यक्रम से भी जुड़े थे। जिसके लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ। वर्तमान में इनके ही सुपुत्र प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र जी महंत की पदवी को सम्हाल रहे हैं और श्री संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर का संचालन कुशलतापूर्वक कर रहे हैं।

।।श्री संकट मोचन हनुमानजी।

संकट मोचन मंदिर से जुडी श्री हनुमान जी के दर्शन की रोचक कथा

तुलसीदास जी को हनुमान जी के दर्शन कैसे मिले यह भी एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि प्रतिदिन प्रातःकाल जब शौच के लिये गंगापार(कुछ का कहना है कि यह वाराणसी के वर्तमान तुलसीघाट के पास ही स्थित था ) जाते थे तो वापसी के समय लोटे में बचे हुये पानी को एक सूखे बबूल के पेड़ की जड़ में डाल दिया करते थे। उस पेड़ पर एक प्रेत का निवास था। रोज पानी मिलने की वजह से उसे संतुष्टि मिली वह तुलसीदास जी पर प्रसन्न हो गया और एक दिन वह उनके सामने प्रकट होकर उसने प्रत्युपकार की दृष्टि से कुछ मांगने के लिया कहा।

(यहाँ यह भी संभव है कि श्री तुलसीदास जी ने किसी तंत्रोक पद्धति से प्रेत को प्रकट किया हो, क्योंकि यह सर्वमान्य तथ्य है कि बबूल, इमली आदि वृक्षों पर भूतों का निवास होता है। और तंत्र में एक विधि भी इस प्रकार की होती है भूत सिद्ध करने के लिए। यद्यपि श्री तुलसीदास जी का उद्देश्य केवल प्रभु राम के दर्शन के लिए मार्ग खोजना ही रहा होगा। यद्यपि यह बात विश्वास पूर्वक नहीं कह सकते की श्री तुलसीदास जी ने यह तंत्रोक्त विधि ही की होगी, अतः अगर पाठक चाहें तो इसको अनदेखा करते हुए आगे पढ़ें।)

तुलसीदास जी ने भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस पर प्रेत ने कहा कि मैं अगर भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन करवाने में समर्थ होता तो मेरी कब की मुक्ति हो गयी होती। इस विषय में मैं असमर्थ हूँ। प्रभु श्री राम के दर्शन केवल हनुमान जी के कृपा से संभव है।

इस पर तुलसीदास जी ने प्रेत से हनुमान जी के दर्शन करवाने का अनुरोध किया। तब प्रेत ने कहा कि मैं तो उनके समीप भी नहीं जा सकता परन्तु आपको यह बता सकता हूँ कि वह कहाँ मिलेंगे।

आशा की किरण मिलती देख श्री तुलसीदास जी ने तुरंत हनुमान जी का पता पूछ लिया।

प्रेत ने कहा की काशी के कर्णघंटा में राम का मंदिर है। वहां नित्य श्री राम कथा होती है। मंदिर में नित्य सायंकाल में भगवान श्रीरामचंद्र की कथा होती है और वहाँ कथा सुनने के लिये हनुमान जी कोढ़ी के वेश में आते हैं। कथा सुनने के लिये सबसे पहले वे ही आते हैं और सबके चले जाने के बाद अंत में ही वे जाते हैं। वे ही आपको भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन करा सकते हैं अतः वहाँ जाकर उन्हीं से प्रार्थना कीजिये।

यह सुनकर तुलसीदास उस मंदिर में गए। वहां कथा के नियत समय से पहले पहुँच कर आगंतुकों का ध्यान पूर्वक निरीक्षण करने लगे। कथा में सबसे पहले पहुंचने वाला एक कुष्ठ रोगी, सबसे पीछे बैठा हुआ कथा सुन रहा था। जब कथा समाप्त हुयी तो सब जाने लगे। तुलसीदास उस कुष्ठ रोगी से मिलने के लिए उसके पास गए, तो वह उठकर वहां से चल दिया। तुलसीदास जी उसका पीछा करने लगे।

तुलसीदास भी उनके पीछे-पीछे चलते रहे। (कर्णघंटा से संकट मोचन (Sankat Mochan) की दूरी लगभग ५ कि मी है). चलते-चलते वह कुष्ठ रोगी अस्सी क्षेत्र से आगे पहुँच गया।आज जिस क्षेत्र को अस्सी कहा जाता है, उसे पहले आनद कानन वन कहते थे। यहां पहुंचने पर तुसलीदास जी ने सोचा कि अब तो जंगल आ गया है, पता नहीं यह व्यक्ति कहां तक जाएगा। ऐसे में उन्होंने उसके पैर पकड़ लिए और कहा कि आप ही हनुमान जी हैं, कृपया मुझे दर्शन दीजिए। उनके बहुत अनुनय विनय आग्रह करने पर श्री हनुमान जी ने उन्हें सुपात्र जानकर दर्शन दिया।

जिस स्थान पर तुलसीदास जी को हनुमान जी का दर्शन हुआ था उसी जगह उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर उन्हें संकटमोचन का नाम दिया। यही स्थान आज संकट मोचन मंदिर (Sankat Mochan Temple) के नाम से विख्यात है।

श्री संकट मोचन मंदिर में पूजा आरती का समय

श्री संकट मोचन मंदिर में हनुमान जी की पूजा नियत समय पर प्रतिदिन आयोजित होती है। पट खुलने के साथ ही आरती भोर में ४ बजे घण्ट-घड़ियाल, नगाड़ों और हनुमान चालीसा के साथ होती है जबकि संध्या आरती रात नौ बजे सम्पन्न होती है। आरती की खास बात यह है कि सबसे पहले मन्दिर में स्थापित नरसिंह भगवान की आरती होती है। मौसम के अनुसार आरती के समय में परिवर्तन भी हो जाता है। दिन में १२ से ३ बजे तक मन्दिर का कपाट बंद रहता है।

संकट मोचन (Sankat Mochan) दर्शनर्थियों के लिए प्रातः ५ बजे खुलता है और रात्रि को १० बजे बंद होता है।

हनुमान जी की आरती के दौरान पूरा मन्दिर परिसर हनुमान चालीसा से गूंज उठता है। मंदिर प्रांगण में उपस्थित हरेक श्रद्धालु हनुमान चालीसा के पाठ में सहभागी बनता है । यह दृश्य देखने योग्य होता है। हनुमान जी के प्रति श्रद्धा से ओत-प्रोत भक्त जमकर जयकारे लगाते हैं।

वहीं मंगलवार और शनिवार को तो मन्दिर दर्शनार्थियों से पट जाता है। इस दिन शहर के अलावा दूर-दूर से दर्शनार्थी संकटमोचन दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। माहौल पूरी तरह से हनुमानमय हो जाता है। कोई हाथ में हनुमान चालीसा की किताब लेकर उसका वाचन करता है तो कुछ लोग मंडली में ढोल-मजीरे के साथ सस्वर सुन्दरकाण्ड का पाठ करते नजर आते हैं।

बहुत से भक्त साथ में सिन्दूर और तिल का तेल भी हनुमान जी को चढ़ाने के लिए लाते हैं। इस तरह मन्दिर में हमेशा भक्तों की आवाजाही का सिलसिला लगा रहता है।

संकट मोचन मंदिर का प्रसाद

प्रायः प्रसिद्ध मंदिरों के विशिष्ट प्रसाद होते हैं । संकट मोचन मंदिर में भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी से बने बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती है।

संकट मोचन के सांस्कृतिक कार्यक्रम-Cultural Programs of Sankat Mochan

वैसे यहाँ होने वाले कार्यक्रमों की बात की जाये तो सालभर कुछ न कुछ बड़े आयोजन होते रहते हैं लेकिन हनुमान जयंती, राम जयंती और सावन महीने में मन्दिर में होने वाले कार्यक्रमों की बात ही निराली है। श्री संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर में हर सालचैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि (यह प्रायः अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल महीने) में हनुमान जयंती बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। जयंती के अवसर पर हनुमान जी की भव्य झांकी सजायी जाती है।

is अवसर पर पांच-छह दिवसीय या साप्ताहिक सांगीतिक कार्यक्रम भव्य रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश के बहुत से ख्यातिलब्ध  कलाकार अपनी कला के द्वारा बाबा संकटमोचन के दरबार में अर्जी लगाते हैं। पाँचों दिन सारी संगीत और नृत्य का कार्यक्रम चलता रहता है। यह कार्यक्रम विशुद्ध रूप से शास्त्रीय संगीत का होता है। कलाकार बिना किसी शुल्क के अपना कार्यक्रम श्रद्धाभाव से प्रस्तुत करते हैं, जिसका आनंद लेने के लिए हजारों दर्शक और श्रोतागण आते हैं। इस उत्सव के समय मंदिर का वातावरण संगीतमय हो जाता है।

इन पाँच दिनों में शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरियों से पूरा मन्दिर परिसर झंकृत हो उठता है। आलम यह रहता है कि इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम में संगीत सरिता की शुरूआत प्रतिदिन गोधुली बेला 7 बजे से होती है। इसके बाद तो जैसे-जैसे रात गंभीर होती जाती है, शास्त्रीय संगीत परत दर परत लोगों के बीच घुलने लगती है और कार्यक्रम प्रत्युष बेला तक चलता रहता है। शास्त्रीय संगीत की तीनों विधा यानी गायन, वादन और नृत्य की बेहतरीन प्रस्तुति होती है। कई दशकों से चल रहे इस कार्यक्रम में देश और विदेश के ख्यातिलब्ध संगीत साधकों ने अपनी कला को हनुमान जी को समर्पित किया है। कई कलाकार तो वर्षों से लगातार इस संगीत के महाउत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं।

गोस्वामी तुलसी दास द्वारा स्थापित संकट मोचन मंदिर में संगीत समारोह की शुरुआत स्वयं स्वामी गोस्वामी तुलसी दास ने 400+ साल पहले की थी लेकिन तब मंदिर परिसर में रामलीला और रामायण का पाठ ही होता था। बढ़ते वक्त के साथ आयोजन भी बदलता गया। वर्तमान संगीत समारोह का प्रारूप का सबसे पहले 88 वर्ष पूर्व उद्भव हुआ था। सन 2009 में प्रसिद्ध संगीतज्ञ पंडित जसराज और कत्थक नृत्य के पुरोधा पंडित बिरजू महाराज ने भी इस संगीत समारोह में भाग लिया था।

पाँच दिवसीय संकट मोचन (Sankat Mochan) संगीत समारोह विश्व प्रसिद्ध है।इस संगीत समारोह की अपनी ख्याति है। दुनिया भर के संगीत प्रेमियों को इसकी प्रतीक्षा रहती है। देश भर के कलाकार समारोह में इसमें हाजिरी लगाते हैं। इस संगीत समारोह का आयजोन हर वर्ष अप्रैल माह में होता है।

नाराज होकर लिख डाला हनुमान बाहुक

तुलसीदास के बारे में कहा जाता है कि वे हनुमान जी के अभिन्न भक्त थे। एक बार तुलसीदास के बांह में पीड़ा होने लगी, तो वे उनसे शिकायत करने लगे। उन्होंने कहा कि ‘आप सभी के संकट दूर करते हैं, मेरा कष्ट दूर नहीं करेंगे।’ इसके बाद नाराज होकर उन्होंने हनुमान बाहुक लिख डाली। बताया जाता है कि यह ग्रंथ लिखने के बाद ही उनकी पीड़ा खुद ही समाप्त हो गई।

शनि देव के प्रकोप से शांति

वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि ग्रह के क्रोध से बचाते हैं अथवा जिन लोगों की कुण्डलियो में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता है, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस संकट मोचन मन्दिर (Sankat Mochan Mandir) में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषों का मानना है कि हनुमान की पूजा करने से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और ग्रह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।

परिसर के पास स्थित पाम्पा सरोवर का जीर्णोद्धार

रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का मंचन रामनगर और वाराणसी नगर के भिन्न-भिन्न स्थानों पर प्रसंग के अनुसार होता है और नगर के कई क्षेत्रों के नाम इसी आधार पर रखे गए हैं इस कड़ी में बाली वध का प्रसंग आज श्री संकट मोचन मंदिर (Sankat Mochan Mandir) परिसर में मनाया जाता है, हालाँकि इस प्रसंग के लिए परिसर के पास ही एक छोटे सरोवर की खुदाई की गयी थी, जिसका नाम रामायण में वर्णित पम्पा सरोवर के नाम पर रखा गया था।

रामायण में वर्णित पंपा सरोवर के पास ही हनुमान जी को प्रथम बार भगवान श्रीराम के दर्शन उस हुए थे जब वे माता सीता को खोजते किष्किंधा जा रहे थे। ऋष्यमूक पर्वत के पास स्थित इस सरोवर के पास ही हनुमान जी ने ब्राह्मण के वेश में अपने आराध्य श्रीराम का प्रथम बार दर्शन किया था।

इस रामलीला की स्थापना गोस्वामी तुलसी द्वारा जी की गयी थी। बाली वध प्रसंग अभिनीत करने के लिए इस छोटे पाम्पा तालाब की खुदाई मंदिर परिसर में की गई थी। कालांतर में यह कच्चा तालाब जीर्णशीर्ण हो गया। आज भी बालि वध प्रसंग की रामलीला संकट मोचन मंदिर परिसर में ही होती है। आज इसके पुनरोद्धार के लिए संकट मोचन की प्रबंधन समिति पुनः कटिबद्ध हुयी है और कार्य आरम्भ किया गया है। इसके बारे में और जानने के लिए यहाँ पढ़ें

संकट मोचन मंदिर तक कैसे पहुंचे ?

संकट मोचन मंदिर तक कार,ऑटो रिक्शा या बाइक आदि साधनो के द्वारा पहुंचा जा सकता है। श्री संकट मोचन (Sankat Mochan) मंदिर प्रांगण वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से 11 कि मी की दूरी पर स्थित है और लगभग इतनी ही दूरी रोडवेज के बस स्टैंड से भी है। विश्वप्रसिद्ध बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी एच यू BHU से मंदिर की दूरी करीब 3 कि मी है। वाराणसी नगरमें रहने वाला हर व्यक्ति इस स्थान से सुपरिचित है। किसी भी ऑटो वाले को कहने पर वह यहाँ सरलता से पहुंचा देगा।

कैंट रेलवे स्टेशन से ऑटो रिक्शा से करीब 30 -45 मिनट लगते हैं। लगने वाला समय काफी कुछ ट्रैफिक और शहर के संकरी गलियों के यातायात व्यवस्था के ऊपर भी निर्भर करता है।

श्री संकट मोचन मंदिर के लिए गूगल मैप लोकेशन नीचे देखें

Sankat Mochan Temple Gate

Shri Sankat Mochan Hanuman ji Maharaj

।।जय श्री संकट मोचन हनुमान जी महाराज।।

।। जय सिया राम ।

FB Page of Sankat Mochan Temple

Shree Sankat Mochan Hanuman Temple Varanasi.

References for Tourists

Tourmyindia-Sankat Mochan Temple Varanasi

Other References

संकटमोचन मन्दिर वाराणसी

यहां हनुमान ने तुलसीदास को दिए थे दर्शन, मिली थी रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा

प्राचीन मंदिरों में से एक है संकट मोचन हनुमान मंदिर , दर्शन मात्र से दूर होता है कष्ट

Sankat Mochan Temple

श्री पंचमुखी हनुमान

श्री हनुमान जी के बारे में कुछ रोचक तथ्य

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One Comment on “श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर, वाराणसी-संक्षिप्त परिचय”

  1. Awesome! I am about to visit Varanasi. This temple is going to be in my list for sure.

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